गुरुवार, 7 अगस्त 2014

कुर्सी की राजनीति के आगे अपमानित होती देशभक्ति

लेख पुराना, सन्दर्भ पुराने लेकिन भारत की राजनीति विशेषकर कांग्रेस की सत्ता एवम् व्यक्ति केंद्रित राजनीति में हमेशा प्रासंगिक रहते हैं)
विजय नड्डा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज देशभक्ति का प्रतीक बन चुका है। देशभक्ति को कुछ लोगों की विशेषता से बाहर निकाल कर सर्व सामान्य व्यक्ति के व्यवहार में लाने का विषय बनाने का श्रेय संघ को दिया जा सकता है।  राष्ट्र और राष्ट्रीयता के साथ-साथ संगठन की कार्यपद्धति को लेकर संघ की अपनी विशिष्ट कार्यशैली है। अपने 85 वर्ष के जीवन में संघ को पहली बार अपनी तय पद्धति से हट कर सड़क में धरने पर बैठना पड़ा है। इस धरने में सामान्य कार्यकर्ता से लेकर संघ के प्रमुख डाॅ. मोहनराव भागवत भी लखनऊ में शामिल हुए हैं। भगवा आतंकवाद और हिन्दु आतंकवाद के नाम पर हिन्दु संतों, मन्दिरों के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाया गया है। पूज्य शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, सत्य साईं बाबा, स्वामी रामदेव, डा. प्रणव पण्ड्या, कृपालु जी महाराज, बापू आशाराम जी एवं सुधान्शु जी महाराज एक के बाद एक इस दुष्प्रचार के शिकार हो चुके हैं। यहां ध्यान देने योग्य है कि अभी तक इनमें से किसी पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है। यह भी विचारणीय है कि क्या दो -चार कार्यकर्ताओं (अगर वे कसूरवार सिद्ध होते भी हैं ) के आधार पर पूरे संगठन या हिन्दु समाज को अपराधी ठहराया जा सकता है? अपनी आस्था के केन्द्रों के अपमान पर हमारा समाज दुःखी एवं आक्रोशित है। इसी आक्रोश का बड़े स्तर पर प्रगटीकरण 10 नवम्बर को जिला स्तर पर हो रहे धरनों में देखने को मिला । एक अनुमान के अनुसार मात्र चार दिनों की तैयारी पर लगभग बीस लाख से अधिक समाज बन्धुओं ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया है । इससे संघ की शक्ति का अन्दाज लगाया जा सकता है । मुख्य प्रश्न है कि क्या केन्द्र सरकार ने संघ से पंजा लड़ाने का मन बना लिया है या यह मात्र राष्ट्रमण्डल खेलों में हुए भयंकर भ्रष्टाचार, कश्मीर पर पर्दे के पीछे हो रही सौदेबाजी या अयोध्या पर आए निर्णय के बाद मुस्लिम हितैषी दिखने की क्षणिक होड़ मात्र है ? वैसे हिन्दु विरोध कांग्रेस को विरासत में मिला है। कांग्रेस के संस्थापक लार्ड ए.ओ. ह्यूम के राजनैतिक वंशजों से और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है ? स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू क्रान्तिकारियों को आतंकवादी तथा स्वयं को दुर्घटनावश हिन्दु कहते रहे हैं। महात्मा गांधी ने शहीद भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू की फांसी रूकवाने के लिए लार्ड इरविन से औपचारिक प्रार्थना करना भी उचित नहीं समझा था। यह अलग बात है कि वही कांग्रेस आज अजमल कसाब और अफजल गुरू की फांसी रूकवाने की कोशिश अवश्य कर रही है!
जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रश्न है तो संघ हर प्रतिबन्ध, विघ्न और बाधा के बाद और निखर कर निकला है। हीरा आग से निखर कर बाहर आता है और लकड़ी जल कर रख हो जाती है। इसलिए होलिका आग में जहां  जाती है वहीं प्रह्लाद जैसा हीरा नहीं। मात्र 10 वर्ष की आयु में संघ को शिशुकाल में ही अंग्रेज सत्ता का पहला प्रत्यक्ष विरोध झेलना पड़ा। इसके बाद गांधी हत्या के बहाने 1948 में और फिर 1975 में संघ को समाप्त करने का सीधा प्रयत्न हुआ। हर चुनौति के बाद संघ और मजबूत हुआ है। संघ के उपर तो यह पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है -
हमने हर गम को खुशी में ढाला है, हमारा हर चलन निराला है।
जिन हादसों से लोग मरते आए हैं, हमें उन हादसों ने पाला है ।।
