शुक्रवार, 30 मई 2014

नए भारत के निर्माण के लिए सांस्कृतिक मूल्यों की गिरावट को रोकना ही होगा

'यथा राजा तथा प्रजा' की लोकोक्ति को साकार करते हुए दिल्ली में आशावादी नेतृत्व आते ही आज पूरे देश में साकारात्मक उर्जा का सृजन हो गया है। यह हमारे लिए अत्यंत शुभ संकेत है। हम सब जानते हैं कि आगे बढने के लिए आशावाद, उत्साह व् उमंग का होना अत्यंत आवश्यक होता है।  व्यक्ति हो या राष्ट्र बड़ी सफलता के लिए ये मूल आवश्यक तत्व हैं। अभी तक हम सभी देशवासी घोर निराशावाद से जूझ रहे थे। और अब जब सोभाग्य से सब ओर, सब वर्गों में आशावाद जगा ही है ऐसे में कुछ आवश्यक पहलुओं की ओर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है।
         धर्म और संस्कृति  में बसते भारत के प्राण-संस्कृत कोई क्षणिक घटना नहीं होती है।  हजारो लाखों सालों के निरंतर शोध व् अनुभव का परिणाम होती है संस्कृति। हमारे पूर्वजों ने बड़े परिश्रम से हिन्दू संस्कृति का विकास किया है। इसे हिन्दू संस्कृति कवक इसीलिए कहते हैं कि इसकी खोज हिन्दू  संतों ने क है। वास्तव में ये मानव संस्कृति है।  इसी संस्कृति के बल पर हमने हजारों सालों तक विश्व का मार्गदर्शन किया है।  विश्व में अनेक देशों की कुल आयु से ज्यादा तो हमारा विदेशी हमलावरों से जूझने का कालखंड है। भारत से कटे भारतीय और दुनिया के अनेक विद्वान भारत की इस अदभुत शक्ति का रह्श्य नहीं ढूंढ पा रहे हैं। इसका बड़ा कारण भारत के इतिहास के प्रति उनकी अज्ञानता और अविश्वास है। हमारे प्राय: सभी महापुरुषों ने इसे स्पष्ट किया है कि भारत के प्राण धर्म और संस्कृति में बसते हैं। 'राक्षस की जान तोते में' पुरानी कहानी की तरह जब तक यहाँ धर्म और संस्कृति सुरक्षित है, दुनिया में कोई भी भारत का बाल बांका नहीं कर सकता। भारत की इस जीवन शक्ति को बेशक हून, कुषाण जैसी हमलावर  जातियां  नहीं समझ पायीं लेकिन मुसलमान ने थोडा-2और अंग्रेज ने पूरी तरह इस शक्ति को पहचान लिया था। मुसलमान हमलावरों ने जहाँ भारत को खत्म करने के लिए सैनिक हमले के बाद संतों, मन्दिरों व् पुस्तकालयों को जी भर कर निशाना बनाया वहीँ अंग्रेज ने और गहरे जा कर शिक्षा के माध्यम से भारतवसिओं को ही भारत के विरुद्ध खड़ा कर दिया। अंग्रेज काफी मात्रा में अपने षड्यंत्र में सफल  भी हो गया। गुरु पुत्रो व् अन्य असंख्य ज्ञात अज्ञात बलिदान के बाद भी हमने जिस धर्म नहीं छोड़ा आज हमारे करोड़ों बन्धु भारी संख्या में धर्म परिवर्तन कर चुके या कर रहे हैं। इसी प्रकार