गुरुवार, 19 सितंबर 2019

क्या पाक अधिकृत कश्मीर लेकर देश और दुनिया को फिर चोंकाएंगे प्रधानमंत्री मोदी?


कहते हैं संसार में कुछ ही लोग इतिहास रचते हैं शेष लोग तो उस इतिहास को गुनगुनाते और गाते मात्र हैं। लगता है नियति ने इतिहास रचने का देव दुर्लभ अवसर एवं कार्य श्री मोदी जी को सौंपा है, जिसे वे बखूबी करते जा रहे हैं। पूरे विश्व को हैरान करते हुए  इतिहास रचने के पथ पर श्री मोदी जी के कदम बिना रूके आगे बढ़ते ही जा रहे हैं। उनके आगे बढ़ने का ढंग और गति कुछ ऐसी है कि जब तक दुनिया उनके पिछले कदमों का विश्लेषण पूरा कर भी नहीं पाती कि श्री मोदी विश्व को हैरान कर देने वाला कुछ नया कर देते हैं। मजेदार बात है कि उनके हर कदम में नयापन लोगों को हैरान करने वाला है। भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के राजनीतिक पंडित ही नहीं तो मैनेजमेंट के गुरू भी आचम्भित हैं। लगता है स्वतंत्रता के कई दशकों बाद भारत माता ने अपने योग्य सपूत के हाथों देश की बागडोर सौंप कर कुछ राहत एवं संतोष की सांस ली होगी। जम्मू कश्मीर के दशकों पुराने राजनीति एवं कुछ राजनीतिक परिवारों  के स्वार्थ प्रेरित अलगाववाद के रोग को जड़ से उखाड़ने के बाद अब पूरा देश एवं विश्व पाक अधिकृत कश्मीर एवं अयोध्या को लेकर मोदी सरकार के अगले कदम की ओर सांस रोके एकटक निहार रहा है।
*370 हटा कर दी हजारों शहीदों को श्रद्धांजलि* - संघ परिवार को छोड़ कर लगभव समस्त देश धारा 370 के साथ जीना ही अपनी नियति मान चुका था। यह अस्थायी प्रावधान राज्य की स्वार्थ केंद्रित राजनीति का सहारा मिल जाने के कारण राज्य के खून में ही समा गया था। इन लोगों ने धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले हमारे कश्मीर को जहनुम बना कर रख दिया था। जम्मू कश्मीर को इन धूर्त लोगों के हवाले करने का अर्थ बंदर के हाथ चाकू पकड़ाने जैसा ही था। दिल्ली की संकुचित सोच एवं  तत्कालिक स्वार्थ केंद्रित राजनीति के चलते देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के स्वप्न को ले कर डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर कितने ही ज्ञात एवं अज्ञात देशवासी शहीद हो गए। कितने ही देशवासी विशेष कर राज्य के देशभक्त नागरिक एवं सुरक्षा बल आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। आज जो लोग पाक के इशारे पर अपनी राजनीति चलाने वाले अब्दुला एवं महबूबा सहित कुछ मात्र सैकड़ों  शरारती लोगों के जेल में होने पर आंसू बहा रहे हैं, उनके आंसू पाखंड के सिवा कुछ नहीं हैं। देश जानना चाहता है कि वे सब उन असंख्य निर्दोष नागरिकों को आतंकवाद की भट्टी में स्वाहा होते देख चुप क्यों थे? सुखद संतोष का विषय इतना है कि आज दिल्ली उनके इस पाखंड को बखूबी पहचानती है औऱ इन आंसुओं में बहने को तैयार नहीं है। आज सम्पूर्ण देश को राजनीति की चौखट से बाहर निकल कर दिल्ली की वर्तमान दृढ़ एवं दूरदर्शी सरकार के साथ खड़े होने की आवश्यकता है।
