गुरुवार, 7 अगस्त 2014

चिन्तन के स्वर

विजय कुमार नड्डा
उत्तर दो
पाकिस्तान व चीन का हर बड़ा शहर
अब हमारी तरकश की मार में है
हमारे देश में हर साल उग आते हैं अनेकों अरबपति
एक अम्बानी अपनी पत्नि को
उसके जन्म दिन पर
भेंट दे देता है एक उड़नखटोला........
चन्द्रमा पर पानी की गम्भीर खोज में व्यस्त हैं हम
भारत के युवा अपनी मेधा से दुनिया में लोहा मनवा रहे हैं
लेकिन फिर भी 40 करोड़ से अधिक लोगों के चेहरे उदास क्यों हैं?
क्यों कोई अग्नि, कोई  त्रिशूल, या पृथ्वी भेद नहीं पा रही है?
भ्रष्टाचार, गरीबी व कुपोषण के अभेद्य किले को,,,,,,,,,,
क्यों आसमान छूती कोठियों के आगे झोपडि़यों की लम्बी कतारें हैं?
क्यों सड़कों, रेलवे लाइनों पर मजदूरी करती माता-बहिनों के झुण्ड के झुण्ड दिखाई देते हैं,,,
हम कब समझेंगे कि माँ, बहिनों व बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट
विश्वगुरु भारत की पूर्व शर्त है
बहिनें विज्ञान, आई.टी., व्यवसाय में जौहर दिखाएं
कल्पना चावला, सुनिता बिलियम व किरण बेदी बन बुलंदियां छूएं इसमें हमारी शान है
लेकिन मजबूरी वश किसी के आगे हाथ फैलाएं
महाशक्ति भारत का यह अपमान है
हमें सोचना होगा
क्यों प्रतिवर्ष लाखों धरती पुत्र कर लेते जीने से तौबा
क्यों करोड़ों वनवासी बन्धु जीवन की मूलभूत
जरुरतों के लिए जूझते और
निहारते रहते हैं राजभवन की ओर
क्यों विकास व स्मृद्धि की गंगा शहरों में बहते-2
गाँवों का रास्ता भूल जाती है या पहले ही सूख जाती है...
क्यों हजारों निर्दोष नागरिक खो देते हैं अपना बहुमुल्य जीवन आतंकवादियों के हाथ--?
क्यों देशवासियों के चेहरे पर हर हमारी उपलब्धि की बात सुन थोड़ी ख़ुशी की अनुभूति के बाद
फैल जाती है एक असहाय व ब्यंग्यात्मक मुस्कराहट
उनका गम छिपाने से भी नहीं छिपता है
प्यार से थेाड़़ा कुरेदने पर साफ दिखता है
देश को जरूरत है आज सैकड़ों डा. हेडगेवार, नेताजी सुभाष और लाल बहादुर शास्त्री की
जो देश के दर्द में बेचैन हो कर कर दे न्यौछावर स्वयं को...
एक बड़ा प्रश्न
क्या वह तला हम पर आकर समाप्त हो सकती है ?

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