सत्ता की चकाचौंध में राजनेताओं को सामाजिक कार्य करने को कहना ठीक ऐसा ही है जैसे शेर को घास चरने को कहना या रागरंग में डूबे किसी व्यक्ति को धार्मिक प्रवचन सुनने को बाध्य करना। आज हमारे राजनेता जिन कार्यों से वोट की उम्मीद होती है उन कार्यों को पूरा करने के लिए बेशक कड़ी मेहनत करते देखे जा सकते हैं। लेकिन दुःख का विषय है कि अधिकांश राजनेताओं को समाजिक कार्य के नाम पर सांप सूंघ जाता है। उनका सारा जोश ठंडा पड़ जाता है। ऐसे राजनैतिक परिवेश भी में केंद्र की पूर्व यू पी ए सरकार तथा पंजाब की अकाली भाजपा सरकार को बधाई देनी चाहिए कि इन्होने स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती के कार्यक्रमों में पर्याप्त रूचि तथा सहयोगपूर्ण रुवैया दिखाया। यहाँ यह कहना प्रासंगिक है केंद्र सरकार ने रामकृष्ण मिशन को सार्धशती आयोजन के लिए सौ करोड़ की सहायता राशी तथा स्वामी जी का सन्देश नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए विवेक ट्रेन चलाई वहीं पंजाब सरकार ने भी स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति के आग्रह पर कई सराहनीय कदम उठाये। ये अलग बात है कि पंजाब की अफसरशाही के लचर रवैये के कारण लगभग आधी घोषणाएं पूरा होने की प्रतीक्षा में हैं। स्वामी विवेकानन्द सार्धशती आयोजन की संक्षिप्त समीक्षा एवं पंजाब सरकार के साथ कार्य करते समय आये कुछ अनुभव साँझा करने का प्रयास यहाँ किया जा रहा है।
समाज मंथन का माध्यम बनी सार्धशती- सम्पूर्ण देश और विश्व के अनेक देशों में पूरा एक साल चली विवेकानन्द सार्धशती ने समाज जागरण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और पूर्व से पश्चिम सारे देश में स्वामी विवेकानन्द के सन्देश ने सम्पूर्ण समाज विशेषकर युवा वर्ग को झकझोर कर रख दिया। यह समाज मंथन लगभग ऐसा ही था जैसा आज से एक सौ पन्द्रह सोलह साल पहले स्वयं स्वामी जी ने भारत की परिक्रमा कर तत्कालीन समाज को पूरी तरह हिला कर रख दिया था। यही स्थिति भारत के बाहर रही। भारत के प्रति जैसा अनुकूल वातावरण उस समय बना था वैसा ही स्वामी जी के संदेश को पुन: सुन कर विश्व का भारत की ओर देखने का नजरिया ही बदल गया। विश्व नये भारत से विश्व शांति में बड़ी भूमिका की आशा करने लगा। स्वामी जी के सन्देश ने विश्व गुरु भारत बनाने को लेकर युवा वर्ग की बेचैनी बढ़ा दी। युवा वर्ग कुछ करने को बेचैन हो गया। दुनिया को नेतृत्व दे सके ऐसा सुंदर, समर्थ व् स्वावलम्बी भारत बनाने की इच्छा सर्वदूर बलवती हो गयी। यह भी एक संयोग ही था कि सार्धशती के तुरंत बाद लोकसभा के चुनाव आ गये। लोगों ने इस बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए देश को आगे ले जाने के लिए योग्य नेतृत्व खोज लिया। यह भी संयोग ही है कि इस समाज मंथन से आये राजनैतिक परिवर्तन से निकले देश के नये प्रधानमन्त्री स्वयं स्वामी विवेकानन्द को अपना आदर्श मानते हैं। अभी-2 अपने जापान दौरे में जापान के प्रधानमन्त्री को गीता के साथ स्वामी विवेकानन्द का साहित्य भेंट करना हमारे प्रधानमन्त्री की स्वामी विवेकानन्द में श्रद्धा को दर्शाता है।
पंजाब में मिला सार्धशती को भारी जनसमर्थन- सार्धशती के प्रारम्भ में एक आशंका मन को कचोट रही थी पंजाब में स्वामी जी का सन्देश कितना स्वीकार्य होगा। अच्छे पढ़े लिखे लोग भी स्वामी विवेकानन्द और स्वामी दयानन्द को एक ही मानते थे। स्वामी दयानन्द जी को लेकर सिख समाज में थोड़ी असहजता देखी जा सकती है। लेकिन जैसे जैसे स्वामी विवेकानन्द के संदेश को लेकर कार्यक्रम होने शुरू हुए सारी आशंका, घबराहट एक ही झटके में समाप्त हो गयी। अपेक्षा से कहीं अधिक समाज का समर्थन मिला। पंजाब में सार्धशती में हुए सारे कार्यक्रमों में लगभग 20 लाख से अधिक् लोगों की सहभागिता रही।18 फरबरी के सूर्य नमस्कार कार्यक्रम, विवेकानन्द सन्देश यात्रा, सितम्बर 11 की युवा दौड़ और 28 सितम्बर के युवा सम्मेलनों में 50000 से अधिक युवाओं ने भाग लिया। सिख बुधिजीवियों के सम्मेलनों में भी बड़ी संख्या में सिख बुधिजिवियों ने भाग लिया। स्वामी जी के जीवन और सन्देश सम्बधी बारह पुस्तकों का पंजाबी में अनुवाद हुआ।