*पाक अधिकृत कश्मीर लेना होगा अखंड भारत की दिशा में बड़ा और पहला कदम*- वैसे हम सब जानते हैं कि 1947 में अपनी प्रिय मातृभूमि का विभाजन ही अपवित्र एवं उस समय की राजनीति का आपराधिक कृत्य था।  महृषि अरविंद, श्री गुरू जी गोलवलकर जैसे अनेक दूरद्रष्टा इसे प्रकृति के विरुद्ध एक अस्थाई व्यवस्था कह चुके हैं। महृषि अरविंद तो कहते थे कि जब तक यह विभाजन रहेगा तब तक दोनों देश दुःखी रहेंगे। स्वतंत्र भारत एवं पाकिस्तान का  अभी तक का इतिहास इन महापुरूषों की भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध करता है। वैसे भी लाहौर, करतारपुर एवं कराची के बिना भारत भी अधूरा ही तो है। रोज रोज के खून खराबे से छुटकारा पाने के लिए पाकिस्तान का भारत में सम्पूर्ण विलय ही एक मात्र समाधान है। पाक अधिकृत कश्मीर वापिस लेना इस दिशा में पहला कदम हो सकता है।   सिंध और बलोचिस्तान भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देश रहे हैं। इन प्रदेशों की जनता की हालत रावण की कैद में रोती बिलखती एवं श्री  राम की ओर आशा भरी नजरों से निहारती सीता जैसी है। आज बंग्लादेश को पाक के कब्जे से स्वतंत्र कराने जैसा बड़ा कदम लेने का अवसर आ गया है। लगता है नियति श्री मोदी के हाथों यह बड़ा काम भी करवाने की व्यूह रचना रच चुकी है। प्रतीक्षा केवल समय और  कार्यशैली की है क्योंकि लकीर पर चलना शायद वर्तमान प्रधानमंत्री के स्वभाव में नहीं है।
*देश को भी रहना होगा तैयार* - किसी भी सरकार की ताकत उस देश की राष्ट्रभक्त जनता होती है। आज यद्यपि देश का विश्वास एवं समर्थन मोदी सरकार के साथ है तो भी यह समर्थन और मुखर होना आवश्यक है। हमें ध्यान रखना होगा कि देश के अंदर और बाहर की बहुत शक्तियां ऐसी मजबूत एवं दूरदृष्टि वाली सरकार को सहन नहीं कर पा रही हैं। अपने पैरों पर मजबूती एवं स्वाभिमान से खड़ा होता भारत, भारत के शत्रुओं को ही नहीं तो अमेरिका जैसे मित्रों को भी  सहन नहीं हो रहा है। प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक चेतन भगत ने अपने एक उपन्यास में मनुष्य मनोविज्ञान की सुंदर सच्चाई बयां की है कि दोस्त के फेल होने पर दुःख होता है लेकिन दोस्त के अपने से ज्यादा अंक लेने पर और भी ज्यादा दुःख होता है। यही स्थिति आज भारत के दुश्मनों के साथ साथ अनेक दोस्तों की भी है। हमें ध्यान रखना होगा कि देश के अंदर भी बहुत लोग वर्तमान नेतृत्व से दुःखी भी हैं। वे वर्तमान सरकार को अस्थिर करने का कोई मौका चूकेंगे नहीं। आखिर काला धन एवं बेनामी प्रोपर्टी में जिन बड़ी मछलियों को नंगा किया जाएगा वे कहां चुप बैठेंगे? देश के बाहर पाकिस्तान के साथ साथ हमें चीन से भी पंजा लड़ाने की अपनी सिद्धता रखनी होगी । इसके लिए कुछ वर्षों तक हम सबको दाल,प्याज, डीजल एवं पेट्रोल जैसी बातों को एक ओर कर सरकार के साथ मजबूती से खड़े होना होगा। देश विदेश के बहुत लोग अर्थ व्यवस्था , जीडीपी एवं अन्य विषयों की ओर ध्यान खींच कर मूल मुद्दों से भटकाने का प्रयास होगा। प्याज जैसे मुद्दों पर सरकार बदल देने वाली हमारी जनता को राजनैतिक सूझबुझ एवं समझदारी दिखाने के लिए तैयार करना होगा। सरकार के प्रति अविश्वास एवं आक्रोश निर्माण करने का बड़े स्तर पर प्रयास हो सकता है। समाज को बांटने के लिए मॉब लिन्चिंग से लेकर साम्प्रदायिक दंगों का षड्यंत्र  भी रचा जा सकता है। हम सबको मिल कर आज के दुर्योधनों के सभी प्रहारों को निष्प्रभावी करना होगा। याद रखें इतिहास की रचना होते समय हम किस पाले में हैं जहां यह महत्वपूर्ण है वहीं हम जिस पाले में हैं वहां सत्य की विजय के लिए कितनी ताकत से जूझे, यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। कवि की इस चेतावनी को हमें स्मरण रखना होगा-