हमारी बहनें अपनी जिस इज्जत की रक्षा के लिए बलिदान हो गईं, आज वहीं बड़ी संख्या में हमारी बहनें फेशन और आधुनिकता के नाम पर सब कुछ कर रही हैं। यही तो अंग्रेज चाहता था की हम अपने धर्म और संस्कृति के प्रति  अविश्वाश से भर जाएँ क्यूंकि जब तक धर्म का कवच भारत ने धारण कर रखा है भारत का कुछ नहीं बिगड़ सकता। क्या है जिसे हमें संभालना है आईये इस पर चर्चा करें।
वैश्वीकरण के चलते संकट में भारतीय जीवन मुल्य- वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व एक बाजार बन गया है। हम विश्व को बड़ा परिवार मानते हैं। 'वसुधैव कटुम्बकम' हमारा पुराना सूत्र वाक्य रहा  है। विश्व को बड़ा बाजार बना देने के कारण हमारे जीवन मूल्यों पर संकट सा छा गया है। हमें सुखद भविष्य के लिए इन सबको संभाल कर रखना होगा।
भाषा-  भाषा किसी भी समाज की जीवन्तता तथा संस्कृति की वाहक होती है। हमारी संस्कृत हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ हर द्रिश्तिबसे सर्वोत्तम हैं। इसके बाबजूद हमने अपनी सब भाषाओं को अंग्रेजी के चरणों में को बैठा दिया है। हम घरों में बच्चों को जबरदस्ती अंग्रेजी रटा रहे हैं। क्या हम जानते हैं कि सीखने के लिए माँ बोली ही सर्वोत्तम मानी गयी है? अपनी भाषा पर अधिकार और गौरव हासिल कर हम दुनिया की सारी भाषाएँ सीखें इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। सबसे बड़ा झूठ हम अंग्रेजी को विश्व भाषा कह कर स्वयम या ओरों को परोसते हैं। आज सबसे ज्यादा शिक्षण माताओं का होना जरूरी है। माताओं की अपने बच्चे को कोंवेंट में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने की कीमत असंख्य बच्चे अपना मासूम बचपन इतना ही नहीं तो जीवन तक् खो कर चुका रहे हैं। कब समझेंगी हमारी देवियाँ कि अपनी अधूरी ख्वाइशें बच्चों के ऊपर लाद कर वे उनका भला नहीं बल्कि जाने अनजाने उनका अहित ही कर रही हैं।
वेश भूषा-  हमारे ऊपर भाषा जितना ही बड़ा हमला हुआ है वेश भूषा को लेकर। हमारी नई पीढ़ी जीन और यूरोपियन वस्त्रों की दीवानगी में अपने स्वास्थ्य को भी दाव पर लगा रही है। एक् तरफ विदेश में महिलाओं में साडी का प्रचलन बढ़ रहा है वहीं यहाँ हमारी  युवतियां जीन पहन कर और बाकि कपड़ों की लम्बाई लगातार घटा रहीं हैं। तुर्रा यह कि इसी में अपने आधुनिक होने का भ्रम पाल रही हैं। वास्तव में वेश भूषा स्थानीय वातावरण व् मौसम आदि के अनुसार विकसित होती है। हमारे महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द एवं जगदीश चन्द्र बसु आदि ने भारतीय वेश में ही स्वाभिमान पूर्वक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। फिर अपनी वेश भूषा पर हीन भावना क्यों?
