बुधवार, 10 सितंबर 2014

और बहुत कुछ करना बाकि है मोदी सरकार को

मुझे लगता है कि मात्र सौ दिन में जन सामान्य में आशावाद का संचार कर देना केंद्र की मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। किसी भी व्यक्ति, समाज व् राष्ट्र को आशा, विश्वास, उमंग व् उत्साह के बल पर किसी भी ऊँचाई को छूना सम्भव है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों में देश में आशावाद तथा नेताओं के प्रति विश्वास में आश्चर्यजनक बढौतरी हुई है। कल तक देश व् समाज की चर्चा छिड़ते ही निराशा में लोग कह उठते थे कि छोडो जी, इस देश का कुछ नहीं हो सकता है। हम तो क्या भगवान भी कुछ नहीं कर सकता है। नई सरकार के आते ही चारों तरफ उत्साह,आशा व् आत्मविश्वास देखा जा सकता है। नई सरकार द्वारा प्राय: हर मोर्चे पर नई शुरुआत, दूरगामी प्रभाव वाले साहसिक निर्णय इसकी सही दिशा और स्पष्ट सोच के परिचायक है। आशावाद के संचार साथ-साथ जनसामान्य को देश की आर्थिकी में शामिल करना तथा सरकार संचालन में सहभागिता पक्की करने के लिए जनसामान्य के सुझाव आमंत्रित करना निसंदेह प्रसंशनीय है। वास्तव में यही असली लोकतंत्र है। लोगों को धैर्यपूर्वक सरकार द्वारा उठाये कदमों के परिणामों की प्रतीक्षा करनी, सरकार का सहयोग करना तथा पीएम्ओ को व्यवहारिक सुझाव देने चाहिए। हम सब जानते हैं कि दवाई कितनी भी अच्छी हो, डॉ. कितना भी योग्य हो लेकिन नियम से, पूरे अनुपान के साथ धैर्यपूर्वक दवाई  लेने से ही अपेक्षित परिणाम आ पाता है।  देश के सामाजिक व् राजनैतिक जीवन में दूरगामी तथा आमूलचूल परिवर्तन के लिए कुछ सुझाव यहाँ दिए जा रहे हैं।
शिक्षा- हम सब जानते हैं कि प्राचीन भारत में साक्षरता दर शत प्रतिशत थी। बहुत वर्ष पहले की छोड़ भी दें तो प्रसिद्ध गाँधीवादी डॉ.धर्मपाल के अनुसार 18 वीं सदी में भी इंग्लैण्ड के कुल प्राथमिक स्कूलों से ज्यादा स्कूल अकेले हमारे बंगाल में ही थे। भारत में शिक्षा निशुल्क तथा सबको समान रूप से मिलती थी। आज की महंगी शिक्षा हमारे माता-पिता के लिए तथा बच्चों के लिए बहुत बड़ा तनाव का कारण बन गयी है। नई सरकार को शिक्षा को लेकर मूल चिन्तन करना होगा। सरकार को सेवानिवृत पढ़े लिखे लोगों को झुंगी-झौंपडियो के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षा अमीरी गरीबी के बजाय बच्चे के बौद्धिक स्तर, पढने की रूचि आदि के आधार पर देनी चाहिए। सरकारी विद्यालयों का स्तर उन्नत करने के लिए सरकारी कर्मचारियों को सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ना आवश्यक होना चाहिए। निजी स्कूलों को सब विद्यार्थियों के लिए अपने दरबाजों को खोलना होगा। इसके लिए सरकार को उन विद्यालयों की आर्थिक सहायता करनी चाहिए। इसके अलावा शिक्षा देश की जरूरत के मुताबिक, ,रोजगारपरक, संस्कारप्रद, मां बोली में तथा देश समाज के प्रति समर्पण पैदा करने वाली होनी चाहिए।
चिकित्षा- स्वास्थ्य मनुष्य का मौलिक अधिकार है। बचपन से ही स्वस्थ रहने के मुलभुत सिधांत बच्चों को पढाये जाने चाहिए। एक अनुमान के अनुसार 80 प्रतिशत से अधिक बिमारियों का इलाज हमारी रसोई में ही है। इसी प्रकार अधिकांश बिमारियों को व्यायाम व् जीवन जीने की शैली से रोक जा सकता है। नई पीढ़ी को अपनी श्रेष्ठ विरासत की जानकारी और इसमें विश्वास पैसा करना होगा। सरकार को अस्पताल बनाने से ज्यादा अखाड़े, खेल के मैदान पर ध्यान देना होगा। स्वास्थ्य सेवा पूर्णत: निशुल्क होनी चाहिए। आर्थिक दृष्टि से समर्थ-सक्षम मन्दिरों, बड़े व्यवसाइयों तथा रोगी को अपनी इच्छा से आर्थिक सहयोग करने का आग्रह करना होगा। आयुर्वेद तथा अन्य कम खर्चीली चिकित्षा पद्धतियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