यह मत समझो कि पाप का भागी केवल व्याध।
जो चुप हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।।
*इतिहास बनते देखने वाले हम सौभाग्यशाली हैं*- हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली है कि कश्मीर को पूर्णतः भारत में जोड़ने से लेकर तीन तलाक तक, स्विस बैंक में पड़े काले धन को भारत वापिस लाने से लेकर विज्ञान में बुलन्दियों को छूने जैसे अनेक स्वर्णिम पृष्ठ लिखे जाने का साक्षी बनने का सुअवसर मिल रहा है। अभी श्री रामजन्म भूमि पर भगवान राम का भव्य मन्दिर भी अपनी आंखों के सामने निर्माण होते हुए देखने का सुअवसर मिलने की पूरी सम्भावना है। गुरू नानक जी के लेकर गुरू गोबिंद सिंह तक, छत्रपति शिवाजी से लेकर छत्रसाल एवं महाराजा रणजीत सिंह तक असंख्य  महापुरुषों की अधूरी इच्छा पूरी होने का समय समीप आता दिख रहा है। हमें बस पूरी ताकत एवं विश्वास के साथ सरकार के साथ खड़े होने की आवश्यकता भर है। इसका अर्थ वर्तमान सरकार ने धरा पर स्वर्ग ला दिया है या इस सरकार की कार्यशैली में सुधार की गुंजाइश नहीं है, यह कत्तई कहना नहीं है लेकिन कुछ वर्षों तक जनमानस का बस एक ही नारा एवं स्वप्न होना आवश्यक है।  अखंड भारत, सुरक्षित सीमाएं, आतंकवाद मुक्त भारत, श्रीरामजन्म भूमि पर भव्य मन्दिर एवं सुखी सम्पन्न भारत यही नई पीढ़ी की आंखों का स्वप्न है और वर्तमान नेतृत्व इस लक्ष्य को प्राय करने के लिए न केवल कटिबद्ध दिखती है बल्कि उसके लिए पूरी शक्ति एवं दृढ़ता के साथ प्रयासरत भी है !!!

शनिवार, 29 जून 2019

दैनिक शाखा एवं वर्गों की कठोर साधना से तैयार होते हैं संघ के स्वयंसेवक

पिछले दिनों  पंजाब प्रान्त के संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष में होशियारपुर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वर्ग में *संघ में स्वयंसेवक की संकल्पना* विषय पर स्वयंसेवकों से बात करना मेरे जिम्मे था। इस विषय पर चिंतन करते करते मन में आए विचार ही इस लेख की विषय सामग्री है। जून की इस भयंकर गर्मी में जहां लोगों को अपने एसी वाले घरों में रात बिताना कठिन हो रहा है , सुहावने मौसम की तलाश में मनाली जैसे स्थानों की ओर भागते देखे जा सकते हैं, ऐसे में पंजाब के 139 स्वयंसेवक सवेरे 4 बजे से रात्रि 10.30 बजे की कठोर दिनचर्या में  प्रशिक्षण ले रहे हैं। इन स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण ठीक प्रकार से हो सके इसके लिए 20 शिक्षक एवं 30 प्रबन्धक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि संघ में शिक्षार्थी स्वयंसेवक ही नहीं बल्कि शिक्षक और प्रबन्धक भी वर्ग में रहने और खाने पीने का शुल्क स्वयं की जेब से देते हैं। इससे बड़ा पागलपन और कहाँ मिल सकता है? लेकिन स्वयंसेवकों के इसी पागलपन के कारण आज देश करवट बदलता दिखाई दे रहा है। इसी पागलपन ने देश का भाग्य संवारने के भगीरथी प्रयास को आगे बढ़ाने में असंख्य ज्ञात और अज्ञात नररत्न दिए हैं। जब कभी स्वतंत्र भारत का इतिहास लिखा जाएगा तो संघ की इस देन को इतिहास में बहुत बड़ी आहुति के रूप में जाना जाएगा। आज देश दशकों की निद्रा से जग कर अंगड़ाई ले कर खड़ा होता हुआ दिखाई दे रहा है तो इसके पीछे कितने ही इन पागल लोगों की मूक त्याग  तपस्या और बलिदान  दिखाई देगा। आज भी स्वयंसेवकों को अपने घर परिवार एवं दोस्तों से यही सुनने को मिलता है, क्या पागल हो गए हो? आखिर मिलता क्या है आप को वहां जा कर ? यही प्रश्न और ताने कभी क्रांतिकारियों को भी सुनने को मिलते थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल इन्हीं तानों के जबाब में कह उठे थे-