खान पान-  आज जब सारे बिश्व में भारतीय भोजन की मांग बढ़ रही है ऐसे में हमारे यहाँ पिज्जा और बर्गर की मांग का बढना चिंता की बात है। पिज्जा, बर्गर से बच्चों में मोटापा हारमोंस के असंतुलन  ने सबके कान खड़े कर दनिए हैं। जिन देशों ने इस महान भोजन की खोज की वहां स्कुल की क्न्टीनों में  ये पिज्जा और बर्गर रखना  प्रतिबंधित हो चूका है।  ऐसी ही स्तिथि कोल्ड ड्रिंक की है। हमारे परम्परागत शीतल पेय शीतलता के साथ साथ स्वास्थयवर्धक भी होते हैं। इसी प्रकार हमारे भवन कला भी विदेशी दासता के शिकार हो कर हमारे लिए खर्चिले होने के बाद भी उपयोगी नहीं हैं। हमारी प्राचीन  तकनीक ऐसी थी कि हम विपरीत मोसम भी आसानी से झेल लेते थे।
प्रकृति और महिला शोषण का शिकार- सबसे ज्यादा पाश्चत्य  जीवन शैली का दुष्परिणाम प्रक्रति और महिलाओं को उठाना पढ़ रहा है। वास्तव में हमारे यहाँ प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है। इसलिए हमने धरती, नदी , वृक्ष व् पर्वत सबको को श्रद्धा से देखा है। इसीलिए हमने लाखों सालों तक प्रकृति से जीवन पाया कभी भी इसने हमें निराश नहीं किया। जबकि यूरोपियन सोच और व्यवहार के चलते 300/400 वर्षों में ही प्रकृति हाथ खड़े कर रही है। धरती बंजर होनी शुरू हो गयी है। मानों प्रकृति और मनुष्य में खुनी संघर्ष ही प्रारम्भ हो गया है। यही हालत हमारी माता बहनों की है। इसाई और मुस्लिम सोच में महिला को उपभोग की चीज मानी गया है। इसलिए इसका बाजारी ढंग से उपभोग करना और आवश्यकता पूरी हो जाने पर छोड़ देना। जब तक यह सोच रहेगी महिला के ऊपर अत्याचार रुकना सम्भव नहीं। हमारे सुखद और जीवन के लिए प्रकृति और महिला के प्रति सोच बदलने की जरूरत है। केवल कानून बनाने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा।
स्वयं से करें पहल- घरों में जन्म दिन पर केक काटने के बजाये हवन पूजा कर बजुर्गों का आशीर्बाद लेना। इसी प्रकार शादी और शादी की सालगिरह आदि में सादगी और परम्पराओं के पालन में भारतीय सोच झलकनी चाहिए।  निमन्त्रण पत्र,अपने हस्ताक्षर हिंदी या अपनी प्रादेशिक भाषा में करना हमारे स्वभाव में आना चाहिए। हमें याद रखना होगा कि अपनी संस्कृति को हमारे पूर्बजों ने बड़ी कीमत चुका कर हम तक पहुँचाया है। संस्कृति की इस ज्योति को नई पीढ़ी के हाथ में सुरक्षित देना हमारा दायित्व है।