आज संघ देशभक्ति का एक जनान्दोलन बन चुका है। लगभग 5 लाख स्वयंसेवक प्रतिदिन 40,000 शाखाओं में एकत्र आते हैं। इसके अलावा देश में 3 लाख से अधिक गाँव में संघ का विचार नियमित पंहुचता है। इस प्रकार संघ आज विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था बन चुकी है। 50 से अधिक प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न संस्थाएं संघ प्रेरणा से राष्ट्र निर्माण में लगी हुई हैं। संघ के स्वयंसेवक डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्य चला रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदा लातूर (महाराष्ट्र), भुज (गुजरात), उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड) का भूकम्प हो या लेह में आई भीषण बाढ़, फिरोजाबाद (उ.प्र.) में भीषण रेल टक्कर हो या चरखीदादरी (हरियाणा) में हुई विमान दुर्घटना आदि-आदि सब जगह पर प्रशाासन से भी पहले संघ के स्वयंसेवक पहुँचे हैं। संघ के विरोधी भी संघ की देशभक्ति और समाज सेवा का सम्मान करते रहे हैं। स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1963 की गणतन्त्र परेड़ में संघ को आमंत्रित किया था। सरकार के आग्रह पर संघ के 3500 स्वयंसेवकों ने परेड़ में भाग लिया था। इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष, डा0 अम्बेड़कर एवम् डा. जाकिर हुसैन आदि भी खुले मन से संघ की प्रशंसा कर चुके हैं। शायद भारत ही एक अपवाद होगा जहां मात्र राजनैतिक स्वार्थ के कारण ऐसे देशभक्ति के प्रयास को प्रोत्साहित करने के बजाय सरकार दबाने का पुरजोर प्रयत्न करती है। आज देश में सामान्य चर्चा प्रारम्भ हो गई है कि कुर्सी की राजनीति में मशरूफ हमारे राजनेताओं को अपने गिरने की कोई तो लक्ष्मण रेखा खींचनी ही होगी। कहावत है कि ‘एक घर तो डायन भी छोड़ देती है’। आज की राजनीति सारी मर्यादाओं को पार करती जा रही है।
हिन्दु या भगवा आतंकवाद शब्द ही परस्पर विरोधी हैं क्योंकि हिन्दु आतंकवादी और आतंकवादी हिन्दु नहीं हो सकता। हिन्दु संस्कृति जिसमें चींटी तो क्या सांप तक को भी दूध पिलाने की परम्परा हो, जहां भगवा त्याग, तपस्या व बलिदान का प्रतीक हो उसे आतंकवाद से जोड़ना वास्तव में महान भारत व उसकी पहचान अर्थात प्राणवायु भारतीय संस्कृति को सीधी गाली देना है। यह हजारों संतों, ऋषियों-मुनियों व क्रान्तिकारियों का अपमान है। आज पूरे विश्व में भारत और भारतीय संस्कृति का सम्मान बढ़ता जा रहा है। ऐसे में मात्र मुस्लिम वोट की चाह में इस महान ऋषि परम्परा को स्वयं ही कटघरे में खड़ा करना पागलपन की हद ही तो  है। संघ और सिम्मी को एक बताना युवराज राहुल की सोच, परिपक्वता के साथ-साथ देश के इतिहास व परम्परा की जानकारी व समझ पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है। श्री राहुल जी से देश संसद , मुम्बई सहित अन्य स्थानों पर हुए हजारों हमलों के हमलावरों का रंग जानना चाहता है।
आशा करनी चाहिए कि केन्द्र सरकार समय रहते देशभक्ति से टकराने का राजनैतिक आत्मघाती निर्णय बदल लेगी। केन्द्र सरकार अपनी बहादुरी संघ को दबाने के बजाए कश्मीर, पूर्वोतर व अन्य भागों में देश की सम्प्रभुता को चुनौति दे रहे आतंकवादियों व 200 से ज्यादा जिलों में कैंसर की तरह फैल चुके नक्सलवाद को दबाकर बताएगी। केन्द्र सरकार द्वारा संघ को जबरदस्ती राजनीति के अखाड़े में घसीटा जा रहा है , लेकिन 1948 में संघ स्वयंसेवकों पर भयंकर अत्याचार हुए तो भारतीय जनसंघ अर्थात भाजपा अस्तित्व में आई जो आज दिल्ली की कुर्सी की प्रबल दावेदार है। इसी प्रकार 1975 में संघ को छेड़ा गया जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था । अब फिर चुप एवं शांत भाव से देशभक्ति के कार्य में लगे संघ को चुनौति दी जा रही है तो परिणाम की कल्पना की जा सकती है। देश को कुर्सी की राजनीति से छुड़ाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा संघ को छेड़ना शिशुपाल को गाली के लिए प्रेरित करने की भगवान श्री कृष्ण की तरह कहीं प्रकृति की ही योजना तो नहीं है? अब अगर संघ मजबूर हो कर देश की राजनीति में क्षणिक भी क्यों न हो, हस्तक्षेप करता है फिर कांग्रेस और उसके इस खेल के सभी सैक्युलर महारथी कर्ण की तरह किस मुंह से कृष्ण की तरह संघ पर राजनीति करने का आरोप लगाएंगे या गिला-शिकवा करेंगे ?

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