इन्हीं बिगड़े दिमागों में खुशियों के लच्छे हैं।
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं।।
स्वामी विवेकानन्द कहते थे कि संसार का इतिहास इन्हीं चंद पागल लोगों का इतिहास है। शेष तो इस पृथ्वी पर सन्तान वृद्धि ही कर पाते हैं।
👍दूर या बाहर से संघ को समझना अत्यंत कठिन - ऐसा कहा जाता कि संसार में बहुत बार सबसे आसान बातों को समझना ही सबसे कठिन हो जाता है। औऱ यह कठिनाई सामान्य  व्यक्ति से ज्यादा बड़े बड़े लोगों के लिए होती है। न्यूटन के सम्बद्ध में एक प्रसंग चलता है। इन्होंने एक बिल्ली पाल रखी थी। वे इस बिल्ली से बहुत स्नेह करते थे। बिल्ली भी इनके आगे पीछे , कभी कमरे के अंदर कभी बाहर आती जाती रहती थी। इस कारण इन्हें बार बार उठ कर दरवाजा खोलना पड़ता था। इन्होंने नॉकर को कह कर दीवार में छेद करवा दिया ताकि बिल्ली अंदर बाहर आ जा सके। कुछ दिन ठीक चलता रहा। कुछ समय बाद बिल्ली ने बच्चा दे दिया। न्यूटन को चिंता हुई कि छोट बच्चा बड़े छेद से कैसे अंदर बाहर जाएगा? उन्होंने नॉकर को बच्चे के लिए छोटा छेद करने को कहा। हैरान परेशान नॉकर समझाता रहा कि साहब! बड़े छेद से छोटे बच्चे को निकलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। लेकिन बड़ी वैज्ञानिक गणनाओं में खोए उस महान वैज्ञानिक को नॉकर की बात नहीं समझ आई। और वे बिल्ली के बच्चे के लिए छोटा छेद करवा कर ही माने । ऐसे ही अनेक बार संघ को समझने का विषय आता है। सामान्य व्यक्ति ही नहीं बड़े बड़े लोग भी संघ सृष्टि की सामान्य बातें समझने में असमर्थ दिखते हैं। संघ सृष्टि से अनजान लोगों के लिए यह दृश्य किसी स्वप्न से कम नहीं है। लेकिन जो लोग संघ को जानते हैं उनके लिए यह समान्य बात है। संघ के स्वयंसेवकों में जो गुण, निष्ठा, समाज एवं देश के प्रति जो दर्द, जो अपनापन दिखाई देता है उसके पीछे यही साधना व तपस्या है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि स्वयंसेवकों की  इस तपस्या में उनके साथ संघ के वरिष्ठ अधिकारी भी सहज भाव से शामिल होते देखे जा सकते हैं। वही सामान्य रहन- सहन, भोजन एवं कठोर दिनचर्या ! लक्ष्य समर्पित, निस्वार्थ एवं  शुद्ध चारित्र्य सम्पन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक तैयार होने के पीछे दशकों की यह कठोर लेकिन मौन साधना है। आज सामान्य स्वयंसेवक से ले कर देश को चलाने वाले सब संघ की इसी भठी से निकले हीरे मोती हैं। यह भी जानने योग्य है  कि सार्वजनिक जीवन में  जितने चेहरों को लोग जानते हैं, उनके त्याग व समर्पण का लोहा मानते हैं उनसे कई गुणा अधिक पद, प्रतिष्ठा, मंच, माइक से कोसों दूर - *तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें '* मंत्र के साथ साधनारत हैं। जो लोग संघ को ले कर बड़ी बड़ी बातें करते हैं उन्हें शायद इस साधना की जानकारी नहीं रहती। किसी ने ठीक ही कहा है-
लोगों ने मेरी बुलंदियों को देखा!
मेरे पांव के छालों को किसी ने नहीं देखा!!