गुरुवार, 29 मई 2014

धारा 370 पर संवाद से भाग क्यूँ रहे हैं सेक्युलर महारथी?

जम्मू कश्मीर में धारा 370 को लेकर छिड़ी बहस का स्वागत करने के बजाए सेक्युलर खेमे में खलबली मच गयी है। होना तो ये चाहिए था कि 370 के ये सब  पैरोकार बहादुरी से इस धारा के समर्थन में तर्क देते और पूरे देश को इसको बनाये रखने की जरूरत बताते। मजेदार बात है कि संघ को फासिस्ट बताने वाले खुद सम्वाद प्रक्रिया में शामिल होने के बजाए बहस से भागने के लिए ओछे ब्यान दे रहे हैं। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री चर्चा शामिल होने के बजाए भारत से अलग होने की धमकी दे कर अपनी अलगाववादी राजनैतिक सोच ही देश के सामने लाये हैं। यह तो 'खाना भी और गुरार्ना भी' भी वाली बात हुई। अब इस देश का युवा ये राजनैतिक पाखण्ड कहाँ सहन करने वाला है। वैसे भी अब्दुल्ला परिवार अपनी जरूरत के मुताबिक़ ही देशभक्त बनता है।  जम्मू कश्मीर किसी परिवार राजनैतिक द्ल या व्यक्ति विशेष की पै्तृक सम्पत्ति नहीं कि इस राज्य को लेकर कुछ भी करने का ये लोग दम भरते रहें। आज वास्तव में पूरे देश में इस धारा के उपर खुली  चर्चा  होनी चाहिए। धारा 370 बेशक जम्मू कश्मीर में लागू है लेकिन जम्मू कश्मीर पूरे देश का विषय है। वहां खर्च होने वाली अकूत धन सम्पति सभी देश वासिओं के खून पसीने का अंश है। इतना ही नहीं वहां कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए , सीमा की सुरक्षा के लिए बलिदान होने वाले सैनिक पूरे देश की अमुल्य निधि है। इतना सब होने के कारण जम्मू कश्मीर के भविष्य को एक परिवार, दल या व्यक्ति पर  विशेष रूप से जिनका स्वयम का इतिहास शंका के घेरे में है कैसे छोड़ा जा सकता है?  अब यह तर्क भी ज्यादा नहीं चल सकता कि विशेष परिस्तिथि के कारण यह प्रावधान किया गया। अगर यह सच भी है तो देश जानना चाहता है कि अब तो परिस्तिथिया  सामान्य हैं। फिर देश अब क्यूँ इस धारा का भार सहन करे? इसी धारा की आड़ में इस राज्य में भारत समर्थक शक्तियां कमजोर ही रहीं । इतना ही नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकार के निशाने पर ही रहीं। लाखों कश्मीरी पंडितों को घरबार छोड़ कर दर दर की ठोकरें खाने को बेबस होना पड़ा। इन की दर्द से बेखबर दिल्ली देश की एकता और अखंडता के नाम पर पाकिस्तान समर्थक तत्वों की कभी न ख्त्म होने वाली भूख को शांत करने जुट गयी। परिणाम जो होना था वही हुआ अर्थात 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यूँ ज्यूँ दवा की'। सबसे बड़ा गुनाह जो वोटों की राजनीति करने वाले दलों ने किया वह है इस विषय को मुस्लिम भावनाओं से जोड़ दिया । इस प्रकार सत्ता के ठेकेदारों ने अपनी कुर्सी की भूख में मुस्लिम भाईओं को  पूुरे देश की नजरों में संदिग्ध बना दिया। यह एक राज्य को दिया गया विशेष दर्जा है इसका लाभ या हानि वहां की सारी प्रजा को मिलता है फिर यहाँ मुस्लिम कहाँ से आ गये? सचाई तो यह है कि इस धारा की आड़ में जम्मू व् लेह लद्दाख से बहुत बड़ा अन्याय किया गया। यह केवल कश्मीर वेल्ली की पोषक बन कर रह गयी है। इसके अलावा इसकी आड़ में यह राज्य और अनेक लाभों से बंचित रह गया।
अब जब चर्चा निकल ही पड़ी है तो खुल कर होनी चाहिए, तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए और चर्चा मात्र चर्चा न रह कर किसी निर्णायक मोड़ तक पहुंचनी चाहिए। शायद नियति ने यह पुण्य का कार्य करने के लिए वर्तमान सरकार को चुना होगा। वर्तमान सरकार को इसके लिए दृढ़ता दिखानी होगी। पाकिस्तान और कश्मीर घाटी में खेल रहीं विदेशी शक्तियां इस धारा को किसी भी सूरत में बचाना चा्हेंगी। क्यूंकि इस अलगाववाद को प्रोत्साहन  देने वाली धारा के जाते ही उन सबको कश्मीर घाटी से अपना बोरी विस्तरा समेटना होगा यही सोच कर ये घबरा रही हैं। देशभक्त मुस्लिम भाईओं को भी देश हित में इस धारा के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाहिए। इससे उन के प्रति बहुसंख्यक समाज में अच्छा सन्देश जायेगा।

