मंगलवार, 12 अगस्त 2014

चौदह अगस्त पर विशेष अखंड भारत के लिए संकल्प लें युवा

किसी भी राष्ट्र और समाज के जीवन में कुछ ऐसे अवसर आते हैं जो उसकी दिशा और दशा को ही बदल देते हैं। ऐसे समय में नेतृत्व की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। उनका सूझबुझ से भरा एक कदम देश को शिखर की ओर भी मोड़ देता है वहीं उनकी थोड़ी सी चूक की कीमत वह देश सदिओं तक चुकाता रहता है। किसी ने ठीक ही कहा है-
एक कदम उठा था गलत राहे शौक में ।
मंजिल तमाम उम्र हमें ढूंढती रही।।
हमारे प्राचीन राष्ट्र जीवन में 14 अगस्त1947 की रात ऐसा ही दुर्भाग्यपूर्ण क्षण था जिसने भारत को हमेशा के लिए अपंग बना दिया। देशवाशियों का आजादी को लेकर चिर सञ्चित उत्साह एकदम मंद ही पड़ गया। एक लम्बे इंतजार और खूनी संघर्ष के बाद मिली आजादी के बाद उन्मुक्त गगन में उड़ान भरने से पहले ही हमारे पंखों को काट कर रख दिया। भारत विभाजन कैसे हो गया, इसके लिए दोषी कौन है? यह आज तक रहस्य बना हुआ है। हमारे उस समय के नेता अंतिम समय तक देश को आश्वाशन देते रहे कि विभाजन नहीं होगा। ये राजनेता परिस्थिति का सही आकलन नहीं कर सके या जानबूझ कर आजादी के बाद उनके सत्ता के रंग में भंग न पड़ जाये इसी डर से देश को अँधेरे में रखा अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। इसमें कोई शक नहीं कि हमारे तत्कालीन कुछ नेता अति सज्जनता और कुछ सत्ता प्राप्त कर उसे भोगने के लालच में अंग्रेज के हाथ का खिलौना बन गये। भारत को दो फाड़ करने के अंग्रेजी षड्यंत्र में जाने अनजाने सहयोगी हो गये। इसलिए आम जनता को समझ नहीं आ रहा था कि शिकायत करें भी किससे करें? सर्व सामान्य लोगों की स्थिति कुछ ऐसी ही थी-
सोचा था कि हाकिम से करेंगे शिकायत।
कमबख्त वो भी तुझे चाहने वाला निकला।।
बिडम्बना ऐसी कि देश्वासिओं से न रोते बन रहा था और न ही हंसते। एक तरफ सदियों के लम्बे संघर्ष के बाद मिली आजादी पर नाचने व् झूमने को मन कर रहा था तो वहीं दूसरी ओर अपनी प्रिय जन्मभूमि का दुखद विभाजन, अपने परिजनों का कत्लेआम, मुस्लिम गुंडों द्वारा लाखों महिलाओं से बलात्कार और अपनी अस्मिता लुटने से बचने के लिए घर की महिलाओं की जिद के कारण अपने ही हाथों मौत दे देना,  जमीन-जायदाद को पाकिस्तान में छोड़ कर, मृत्यु से सीधे टक्कर लेते हुए भारत पहुँचने और परिवार सहित (जिसका जितना बचा)  के साथ सडक पर शरणार्थी बन कर रहने की बेबसी की दिल दहला देने वाली व्यथ कथा! जितना हम देशवासी अंग्रेजों से दो दो हाथ करते, असंख्य बलिदान देते दो सौ साल तक नही थके थे उससे ज्यादा हम अपनॊ के हाथों ठगे जाने के दर्द से एक ही रात में टूट गए और हिम्मत हार चुके थे। राष्ट्र और समाज के रूप में भी हम पूरी तरह टूट गये थे। आजादी के बाद नेता सत्ता भोग में मस्त हो गये, देशवासी भी टूटे मन से ही सही लेकिन अपने जीवन निर्वाह में व्यस्त हो गये। बस केवल भारत माता अपने  विभाजन के दर्द को सीने में लिए सिसकती रही। ऋषियों, तपस्वियों की पवित्र भूमि को दो टुकड़े होते असहाय हो कर देखती रही। आश्चर्य की बात तो यह हुई कि  किसी नेता या दल ने इतनी बड़ी दुर्घटना पर राष्ट्रीय चर्चा और जाँच और दोषियों को दण्डित करने की जरूरत भी नहीं समझी। देश विभाजन की बिभीषिका को सब ऐसे भूल गये जैसे कोई सामान्य घटना हो। यही समाज की विस्मृति का ही लक्षण होता है।