👍सब चाहते हैं स्वयंसेवक जैसे समर्पित लोग - संघ के स्वयंसेवक प्रारम्भ से ही प्रत्येक  राजनेता, राजनैतिक दल एवं सामाजिक संगठन के लिए ईर्ष्या का केंद्र रहे  हैं। मजेदार बात है कि संघ के स्वयंसेवकों के प्रति दीवानगी के शिकार संघ का विरोध करने वाले, संघ को जी भर कोसने वाले भी हैं। संघ के प्रति उनके आक्रोश एवं गालियों के पीछे भी अपने पास ऐसे समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी ही होती है।  यह हताशा समय समय पर संघ विरोधी नेताओं द्वारा प्रकट होती भी रहती है। अभी हाल ही में बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने संघ के विरुद्ध अपना आक्रोश एवं गुस्सा व्यक्त करने साथ साथ ऐसे लोग तैयार करने का संकल्प भी जाहिर किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि संघ के स्वयंसेवकों से पंजा लड़ा के, हर बार  मात खाने के बाद गुस्से एवं हताशा में संघ का क्लोन तैयार करने का ऐसा संकल्प स्व. संकल्प संजय गांधी से लेकर अनेक संघ विरोधी कर चुके हैं। लेकिन हर बार सबको असफलता ही हाथ लगी है। इस असफलता को समझने के लिए संघ के स्वयंसर्वकों को तैयार करने के पीछे संघ का उच्च लक्ष्य, स्वयंसेवक तैयार करने के लिए जीवन का सर्वस्व न्योछावर करने वाले हजारों प्रचारक व गृहस्थी कार्यकर्ताओं की कई  दशकों की साधना का परिणाम है। जितना बड़ा लक्ष्य होय है और उस लक्ष्य के लिए जितनी त्याग, समर्पण व बलिदान करने की सिद्धता होगी वैसा ही तो परिणाम आएगा। आज पढ़े- लिखे, सुशील एवं अच्छी नॉकरी या व्यवसाय करने वाले युवा अपनी बेटी के लिए जैसे वर के रूप में  हर माता पिता की पसंद होते हैं वैसे ही संघ के स्वयंसेवक प्रत्येक नेता, दल  एवं संगठन की चाहत बन चुके हैं।
👍लीक से हट कर है संघ की स्वयंसेवक की संकल्पना- संघ संस्थापक डा. हेडगेवार ने स्वयंसेवक को ले कर उस समय प्रचलित अवधारणा को बदल दिया। उन दिनों स्वयंसेवक को केवल नेताओं के लिए मंच, माइक एवं दरियों आदि की व्यवस्था करने वाला ही माना जाता था। महात्मा गांधी जी दिसम्बर 1934 में वर्धा में संघ शिविर में गए। स्वयंसेवकों से बातचीत कर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हीने डा. साहब से पूछा कि यह सब आपने कैसे कर दिखाया? डा साहिब ने समझाया कि हमारे यहां स्वयंसेवक और अधिकारी ऐसी दो अलग श्रेणियां नहीं हैं । यहां प्रत्येक स्वयंसेवक है। योग्यता एवं समय समर्पण के आधार पर काम दिया जाता है। अधिकारी मतलब अधिक परिश्रम, अधिक कष्ट उठाने वाला होता है। संघ में दायित्व को ले कर संघर्ष या होड़ न होने का बड़ा कारण संघ की यही परम्परा है।
👍पद, प्रतिष्ठा, मंच माइक से दूर - संघ में स्वयंसेवक को पद, प्रतिष्ठा, मंच एवं माइक से दूर रहने को कहा जाता है। यही कारण है कि लाखों स्वयंसेवक समाज सेवा में अपना सहज कर्तव्य समझ कर मौन साधनारत रहते हैं। प्रारम्भ में तो संघ स्वयंसेवकों द्वारा होने वाले युद्ध के समय मोर्चे पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिला कर किए सेवा कार्य या बाढ़ -आपदा के समय किए गए  सेवा कार्यों के प्रचार की भी अनुमति नहीं देता था।  पर्रस्थिति की मांग के कारण प्रचार विभग प्रारम्भ हुआ है लेकिन फिर भी व्यक्ति के प्रचार के स्थान पर विचार के प्रचार्  का आग्रह किया जाता है। संघ में मौन रह कर कार्य करने को श्रेष्ठ माना जाता है।