बुधवार, 28 मई 2014

ऐतिहासिक भूल को ठीक करने की दिशा में बढती मोदी सरकार

धारा 370 को लेकर नई सरकार में राज्यमंत्री डॉ जितेंदर सिंह के ब्यान ने देश की राजनीति में जोरदार हलचल पैदा कर दी है। वैसे तो यह राजनीतिक चीख पुकार चाय के कप में तूफ़ान से अधिक कुछ नहीं है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री अमर अब्दुल्ला का ब्यान राजनैतिक ब्यान कम  धमकी अधिक है । क्या मुख्यमंत्री जानते हैं कि अब दिल्ली में वोटों  के लिए  देश की एकता का सौदा करने वाली सरकार नहीं हैं। कश्मीर के राजनेताओं को समझना होगा कि मुस्लिम वोटों के नाम पर दिल्ली को डराने या ब्लेक मेल करने के दिन अब लद गये हैं।
      वैसे नई सरकार ने 370 पर बहस की बात करके कौन सा पाप कर दिया? क्या राजनैतिक मूल्यों की दुहाई देने वाले इन महानुभावों को याद है कि इन सब मुद्दों पर देश ने भारी जन समर्थन इस सरकार को दिया है? और वैसे भी बहस से डरना क्या यह नहीं  दर्शाता है कि आपके पास कहने को कुछ नहीं है। मात्र राजनैतिक दादागिरी से कब तक आप पूरे देश को मुर्ख बनाते रहोगे? मुख्यमंत्री का ब्यान कि धार 370 नहीं तो जम्मू कश्मीर भारत के साथ नहीं रहेगा बहुत ही गैर जिमेदराना है। इसके लिए उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। वास्तव में धारा 370 की आड़ में अब्ब्दुल्ला  परिवार ने देश को इतने वर्षों तक मुर्ख बनाया है। इस मामले को भावनात्म्क बना कर सत्ता का सुख भोगा है। यही स्तिथि मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले अन्य दलों की है। प्रश्न है की 370 पर बहस से ये सभी भाग क्यूँ रह हैं? क्या इसलिए कि उन्हें भी पता है की उनके पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं है? स्वयम पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि धारा 370 का प्रावधान अस्थाई है। समय के साथ स्वयं घिस जाएगी। उन्होंने इसे मात्र 10 साल के कहा था। डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि उस समय सभी बड़े नेताओं ने इस धारा का कड़ा विरोध किया था। इस धारा के कारण देश का ही नहीं स्वयम जम्मू कश्मीर का भी बहुत नुकसान हुआ है। यूँ कहा जाये कि आतंकवाद के संरक्षण का कार्य भी यही धारा करती है तो कुछ गलत नहीं है। आज जब देश में इस पर बहस की बात हो रही है तो इसका स्वागत होना चाहिए। यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि धारा 370  को केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं मानना चाहिए।  इसका लाभ या नुक्सान जम्मू कश्मीर के सभी नागरिकों को होता है। जम्मू कश्मीर में अच्छी संख्या में हिन्दू भी हैं जो इस धारा के विरोध में खड़े होकर देश के साथ चलने को तैयार है। रोचक बात है कि बड़ी संख्या में जम्मू कश्मीर के मुसलमान भी इस धारा के समाप्त करने के पक्ष में हैं। केवल इस की आड़ में राजनीति करने वाले दल ही इसका विरोध कर अपनी राजनीती करते आये हैं। फिर अभी कौन सी इस धारा को समाप्त कर दिया है? क्या यह कोई गीता या कुरान है कि इस बात करना भी पाप है?  फिर ये राजनैतिक चीखपुकार क्यूँ? इतिहास ने जम्मू कश्मीर में दिल्ली से हुई गल्तिओं को ठीक करने का अवसर दिया है। देश को इस का पूरा लाभ उठाना चाहिए। सरकार के साथ खुल कर खड़े होना चाहिए। क्या हमें उन लाखों हिन्दुओं की सिसकियाँ सुनाई देती हैं जो विभाजन के बाद जम्मू में बस गये थे। उन्हें इसी धारा की आड़ में आज तक नागरिकता नहीं मिली है? और जब विभाजन के समय पकिस्तान चले गये कश्मीरी मुसलमानों को जम्मू कश्मीर में  बसाने की बातें चलती हों तो क्या उनके जले पर नमक छिडकने की बात नहीं होती है। आखिर हम कब हिन्दू मुसलमान से ऊपर उठ कर एक नागरिक के रूप में सोचना और व्यवहार करना शुरू करेंगे? अब देश के सौभाग्य से दिल्ली में में ऐसा सोचने और करने वाली सरकार आयी है  तो यह तो देश के लिए शुभ संकेत है। देश के मुसलमान भाईओं को भी आगे आकर अपने तथाकथित पैरोंकारों की गिरफ्त से बाहर आकर केवल वोटर नहीं तो सम्मानजनक नागरिक के नाते देश की प्रगति का भागीदार बनना चाहिए।