सरकार चली दो दिन में ढाई कोश-
वैसे मुख्यमंत्री सर. प्रकाश सिंह बादल ने शुरू से ही स्वामी विवेकानन्द को लेकर पूरा उत्साह दिखाया। सरकार ने स्वामी जी का सन्देश गाँव गाँव पहुँचाने के लिए साहित्य प्रकाशन, साहित्य रथ तथा अन्यों कार्यक्रमों के लिए एक करोड़ की सहायता राशी तथा प्रति वर्ष नशा मुक्ति, जैविक खेती को प्रोत्साहन तथा कन्या भ्रूणहत्या रोकने में लगे युवाओं को एक-एक लाख नकद राशी के तीन वार्षिक विवेकानन्द युवा पुरस्कार, विवेकानन्द समग्र का पंजाबी अनुवाद तथा सबसे महत्वपूरण विवेकानन्द स्मारक के लिए 20-25 एकड़ जगह देने की घोषणाएं की गयी। कुल मिला कर बहुत उत्साह का वातावरण बना। लेकिन सरकार की उन घोषणाओं को जमीन पर उतारने में हम सबको पसीना आ गया। हमारी उर्जा का बड़ा भाग सेक्टरयियेट में घूमने में निकलता रहा। लगभग दो महीने की भागदौड के बाद घोषित राशी की एक किश्त मिल पाई। दूसरी किश्त लेने के लिए फिर उतना ही परिश्रम करना पड़ा। ये स्थिति तब है जब माननीय मुख्यमंत्री तथा सरकार में शामिल दल के प्रमुख लोग मन से हमारे साथ सहयोग कर रहे थे। मन में प्रश्न आता है कि जिनका सत्ता के गलियारों में बाजू पकड़ने वाला कोई नही होता होगा उनके साथ क्या बीतती होगी? काफी बैठकों के बाद विवेकानन्द समग्र पंजाबी अनुवाद के लिए जा सका। अभी भी विवेकानन्द युवा पुरस्कार और विवेकानन्द स्मारक के लिए भूमि देने का सरकारी वायदा हवा में लटक रहा है। प्रशासन पर सरकार की पकड़ लगातार कमजोर होती दिखी। बड़ी उम्र में भी मुख्यमंत्री द्वारा कठोर परिश्रम व् पूरी सूुझबुझ के बाबजूद अफसरशाही पैरों पर पानी पड़ने ही नहीं दे रही है। स्वामी विवेकानन्द को लेकर बहुत अधिकारीयों की सद्भावना के बाबजूद अधिकांश अधिकारीयों का जोर समिति को निरुत्साहित करने में ही लगता रहा।
बड़ी कठिन है डगर पनघट की-
कहते हैं कि वायदे तोड़ने के लिए ही किये जाते हैं। और ये वायदे अगर किसी राजनेता ने किए हों तो फिर इनके पूरा न होने पर कोई हैरान भी नहीं होता। हाँ! किसी राजनेता का अपना वायदा पूरा कर जाना जरुर सुखद आश्चर्य की बात होती है। इन्हीं सब कारणों से राजनेता बड़ी तेजी से अपने प्रति आदर व् श्रद्धा खोते जा रहे हैं। सरकारी तन्त्र की संवेदनहीनता के कारण ही स्वामी विवेकानन्द सार्धशती समारोह समिति पंजाब ने डरते सहमते सरकार का सहयोग लेने का निर्णय लिया। सरकार के साथ काम करते समय हमारी आशंका ठीक साबित हुई। इसी समय पंजाब सरकार की कार्यशैली को समीप से देखने का मौका मिला। सरकारी काम-काज का ढर्रा देख कर तो ऐसा ही लगा कि पंजाब सरकार का तो भगवान ही मालिक है। बहुत कम अधिकारी और राजनेता कार्य करने को लेकर गम्भीर हैं बाकि तो पंजाबी में जिसे गोली देना कहते हैं अर्थात कार्य को टालने में ही अपनी सफलता मानते हैं। पंजाब में अनुभव और जोश के प्रतीक पिता-पुत्र के नेतृत्व के बाबजूद प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला तथा कानून की धज्जियां उडती देख आम आदमी का सरकार में विश्वास हिलता सा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के में मोदी सुनामी के बाबजूद पंजाब में सत्ताधारी दल का आधे में सिमिट जाना जनता की बेरुखी का सूचक है। अकाली भाजपा को दीवार पर लिखे को समय रहते पढ़ कर अपनी कार्यशैली में जबर्दस्त सुधार करना होगा। ऐसा न कर पाने पर पंजाब को कांग्रेस की झोली में डाल कर सारे देश में अपने अस्तित्व के लिए जूझती कांग्रेस को जीवनदान देने का दोष/श्रेय अकाली-भाजपा के वर्तमान नेतृत्व को ही जायेगा। वर्तमान सत्ताधीश समय रहते जगते, सम्भलते और सुधरते नहीं तो पंजाब की सत्ता हाथ से खिसकनी तय सी लगती है।
शुक्रवार, 15 अगस्त 2014
स्वामी विवेकानन्द सार्धशती - वायदों पर गम्भीरता दिखाए पंजाब सरकार!
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