👍 निस्वार्थ सेवा - आज सबसे बड़ा संकट बिना लोभ व लालच के किसी से काम करवाना होता है। गत अनेक सदियों में हमारे सामान्य व्यक्ति के खून में  स्वार्थ का वायरस गहरे जम गया है। यही कारण है कि संघ में बिना स्वार्थ के कार्यकर्ता कार्य करते हैं इस बात पर भी लोग सहजता से विश्वास नहीं कर पाते हैं। यहां सामान्य व्यक्ति से बड़े बड़े व्यापारी, उद्योगपति या सरकारी सेवा में अधिकारी सब स्वयंसेवक बिना किसी लालच या स्वार्थ के समाज सेवा में जुटे देखे जा सकते हैं। स्वार्थ के भाव पर गहरी चोट संघ में उसी समय हो जाती है जब पहले दिन से ही अपनी जेब से किराया खर्च कर कार्यक्रम का शुल्क और देना पड़ता है। लेने के बजाए देने का स्वभाव या संस्कार स्वयंसेवक के मन में विकसित होना प्रारम्भ हो जाता है।
👍संगठन मंत्र के साधक - हमारे समाज में आज साथ मिल कर काम करने का स्वभाव लुप्त प्रायः सा दिखता है। हर व्यक्ति अपने अंहकार संसार से बाहर आने को तैयार नहीं है। इसी कारण संगठन, राजनैतिक दल ही नहीं तो मठ मन्दिर की सम्भाल के लिए बनी समितियों में तोड़ फोड़ आम देखी जा सकती है। संघ स्वयंसेवक को संगठन शास्त्र का तज्ञ माना जाता है। अपना अहम समाप्त कर साथी सहयोगी लोगों को साथ लेकर चलने में स्वयंसेवक के गुण के विरोधी भी कायल हैं। स्व.एकनाथ रानाडे हों या पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने संगठन कुशलता के आधार पर शून्य से सृष्टि करने को ले कर अपनी प्रतिभा का लोहा मानव चुके हैं।
👍सामाजिक समरसता के उपासक स्वयंसेवक - अंग्रेज द्वारा बोए गए विष बीज आज हर कहीं और कभी भी सिर उठाए दिख जाते हैं। कई बार तो समाज शास्त्री यह सब देख कर चिन्तित और परेशान हो उठते हैं। राजनीति इसमे खुल कर अपना रंग दिखाती है। ऊंच नीच, अमीर गरीब, उतर दक्षिण एवं भाषा जैसे अनन्त विषयों पर समाज को बांटने का खेल चलता रहता है। इस सारी परिस्थिति में संघ का स्वयंसेवक एक जन - एक राष्ट्र का संजीवनी मंत्र लेकर समरसता का भाव फैलाते देखे जा सकते हैं। सब भारत मां की सन्तान होने के कारण  हम में भेद कैसा? स्वयंसेवक के निष्पाप साधना के कारण समाज स्वयंसेवक की बात पर विश्वास भी करता है। सन 2006में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरू जी के जन्म शताब्दी वर्ष में समाजिक समरसता के लिए सन्त सम्मेलनों का आयोजन करना तय किया। उन सम्मेलनों में हमने संतों से ऐसे सम्मेलन अपने निमंत्रण पर स्तर पर करने का निवेदन किया। कार्यक्रम के बाद लगभग सभी संतों का कहना था कि ये लीग आपके बुलाने पर आ गए। हमारे लग्रह पर ये लोग नहीं आएंगे। यही स्थिति लगभग जाति विरादरी सम्मेलन की थी।
👍राष्ट्र प्रथम है- स्वयंसेवक की साधना का केंद्र - 'भला हो जिसमे देश का काम सब किए चलो' संघ शाखाओं में यह गीत चलता है। वास्तव में स्वयंसेवक के इस मनोभाव के कारण संघ के विरोधी भी संघ के दीवाने रहते हैं। देश के दुर्भाग्य विभाजन के समय स्वयंसेवकों द्वारा कांग्रेसी नेताओं की सुरक्षा ही या आपातकाल में विरोधी राजनेताओं जी सहायता इन सबमे स्वयंसेवकों ने सबसे आगे रह कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है। देश के हित में चलने वाले हर कार्य को स्वयंसेवक का समर्थन रहता है। देश से सुखद भविष्य के लिए ऐसे राष्ट्र समर्पित स्वयंसेवकों के निर्माण की प्रक्रिया और गति पकड़ती रहे, यह समय की मांग है।

रविवार, 6 मई 2018

नारी! अत्याचार, अपमान के लिए बता, दोषी कौन?

नारी! अत्याचार, अपमान के लिए बता, दोषी कौन?
कर नीर क्षीर,  सच बोल, न साध अब तू मौन!
नारी तेरी इस दशा के लिए....
भारत की महान नारी विरासत को तू याद कर
जीवनदायिनी है, मत व्यर्थ तू अब फरियाद कर
उठ! ले किताब, पलट पन्ने अब तू नव आगाज कर
उठे जो गलत आंख, हाथ तेरी ओर हो जाए गौण -।।1।।
नारी तेरी इस दशा....