मंगलवार, 27 मई 2014

मोदी सरकार का पहला निर्णय ऐतिहासिक एवं दूरगामी परिणामकारक होगा

जन सामान्य की धारणा के अनुरूप ही रहा मोदी सरकार का पहला निर्णय। एकदम ऐतिहासिक और अदभुत! विदेश में छुपाये काले धन को वापिस लाने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के लिए कार्यदल प्राथमिकता के आधार पर कर गठित कर वास्तव में मोदी ने जनता का दिल जीत लिया है। इस कार्यदल को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह केवल ओपचारिकता भर नहीं होगा बल्कि यह दल बहुत जल्दी परिणाम ले कर देश को बहुत बड़ा उपहार देगा। अगर काला धन देश में वापिस आ जाता है और राष्ट्र की सम्पत्ति घोषित हो जाती है तो करोड़ों लोगों के जीवन में सुधार आ सकता है। यद्यपि विदेश में भारत के काले धन के सही आंकड़ों का पता तो बाद में ही लगेगा तो भी उस अकूत सम्पति को भारत वापिस ला कर सरकारी सम्पत्ति घोषित कर विकास के लिए समर्पित करने से देशवासिओं के बीच उत्साह और आत्मविश्वास का सन्देश जायेगा। युवाओं में घोर आशावाद का संचार होगा। अपने देश और राज नेताओं के प्रति विश्वास लौट आएगा। नेता और उद्योगपति भी आगे से अपना पैसा देश में ही रखने का मन बनायेंगे। यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है की  लोग पैसा बाहर भेजते क्यूँ हैं इस की भी पड़ताल होनी चाहिए। और वर्तमान व्यवस्था में कुछ आवश्यक संशोधन भी करने होंगे। टैक्स का सरलीकरण और काले धन की परिभाषा भी युगानुकुल होनी चाहिए। समाजवाद की कम्युनिस्ट परिभाषा के चलते आज ज्यादा पैसा कमाना पाप मन जाता है। फिर व्यक्ति उस पाप को इधर उधर छुपाता घूमता है। पाप अधिक पैसा कमाना नहीं बल्कि गलत तरीकों से कमाना और टैक्स से बचना है। आवश्यकता है कि समयबद्ध कार्य योजना बना कर इस विषय पर समग्रता से विचार कर शीघ्र परिणाम देश के सामने आये यह सुनिश्चित किया जाये।

सोमवार, 26 मई 2014

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ -व्यक्ति निर्माण का महायज्ञ

