गुरुवार, 7 अगस्त 2014

गणतन्त्र में हमारा आराध्य हो सामान्य व्यक्ति

विश्व बिरादरी का भारत को लेकर प्रकट हो रहा उत्साह भारत का विश्व बिरादरी में बढ़ते रुतवे का परिचायक है। 26 जनवरी को लाल किले में लाखों लोग तथा देशभर में टी.वी. के सामने बैठे करोड़ों लोगो को भारतीय सैन्य शक्ति की हुंकार रोमांचित कर देती है। भंयकर सर्दी में भी भारतीय रणवांकुरों तथा वहां उपस्थित लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। आत्म्विश्वास एव पौरष से भरे हमारे सैनिकों के सधे हुए कदम मानों विश्व को सन्देश देते हैं कि बेशक हम शांति के उपासक हैं लेकिन युद्ध में भी हमारा कोई मुकाबला नहीं है-
जब रण करने को निकलेंगे भारत माँ के दीवाने
धरा घंसेगी तूफान मचेगा , व्योम लगेगा थर्राने-
कवि की ये पंक्तियां यथार्थ लगती हैं। अपनी इस गणतन्त्रीय यात्रा में भारत ने सफलता के अनेक कीर्तिमान अपने नाम दर्ज किए हैं। अपने गणतन्त्र की 65वीं वर्षगांठ हमें ईमानदारी से अपना आत्मावलोकन करने का आहवान करती है। जहां हमें अपनी उपलब्धियों के लिए स्वयं की सराहना करनी चाहिए वहीं हमें अपनी असफलताओं से सीख भी लेनी चाहिए। जहाँ मात्र उपलब्धियों की चकाचैंध मे खो जाना सच्चाई से दूर जाना होगा वहीं मात्र असफलताओं को रोना रोना भारत के लाखों कर्म वीरों जिनके बल पर हमने उपलब्धियों को हासिल किया उनके साथ अन्याय होगा।
      भारत की इस छ: दशक की यात्रा की ओर देखने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि हममें क्षमता, प्रतिभा व योग्यता कूट कूट कर भरी है। हम चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं । हमारे लिए असंभव कुछ भी नही। अपनी गणतंत्रीय अवधि में  प्राप्त उपलब्धियों का मूल्यांकन करने से पहले एक बार हमें अपने देश के ऐतिहासिक घटनाक्रम पर दृष्टिपात करना आवशयक है। अंग्रेजों की कूटनीति से पराजित भारतीय नेतृत्व ने देश का विभाजन स्वीकार कर विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी को जाने-अनजाने आमंत्रित किया । जान माल की भंयकर हानि, टूटे दिल, थका -हारा आम देशवासी आजादी का जश्न भी पूरे मन से मना नहीं सका। हजारों वर्षों की गुलामी के बाद मिली आजादी (स्वतन्त्रता नहीं) सामाजिक , राजनैतिक व प्रशासनिक ब्यवस्था कानून सब कुछ विदेशी पद्धति पर, मैकालेे की शिक्षा पद्धति (स्वत्व, स्वाभिमान दूर दूर तक नही) इस सबके साथ-2 पहले कश्मीर में 1948 में पाक के साथ युद्ध फिर 62, 65 और 1971 और कारगिल युद्ध..... इतना सब होने पर भी भारत ने हार कहाँ मानी ? आज सैन्य शक्ति में भारत विश्व के अग्रणी स्थान पर खड़ा है। भारतीय सैनिकों के साहस, शौर्य व पराक्रम का नवीनतम जलवा दुनिया ने कारगिल में देखा अैार दांतो तले अंगुली दबाकर रह गई। भारत को सांप व सपेरों का देश कहने वाले आज भारतीय विज्ञान की उपलब्धियों पर आश्चर्यचकित हैं।  7, 7 उपग्रह एक साथ आकाश में छोड़ना, अग्नि, पृथ्वी, नाग जैसी मिसाइलें व अमेरीका की सारी आकाशीय निगरानी को छकाते हुए परमाणु विस्फोट कर देना भारतीय विज्ञान की सफलता की यात्रा में मील के पत्थर है। चन्द्रयान के बाद मंगलयान ने तो भारत को विज्ञान जगत में अत्यंत सम्मानीय स्थान प्राप्त करा दिया। भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा का लोहा सम्पूर्ण विश्व मानने को बिवश है।  यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि यह सब विश्व में शायद सबसे कम सुरक्षा बजट में हमने संभव कर दिखाया है। इस सबके साथ भारतीय अर्थ व्यवस्था ने भी विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। हमें अर्थशास्त्र सिखाने वाले, बिन मांगे उपदेश देने वाले अमेरीकी व ब्रिटिश अर्थशास्त्री जहाँ औंधे मुंह पड़ी अपनी अर्थ व्यवस्था को लेकर आंसू बहा रहे हैं वहीं भयंकर आर्थिक मंदी में भी भारत अपनी विकास दर टिकाए ही नहीं बल्कि बढ़ाने में भी सफल होता दिख रहा है। इतना ही नहीं भारतीय मेघा शक्ति ने विश्व में सब जगह अपना सम्मानजनक स्थान बनाया है। इसी झलक कुछ आंकड़ो से समझी जा सकती है। अमेरीका में 12 प्रतिशत वैज्ञानिक, 38 प्रतिशत  डाक्टर । नासा में 36 प्रतिशत वैज्ञानिक, अमेरीका में 34 प्रतिशत माइक्रोसाफट इंजीनियर, 28 प्रतिशत आई.बी.एम. मे कर्मचारी भारतीय है। इंटेलपैन्टियम 90 प्रतिशत कम्यूटर बनाती है। इसकी स्थापना विनोद धाम ने की। सवीर भाटिया ने हॉट मेल, विनोद खोसला ने सन माइक्रो सिस्टम की शुरूआत की। सिलिकान वैली में स्थापित 10 उद्योगों में से 4 भारतीयों द्वारा संचालित हैं। भारत का बालीवुड 800 फिल्में प्रतिवर्ष बनाता है। भारत में इस समय 3 दर्जन से अधिक अरबपति हैं। जहाँ सारी दुनिया बुढिया रही है वहीं भारत आने वाले समय में सबसे अधिक युवकों का देश होने वाला है अर्थात भविष्य हमारा है। इस प्रकार देखेंगे तो