गोद मे नर को तू शील सिखाने से चूकती  क्यों
नारी गरिमा की महिमा बताना तू भूलती क्यों
नारी को भी लक्ष्मण रेखा सिखाना कर शुरू अब
चुभते प्रश्नों के उत्तर तीर लिए, बन जा अब द्रोण ।। 2।।
नारी तेरी इस दशा के लिए.....

माता प्रथम गुरु तो बहशी, निर्मम, संस्कार विहीन सन्तान  क्यों
नारी जगजननी तो इन दरिंदों के आगे असहाय नतमस्तक क्यों
नारी देविस्वरूपा तो आज नारी शरीर बाजार में कमोडिटी क्यों
चक्रव्यूह से नारी अभिमन्यु को सुरक्षित निकालेगा कौन ।।3।।
नारी तेरी इस दशा के लिए....

आक्रोश, नारे जलसे सब ठीक, लेकिन हल केवल तेरे पास
गोदी में बना संस्कारी, अपमान रुकने की अब मात्र यही आस
नारी आंसू गिरें केवल प्यार में, इंतजार में... याद रहे बात खास
नारी अपमान हों बीते युग की बात, अब चले ऐसी पौन ।।4।।  नारी तेरी इस दशा के लिए----

मंगलवार, 1 मई 2018

सूरदास समाज के प्रति संवेदनशीलता मनुष्यता की पहली सीढ़ी

सूरदास जयंती पर 'सक्षम' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मंच पर बैठे बैठे मन मे विचार आ रहा था कि वास्तव में 'अंधा' कौन है? जिनके पास आंखें नहीं हैं या जिनकी आंखें होते हुए भी जो दिव्यांग समाज के लिए कुछ नहीं करते? जो लोग शरीर के सारे अंग होने के बाबजूद केवल अपने लिए जीते हैं। उनसे बड़ा कृतघ्न कौन हो सकता है। हम ईश्वर द्वारा प्रदान अपने अमूल्य अंगों का महत्व कहां समझते हैं? हम अपने स्वस्थ, सबल औऱ सम्पूर्ण शरीर के बाबजूद अपनी गरीबी या असफलता के लिए ईश्वर या भाग्य को कोसते रहते हैं। आंखों का महत्व सूरदास, हाथ व टांगों का महत्व लंगड़े , आवाज व कान का महत्व मूक व बधिर से ज्यादा कौन समझ सकता है? फिर भी कहा जा सकता है कि भाग्यहीन वास्तव में वो हैं जो ईश्वर की इतनी कृपा के बाबजूद स्वयं के लिए जीते हैं। स्वामी विवेकानंद से किसी युवक ने पूछा, जिस व्यक्ति की आंखें नहीं हैं उससे बड़ा भाग्यहीन व्यक्ति कौन हो सकता है? 'जिस व्यक्ति ने अपनी दृष्टि खो दी है' - स्वामी जी का उत्तर अत्यंत सटीक है। (The person who has lost his vision) मंच पर बैठे प्रज्ञा चक्षु बाल कलाकारों की प्रतिभा देख कर मन भावुक हो गया। कितनी ही प्रज्ञा चक्षु प्रतिभाएं किसी सहारे के अभाव में दम तोड़ जाती होंगी, यह सोच कर मन दुखी जो गया। आज भारत आंखें दान करने में बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। श्रीलंका जैसा छोटा सा देश भी आंखें दान करने के मामले में हमसे कहीं आगे है। आवश्यकता समाज मे जागृति निर्माण कर आंखें दान करने के अभियान को जनांदोलन बनाने की है। प्रज्ञा चक्षु समाज की अंगुली पकड़ने की , उसे सहारा देने की है। शायद ईश्वर इन बन्धु/ भगनियों के जीवन मे प्रकाश लाने का श्रेय हमें देना चाहता हो। आवश्यकता हमें समाज के इस महत्वपूर्ण भाग के प्रति संवेदनशील बनने की है। हमें अपने बच्चों को वर्ष में एक बार अंध विद्यालयों या छात्रावास में ले जाना चाहिए। इस विषय के प्रति संवेदनशीलता निर्माण करने के लिए किसी दिन आंखों पर पट्टी बांध कर कुछ समय रहने को कहना चाहिए। प्रत्येक बालक को किसी एक प्रज्ञा चक्षु बालक से दोस्ती करने को प्रेरित करना चाहिए। प्रज्ञा चक्षु बालक/ बालिका का हर जगह सहयोग करना एवम जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए हिम्मत देनी चाहिए। श्रद्धा भक्ति, आत्मविश्वास, साहस, सत्संगति एवम प्रशिक्षण इन बालकों