शायद बहुत ही कम देश्वासिओं को पता होगा  कि मई, जून की भयंकर गर्मीं में जब लोग अपने परिवार के साथ मनाली, मंसूरी या कश्मीर जैसे ठंडे स्थानों में आनन्द मनाने जाते हैं वहीँ हर साल लगभग 20,000 युवा व् प्रौढ़ कठोर साधना के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं। संघ की कार्य पद्धति का ही परिणाम है कि बिना किसी शोर-शराबे के यह साधना गत आठ दशकों से निरंतर चलती आ रही है। यहाँ रोचक और बहुतों को हैरान करने वाली बात होगी कि इन वर्गों में भोजन, वर्दी तथा वर्ग स्थान तक आने जाने का खर्चा स्वयंसेवक स्वयं वहन करते हैं। विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी पूरी शक्ति देशभक्त, चरित्र एवं अनुशाशन से युक्त नागरिक निर्माण करने में लगाती है। अपनी स्थापना के तुरंत बाद संघ बिना किसी प्रचार के साधारण सी दिखने वाली शाखा के द्वारा अपनी साधना में जुट गया। इसी अद्भुत कार्य शैली के बल पर आज संघ भारत में एक शक्ति बन चुका है। संघ देश प्रेमिओं के लिए आशा और विश्वास वहीँ देश विरोधी शक्तिओं को अपनी राह में रोड़ा दिखता है। इसी कारण संघ का भारी विरोध भी होता है। संघ की कठोर प्रक्रिया से निकले लाखों स्वयंसेवक देश सेवा में अपना योगदान डाल रहे हैं। यहाँ यह जानने योग्य है की ज्ञात स्वयमसेवकों से अज्ञात स्वयंसेवक कई  गुणा अधिक हैं जो मूक साधन में लगे हुए हैं। स्वयंसेवक के जीवन का सूत्र ही है-
तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं।। संघ की मौन लेकिन निरंतर साधना के कारण ही आज देश की बागडोर स्वयंसेवकों के हाथ में है। देश वासिओं को स्वयंसेवकों से बहुत आशा है। देश स्वयंसेवकों पर आँख बंद कर विश्वास भी करता है। रोचक बात ये है की राजनैतिक कारणों से संघ का विरोध करने वाले अनेक लोग व्यक्तिगत रूप में संघ के प्रशंशक हैं। और अपने मन की यह बात वे सार्बजनिक तौर पर व्यक्त करते भी रहते हैं। इस वर्ष के प्रशिक्षण वर्ग भी प्रारम्भ हो चुके हैं। वर्गों का प्रकार - सात दिन का प्राथमिक शिक्षा वर्ग इसके बाद 20-20 दिन के प्रथम और द्वितीय वर्ष और ऑपचारिक प्रशिक्षण का अंतिम पड़ाव 30 दिन का तृतीय वर्ष। यहाँ उलेखनीय है कि जहाँ प्राथमिक वर्ग अपने जिला प्रथम व् द्वितय वर्ष अपने राज्य में होता है वहीँ  तृतीय वर्ष केवल नागपुर में ही होता है। इन्ही वर्गों से प्रेरणा प्राप्त कर हर साल लगभग 400 युवा अपना पूरा समय संघ के माध्यम से राष्ट्र सेवा को समर्पित करते हैं। ये प्रचारक संघ संगठन की बहुत बड़ी ताकत मानी जाती है। आईए! देशभक्ति के इस महाभियान से हम भी जुड़ें। संघ को अखबार, चैनल या नेताओं के द्वारा समझने के बजाये सीधा जुड़ कर स्वयम अनुभव करें । संघ कार्य की गहराई, पवित्रता और राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने का जनून और इतना ही नहीं तो इसके लिए निश्चित कार्ययोजना को समीप हो कर देखें ।
 
     

आखिर भारत ने ढूंढ ही लिया अपना नायक

हम सब जानते हैं भारत अत्यंत प्राचीन और श्रेष्ठ राष्ट्र है। आज के तथाकथित प्रगत राष्ट्र जब अभी पैदा भी नहीं हुए थे उस समय भी भारत में सामवेद के स्वर गूँज रहे थे। हमने हजारों सालों तक सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन किया है। समय बदला, सृष्टि चक्र में हम पीछे रह गये। स्वतंत्रता के बाद हम अपने नेतृत्व की अज्ञानता या विदेशी आचार विचार के प्रति जरूरत से ज्यादा लगाव के कारण  हम और ही भुलभुल्यिओ में गुम हो गये। भारत इस चक्रव्यूह से बाहर आने लिए तड़प रहा था। इसके लिए किसी नायक की राह देख रहा था। आज श्री नरेन्द्र मोदी में भारत को अपना तारनहार दिखाई दे रहा है। बहुत काम करने को पड़े हैं। करोड़ों देश वासिओं को स्वतन्त्रता का सही एहसास करना शेष है। अभी तो स्तिथि है-उगा सूर्य कैसा कहो मुक्ति का ये, उजाला करोड़ों घरों में न पहुंचा।। आओ प्रार्थना करें कि श्री नरेन्द्र मोदी भारत को योग्य नेतृत्व दे सकें। भारत माता की शाश्वत इच्छा को साकार कर सके।