भारत की सफलता की कहानी बहुत लम्बी है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इराक व अफगानिस्तान में चुनाव संपन्न कराने में भारत की सहायता मांगता है। शिक्षा जगत में भारतीय आई.आई.एम. व आई.आई.टी. ने सम्मान का स्थान प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त अक्षर धाम दिल्ली, योगगुरू बाबा राम देव, गायत्री परिवार, माँ अमृतामयी, श्री श्री रविशंकर आदि के आगे संपूर्ण विश्व नतमस्तक होता जा रहा है।
बहुत कुछ करना अभी शेष है-
काश! भारत की यही सम्पूर्ण सच्चाई भी होती। लेकिन ऐसा नहीं है। जहाँ भारत की उपरोक्त उपलब्धियां प्रत्येक भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर देती है। वहीं एक दूसरा भारत भी यहाँ बसता है। जो कहता सुना जा सकता है
     उगा सूर्य कैसा कहो मुक्ति का ये,
     उजाला करोड़ो घरों तक न पहुँचा।
यह विडम्बना ही है कि 3 दर्जन से अधिक अरब पतियों के देश भारत में आज 30 करोड़ भारतीय सर्विया, लिथुनिया और मंगोलिया के गरीबों की तुलना में अधिक दुर्दशा के शिकार हैं। विकसित देशों के दबाव में गरीबी में 9.06 प्रतिशत की कमी दिखाई गई है। हमारी समृद्धि 300 स्मृद्ध औद्योगिक घरानों तक सिमटी है । 10 करोड़ से अधिक वनवासी, महानगरो में झुगी -झोपडियों में रहने वाले करोड़ों लोग आज भी जीवन की मूलभूत सुखसुविधाओं से वंचित हैं। ‘कोड़ में खाज‘ की तरह भयंकर गरीबी से जूझते समाज में अंधविश्वास व कुरीतियाँ अभी भी फलफूल रही हंै। चंद्रमा पर जल खोज लाने वाले हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा जैसी कैंसर नुमा बिमारियाँ समाज को खोखला कर रही हैं। अल्पसंख्यकवाद के नाम पर गोपाल के देश में देशी गाय का जी भर कर कत्लेआम हुआ। हमारी देशी गाय की 32 नसलें लुप्त हो चुकी हैं।  पाकिस्तान के बाद अब चीन बार-बार भारतीय सीमा पर घुसपैठ कर भारत के धैर्य की परीक्षा ले रहा है।  नेताओं , अधिकारियों व उधोगपतियों का 1लाख 70 हजार करोड रु स्विस बैंकों में जमा है । हम भारत की गुलामी व अवनति के लिए राजाओं को दोषी ठहराते हैं लेकिन विचार करें कि पहले देश में कुल 565 राजा थे। हालांकि अधिकांश राजा सही माने में लोकसेवक थे तो भी माना जाता है कि अधिकांश राजा लोग लोगों के खून-पसीने पर ऐश्वर्य युक्त जीवन जीते थे। लेकिन आज लोकसभा, राज्यसभा के सांसद मुख्यमंत्री, राज्यपाल, विधायक एवम् विदेशो में राजदूत ये सब किसी राजा से कतई कम नहीं हैं।  इन की संख्या हजारों में तो है ही। यद्यपि केंद्र में आई नई सरकार आने के बाद हर जगह सकारात्मक परिवर्तन दिखने शुरू हुए हैं।
जहाँ भारत की उपलब्धियो की कहानी लम्बी है वहीं असफलताओं की दास्तां भी छोटी नहीं है। विश्व में अपनी सफलता के झण्ड़े गाढ़ने वाले भारतीय भारत की सोचें, विदेशो में जमा पैसा भारत में आ जाए और राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों के मन में भारत को महाशक्ति बनाने का संकल्प जाग जाए तो हमारे लिए कुछ भी कठिन नही है। बहुत समय बाद दिल्ली में योग्य नेतृत्व जिसके दिल में करोड़ों गरीब देशवासियों के लिए दर्द और आँखों सुखी सम्पन्न देश बनाने का स्वप्न देखा जा रहा है। राजनेताओं के साथ साथ प्रशासनिक स्तर सब जगह मेहनत की पराकाष्ठा हो रही है। बस केवल एक बात ध्यान में रखनी होगी कि केवल राजनीती के बल पर स्थायी परिवर्तन नहीं आता। समाजिक परिवर्तन जनता के सक्रिय सहयोग के बिना सम्भव नहीं होता। इसलिए देश को तन और मन से नए नेतृत्व के साथ खड़े होकर विश्व गुरु भारत के स्वप्न को साकार करने में जुट जाना होगा। हमारी लोकतन्त्र की पद्धति अनेक कमियों के बाद भी सर्वश्रेष्ठ है। लोकतन्त्र में लोक महत्वपूर्ण तत्व है। सर्व सामान्य व्यक्ति जितना राष्ट्र के प्रति जागरूक होगा लोकतन्त्र हमारा इतना सफल होगा। हमारे गणतन्त्र के 64 वर्ष की कहानी इस बात का पुख्ता सबूत हैं
कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता।
बस एक पत्थर तबीयत से उछालो तो यारो।।

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