विभाजन की नौबत क्यूँ आई... वास्तव में भारत को हमेशा के लिए पंगु बनाने के लिए विभाजन के षड्यंत्र  पर अंग्रेज बहुत पहले से सक्रिय हो गया था। पहले 1885 में कांग्रेस की स्थापना और फिर 1906 में कांग्रेस की सौतन मुस्लिम लीग की स्थापना ये सब अंग्रेज की बड़ी योजना का ही हिस्सा था। अंग्रेज ने कांग्रेस के सामने देश की स्वंतत्रता के  लिए हिन्दू मुस्लिम एकता को पूर्व शर्त के रूप में रख दिया। और अंग्रेज ने बड़ी चतुराई से कांग्रेस को मुस्लिम लीग को आजादी के लिए साथ आने के लिए मनाने के काम में लगा दिया। यह कार्य कुत्ते की दुम सीधी करने जैसा ही दुष्कर था। अंग्रेज ने अपनी भूमिका 'चोर को कहना चोरी कर और घर वालों को कहना कि जागते रहो' वाली रखी। दुर्भाग्य से भारत का कांग्रेसी नेतृत्व अंग्रेज की उस कूटनीति को समझ नहीं पाया। कांग्रेस के पुचकारने और अंग्रेज के पर्दे के पीछे के सहयोग के कारण मुस्लिम लीग आजादी के आन्दोलन में अपनी सहभागिता के लिए कई शर्ते रखती गयी, बिना मतलब से ऐंठती गयी। महान क्रन्तिकारी और विचारक वीर सावरकर, महृषी अरविन्द और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रमुख श्री गुरु जी ने कांग्रेस नेतृत्व को सावधान करने की कोशिश की लेकिन कांग्रेसी नेतृत्व ने अपने अंहकार, अंग्रेज पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करने के कारण जाने अनजाने देश को विभाजन की तरफ धकेल दिया।
ठगे गये महसूस कर रहे थे देशवासी- भारत का विभाजन दुनिया की बहुत बड़ी दुर्घटना थी। इस में लगभग 10 लाख लोगों का कत्लेआम तथा लगभग 20 लाख से ज्यादा लोग बेघर हुए। इससे भी बड़ी बात कि जनता और राजनेता किसी को भी विभाजन हो ही जायेगा इसका विश्वास नहीं था। राजनेताओं में दूरदृष्टि का घोर अकाल, सत्ता प्रप्ति की बेचैनी और जनता का नेताओं पर जरूरत से ज्यादा विश्वास को ही विभाजन के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है। कुछ दिन पहले पंडित जवाहर लाल नेहरु कहते घूम रहे थे कि विभाजन की बात करने वाले मूर्खों के लोक में रहते हैं। स्वयं गांधी जी ने कहा था कि मेरी लाश पर होगा बंटवारा! इतना ही नहीं तो स्वयं जिन्ना को भी अलग देश का स्वप्न साकार हो ही जायेगा इसका कतई बिश्वास नहीं था। कराची हवाई अड्डे पर उतरते ही उन्होंने अपने मन की यह बात सचिव को कही थी। लेकिन देशवासियों को 14 अगस्त 1947 की रात्रि को विभाजन के रूप में  अंग्रेज, कांग्रेस और मुस्लिम लीग की तिकड़ी अश्व्थामा जख्म दे गयी। यह जख्म छ: दशकों के बाद भी लगातार रिस रहा है और ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है।
क्या भारत फिर अखंड हो सकता है-
प्राय: पूछा जाता है कि क्या विभाजन खत्म हो सकता है? वैसे यह प्रश्न ही आत्मविश्वास की कमी का सूचक है। अगर देश टूट सकता है तो एक क्यूँ नहीं हो सकता है? इस की सम्भावना पर विचार करने से पहले अखंड भारत क्यूँ जरूरी है इस पर  चर्चा आवश्यक है। सबसे पहली बात यही है कि देश के सभी महापुरुषों