न्याय- सरकारी तन्त्र तथा समाज में न्याय प्राप्त करना मनुष्य की सहज इच्छा होती है। आम आदमी को आज न्याय मिलता नहीं खरीदना पड़ता है। इस कारण गरीब आदमी बहुत बार न्याय से वंचित ही रह जाता है। पंचायत व्यव्स्था शक्तिशाली होने के कारण पहले हमारे व्यक्ति को न्याय गाँव में ही मिल जाता था। यह न्याय व्यक्ति को निशुल्क, तुरंत और शहर में टक्करें खाय बिना मिल जाता था। हमें पंचायतों को फिर से शक्तिशाली बना कर अधिकांश मामले पंचायत से हल करवाने चाहिए। हमारे देश में हजारों सालों से शिक्षा, चिकित्षा व् न्याय सबको निशुल्क उपलब्ध था। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि हमारे यहाँ ये तीनों सुविधाएँ समाज द्वारा संचालित पूर्णत: स्वावलम्बी व् स्व निर्भर व्यवस्था से मिलता था। 'को हो राजा हमें क्या हानि- इसीलिए कहावत चलती थी। धर्म व् कर्तव्य भाव से प्रेरित गुरुकुल शिक्षा, वैद्य चिकित्षा तथा पंचायत न्याय देने को तत्पर रहते थे। अंग्रेज ने सबसे पहले इस व्यवस्था को नकार कर सबको सरकार के दरवाजे पर प्रार्थना पत्र लेकर खड़े होने को बेबश किया। समाज का स्वाभिमान और आत्मविश्वास ही समाप्त हो गया। यही पद्धति आजादी के बाद हमारे राजनेताओं को ठीक लगी। आम व्यक्ति को अपने ही पैसे से अपने लिए सुविधाएँ जुटाने के लिए नेताओं और प्रशासन के आगे नाक् रगड़ते देखा का सकता है। इस सबको तुरंत और पूर्णत: बदलने की जरूरत है।
पांच साल में मतदान एक वार- आज समाज में आये दिन चुनाव का बुखार चढ़ा रहता है। इससे सरकारी खर्चे से ज्यादा चिंता का विषय समाज में दूरियों का बढ़ते जाना हैं। चुनाव पांच वर्ष में एक बार ही होने चाहिए। मतदाता अपने कौंसलर, विधायक तथा सांसद तथा अन्य प्रतिनिधियों के लिए एक साथ मतदान करे। इससे लोग राजनैतिक बैर आदि भूल कर शेष समय समाजिक कार्यों में सक्रिय हो सकेंगे। देश के आम आदमी का करोड़ों रुपया बचेगा, आये दिन चुनावों में लगने वाले लाखों कर्मचारियों व् सुरक्षाबलों की उर्जा राष्ट्र निर्माण में लगेगी।
हर घर बने उद्योग-  भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में लघु उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है। हमारी जनसंख्या हमारी ताकत भी बन सकती है। गाँव गाँव लघु उद्योगों को जल बिछाने की आवश्यकता है। गाँव के युवा को अपने घर में रोजगार मिलने से शहरों की और हो रहे पलायन को रोक जा सकता है। विकास का केंद्र गाँव को बनाना होगा। संघ के प्रचारक और वाद में भारतीय जनसंघ के नेता पंडित दीनदयाल जी कहते थे कि हम हर नये बच्चे का पेट ही क्यूँ देखते हैं हम उसके दो हाथ और अद्भुत दिमाग को क्यूँ नहीं देखते? हमें युवकों में कार्य के प्रति सम्मान की भावना पैदा कर व्यवसायिक शिक्षा पर जोर देना चाहिए। बड़ी संख्या में शिक्षक पैदा कर निर्यात करने चाहिए।
देश के लिए चार साल देने का हो आह्वान- युवा में अनुशासन पैदा करने के लिए पढाई पूरी कर कम से कम चार साल देश की सेना में या समाज सेवा में देने का आग्रह करना चाहिए। जो युवा ये आवश्यक सेवा कर ले उसे अच्छी नौकरी उपलब्ध करवाने की जिमेवारी सरकार को लेनी चाहिए। इस प्रयोग से युवाओं में देशभक्ति,समाजसेवा और अनुशासन की भावना पैदा होगी। इन गुणों से युक्त युवा शक्ति देश की बहुत बड़ी सम्पति सिद्ध होगी। देश को निशुल्क सेना मिलेगी मिलेगी, समाज सेवा को समर्पित उत्साही युवकों की फौज मिलेगी। युवकों को राष्ट्र  सेवा में लगाने के लिए आर्ट्स ऑफ़ लिविंग, गायत्री परिवार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारत स्वाभिमान, सत्य साईं, दक्षिण में अम्मा आदि संस्थाओं की सहयता ली जा सकती है। युवाओं की आशा और विश्वास के केंद्र बने भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी अगर आह्वान करते हैं हैं तो निश्चित रूप से लाखों युवा समाज सेवा के लिए आगे आएंगे। ऐसे और अनेक कदम हो सकते हैं जिनके द्वारा भारत बहुत शीघ्र विश्व की महाशक्ति बन सकता है।

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