के जीवन को प्रकाशित कर सकते हैं। सूरदास जयंती के इस कार्यक्रम में चंडीगढ़ के सरकारी अंध विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री जरियाल, ट्रिब्यून के समाचार सम्पादक श्री हरीश वशिष्ठ मंच पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में प्रज्ञा चक्षु छात्रा स्व. रुबीना की लिखी कविताओं की सीडी रिलीज की गई। सक्षम ने रुबीना को सीडी के रूप में श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम में प्रज्ञा चक्षु छात्रों द्वारा गाए भजनों ने सबका मन मोह लिया। • ‎सन्त, भक्त एवम कवि शिरोमणि सूरदास जी को शतशत प्रणाम, सूरदास का बहुआयामी जीवन हमें प्रेरणा देता है कि भगवान हम से हमारी आंखें या कोई और अंग छीन सकता है लेकिन हमारी श्रद्धा, भक्ति नहीं छीन सकता। इन गुणों के कारण ईश्वर को हम पर कृपा करनी ही पड़ती है। दृष्टि बाधिता के बाबजूद सूरदास भक्ति कवि, वात्सल्य प्रेम के कवि , श्रृंगार के कवि का गौरवमय स्थान प्राप्त किया। सूरसागर ग्रन्थ लिखा। जिसमे सवा लाख से अधिक पद हैं। इसके अतिरिक्त अनेक प्रसिद्ध रचनाएं उनकी अमर कृतियाँ हैं। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि श्रद्धा भक्ति एवम संकल्प से कुछ भी सम्भव है। उनके जीवन का प्रसंग हमने सुना ही होगा- एक बार भजन करते करते, मार्ग में चलते चलते सूरदास कुंएं में गिर गए। सूरदास ने भगवान के प्रति प्यार भरा आक्रोश जताते हुए संकल्प ले लिया - 'यहीं भजन करूँगा। जब तक स्वयं श्री कृष्ण बाहर नहीं निकालेंगे बाहर आने के लिए प्रयास नहीं करूंगा। किसी को सहायता के लिए नहीं पुकारूंगा।' श्री कृष्ण भला उस पुकार को कैसे अनसुना कर सकते थे। स्वयं आकर सूरदास को बाहर निकाला। सूरदास ने पूछा, कौन हो? श्री कृष्ण शरारत के मूढ़ में तो रहते ही थे। कुछ नहीं बोले। सूरदास ने अंदाज लगा लिया। श्री कृष्ण भी भांप गए कि पकड़ा गया हूँ। जबरदस्ती बाजू छुड़ा कर निकल गए। सूरदास बिछुड़न की दर्द से कराह उठे- पद की रचना हो गई- बांह छुड़ाए जात हो निर्बल जान के मोहि। ‎हृदय से जब जाओगे सबल जानहुँ तोहे!! ‎गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति प्यार, यशोदा के कृष्ण के प्रति प्यार को अमर करने वाले सूरदास के जीवन को गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता- ‎ऊधो मन न भये दस बीस! ‎एक हुतो सो गयो श्याम संग ‎को अब राधे ईश। ‎ऊधो मन न भये दस बीस। इसके अतिरिक्त ‎मैया मोहे मैं नहीं माखन खायो! मैया कबहुँ बढ़ेगी छोटी, मैय्या दाउ बहुत ही खिजायो! आदि आदि इतिहास प्रसिद्ध कविताएं सूरदास को अत्यंत भावुक, श्रद्धा और भक्ति का धनी सिद्ध करते हैं। ‎आज प्रज्ञा चक्षु बालकों को दुनिया के प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टाफिंग हाकिन्स, अरुणिमा सिन्हा तथा सुधा चन्द्रन जैसे संकल्प के धनी दिव्य चक्षु महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा ले कर हिम्मत, विश्वास तथा बड़े लक्ष्य के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए। ‎कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता? ‎एक पत्थर तबीयत से उछालो तो यारो! ‎संकल्प की पूरी टीम बहिन अनु मल्होत्रा, एडवोकेट श्री अमित सागर शर्मा, तथा नाइपर मोहाली से डा शरत के नेतृत्व में सेवारत हैं, सब बधाई के पात्र हैं। ईश्वर उन्हें सफलता प्रदान करे, यही मंगल कामना है।