ने योगी अरविन्द, मदन मोहन मालवीय, विनोबा भावे, और संघ के दूसरे प्रमुख श्री गुरु जी गोलवलकर सभी ने भारत विभाजन को प्रकृति के विरुद्ध कहा है। इसके साथ उन्होंने स्पष्ट चेताया था कि साथ जब तक विभाजन बना रहेगा भारत के साथ-साथ इसके पूर्व अंग भी दुखी ही रहेंगे। पाकिस्तान और बांग्लादेश उस नाराज बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं जो गुस्से में घर से बाहर निकल कर वापिस आने के लिए  माँ का ध्यान खींचने लिए कभी दरवाजा पीटता है तो कभी तोड़फोड़ तथा चीख पुकार करता रहता है जब तक माँ उसे अपने अंचल में न ले ले।  समझदार माँ उसकी बातों, शब्दों पर ध्यान न देकर कर  प्यार-पुचकार या जबरदस्ती उसे घर के अंदर खींच लेती है। बच्चा भी बोले कुछ भी लेकिन वास्तव में यही चाहता है। अत: भारत के उस माँ की तरह व्यवहार करते ही विभाजन खत्म हो कर रहेगा। आज जब हम विचार करते हैं तो उन महापुरुषों की भविष्यवाणी अक्षरश: सच लगती है। भारत भी पाक प्रेरित आतंकवाद से रोज नये -2 जख्म खा रहा है वहीं ये पड़ोसी स्वयं भी खुश नहीं हैं। समाधान के लिए उन महापुरुषों की दूसरी बात अर्थात विभाजन समाप्त कर अखंड भारत के स्वप्न को सच में बदल देना ही समस्या का एक मात्र हल है। क्या यह सम्भव है? पहली बात है कि युवाओं के संकल्प के आगे असम्भव कुछ भी नहीं होता। हमें याद रखना होगा कि हर बड़ा लक्ष्य चाहे कभी आसमान में उड़ने का रहा होगा या भारत को अंग्रेज सत्ता के खूनी पंजों से मुक्त करा लेने का होगा शुरू में दिवास्वप्न ही होता है। किसी देश की सीमाएं बिलकुल स्थायी नहीं होती बल्कि उस देश के युवाओं के संकल्प और बहुबल की अनुगामी होती हैं। दुनिया की ओर भी देखें तो कई देश दोबारा एक हो रहे हैं। जर्मनी एक चुका है। कोरिया और अफ्रीका एक होने के मार्ग पर हैं। फिर भारत ही क्यूँ नहीं हो सकता अखंड?
कैसे हो यह स्वप्न साकार--
सबसे पहली बात कि गुरु नानक के ननकाना साहिब, कुश के कसूर और लव के लाहौर,अपने प्रिय मानसरोवर, आधे से ज्यादा पंजाब, कश्मीर और उधर ढाका की ढाकेश्वरी के बिना भारत सम्पूर्ण नहीं हो सकता है, यह दर्द और विश्वास युवा भारत के मन में पक्का बैठना आवश्यक है। इसलिए देश को अखंड करने के अपने स्वप्न और संकल्प को न केवल बनाये रखना होगा बल्कि उस दिशा आगे बढ़ने की योजना भी करनी होगी। हमे याद रखना होगा कि बड़े स्वप्न को साकार करने लिए उतना ही बड़ा धैर्य और सतत परिश्रम की आवश्यकता है। प्रतिवर्ष 14 अगस्त को युवाओं को भारत को अखंड करने की राष्ट्रीय प्रतिज्ञा करवाई जाये। पहले कदम के नाते भारत को विश्व की सैन्य और आर्थिक महाशक्ति में बदलना ताकि ये देश भारत के साथ आने की स्वयं पहल करें। भारत इन देशों को आर्थिक और सैन्य सहायता उपलब्ध कराए। पडोस में इन देशों को चीन के सम्राज्यवाद से जूझने के लिए इन हिम्मत दे और अन्य आवश्यक सहयोग करे। फिर अखंड भारत का अर्थ इन् सभी देशों का भारत में एकदम विलय नहीं है। पहले कदम के रूप में नेपाल की तरह स्वतंत्र राष्ट्र रहते हुए भी ये देश अखंड भारत का हिस्सा बन सकेंगे। भारत का मूल स्वभाव, दिल विशाल है इसलिए भारत के साथ  किसी भी देश को साथ आने में कठिनाई नही है। केंद्र की नई सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं। इन कदमों के कारण निश्चित ही आगे सार्थक परिणाम आएंगे।

 

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