गुरुवार, 7 अगस्त 2014

राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव का प्रतीक हिन्दू नववर्ष

विजय कुमार नड्डा
अंग्रेजों ने अप्रैल के महीने में नया साल मना रहे भारतीयों का ‘मूर्ख’ कह कर मजाक उड़ाया। हमारा उपहास उड़ाने के लिए अप्रैल फूल’ मनाने की परम्परा शुरू कर दी गई । यह अलग बात है कि हमारी विज्ञान सम्मत कालगणना को ले कर हमारा मजाक उड़ाते-2 वे खुद अपना ही मजाक उड़ा बैठे। इस सबके बाबजूद हम अपने देशवासियों को क्या कहें जो आज भी अंग्रेजी जूठन को अमृत मान कर ढो रहे हैं, अंधानुकरण करते जा रहे हैं। गुलामी के समय परानुकरण की मजबूरी तो समझी जा सकती थी। लेकिन आजादी के बाद यह रोग और भी बढ़ गया। इसी का एक उदाहरण हमारा संवत्सर अर्थात नया साल है। देश की कालगणना मात्र कलेंडर नहीं होता बल्कि उस देश की संस्कृति व स्वाभिमान की परिचायक भी होती है। हर दृष्टि से अवैज्ञानिक होने के बाबजूद मात्र ‘साहब वाक्यम् प्रमाणम्’ की तर्ज पर अंग्रेजी काल गणना को जीवन में  व्यवहार में लाना भारत जैसे अत्यन्त प्राचीन और गौरवशाली अतीत वाले देश के लिए लज्जा की बात है
पश्चिम की कालगणना का बिडम्बनापूर्ण संक्षिप्त इतिहास-
ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को बताया जाता है जबकि उनके नाम से मनाया जाने वाला साल 01 जनवरी को मनाया जाता है। कारण आज तक नहीं बताया गया। इसी प्रकार वे 25 दिसम्बर को बड़ा दिन कहते हैं जबकि विज्ञान के अनुसार 14 जनवरी मक्कर संक्राति से दिन बढ़ना शुरु होता है और 21 जून को सबसे बड़ा दिन होता है। प्रारम्भ में पश्चिम कलैण्डर में दस महीने होते थे। बाद में दो महीने जनवरी और फरवरी और जोड़े गए। इस कालगणना में प्रारम्भ के कुछ महीने उनके देवी-देवताओं के नाम पर हैं आगे तो गिनती मात्र हैं। सितम्बर अर्थात सप्तअम्बर, अक्तूबर अष्टअत्बर, नवम्बर यानि नवम्अम्बर और  दिसम्बर यानि दशम् अम्बर। संत अगस्टस के नाम पर अगस्त मास का नामकरण हुआ। सम्राट जुलियस सीजर अड़ गए कि मेरे नाम पर भी कोई मास होना चाहिए। इस प्रकार जुलाई मास आ गया। इतना ही नहीं अगस्त मास 31 दिन का तय किया तो सम्राट की जिद के चलते जुलाई भी 31 दिन का ही करना पड़ा । सम्राट की इस जिदद के कारण अब गणना ठीक रखने के लिए  जुलाई के लिए एक दिन और एक दिन अगस्त के बेचारी फरवरी से काटे गए। इस प्रकार फरवरी 28 दिन की रह गई फिर भी हिसाब ठीक नहीं बैठा तो लीप के साल की व्यवस्था भी की गई। यह व्यवस्था 532 ई. में हुई इसलिए इसे रोमन साल भी कहते हैं। पश्चिम की इस कालगणना में साल को  364.25 दिन का माना गया। यह सायन वर्ष से 11 मिनिट और 10.9 सैकण्ड अधिक बैठता है। 1582 ई. आते आते इसमें 10 दिन अधिक जमा हो गए। अतः 1582 में पोप ने धर्मादेश से 4 अक्तूबर से सीधे 15 अक्तूवर की घोषणा कर दी। सब तरफ हाहाकार मच गया। लोग 04 अक्तूवर रात को सोए और प्रातः 15 को उठे । इस बीच लोगों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि सब गायब लेकिन काफी चीख-पुकार के बाद सब शांत हो गए । सारे ब्रहृमाण्ड को अपने इशारों पर नचाने वाला काल यहां असहाय होकर, पश्चिम द्वारा तोड़े -मरोड़े जाने पर उसकी अज्ञानता पर हंसने के सिवाय और कर भी क्या सकता था ? 1582 के इस परिवर्तन के बाद इसे गे्रगोरी कलैण्डर कहा गया । पहले कैथोलिकों और बाद में 1700 ई. में प्रोटेस्टेंटों ने इसे स्वीकार कर लिया । बाद में अंग्रेजी प्रभाव के चलते यूरोप, चीन के बाद हमने भी अंग्रेजों की इसी जूठन को स्वीकार कर लिया।
भारतीय नववर्ष के प्रथम दिन का महत्व - आज के दिन पृथ्वी का जन्म हुआ है। इसलिए इसे  सृष्टि सम्वत भी कहा जाता है। भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ भी इसी दिन से होता है। यह शुभ अवसर नवरात्रों का प्रारम्भ, श्री रामजी का राज्यारोहण, महाराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक, विक्रमादित्य द्वारा आक्रांता शकों को हरा कर विक्रमी सम्वत का प्रारम्भ ,संत झूलेलाल, गुरु अंगददेव और विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हैडगेवार का जन्म दिवस है। स्वामी दयानन्द जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इन सुयोगों के अलावा वसंत के बाद प्रकृति में सब तरफ नया जोश, उमंग और उत्साह देखने को मिलता है । पेड़- पौधों में नए फल-फूल -पत्तिया, नई फसल घर आने के कारण किसान की प्रसन्नता, विधार्थियों को नई कक्षा में जाने का उत्साह, नया वित्त वर्ष प्रारम्भ होने के कारण व्यापारियों में नए साल में आसमान छूने की योजनाएं अर्थात जिधर देखो उधर प्रसन्नता । सब नए वर्ष के स्वागत के लिए तैयार। इसके विपरीत जनवरी में जान लेने वाली ठंड में जाम से जाम टकराने के बाद भी लोगों के चेहरों पर उत्साह व जोष देखने को नहीं मिलता । प्रसन्नता, खुशी का कहीं कोई नामों-निशान तक नहीं दिखाई देता। ऐसे में नए साल के स्वागत पर खुशी से झूमने की बात वास्तव में स्वयं से घोखा देने के सिवाय और क्या है?
वैज्ञानिक है भारतीय काल गणना -
भारत की कालगणना प्रकृति सम्मत तथा विज्ञान समर्थित है। हमारी कालगणना पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति और गति पर आधारित है। यज्ञों के लिए उपयुकत समय निर्धारित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। इसी गणना के आधार पर हम सैकड़ों ही नहीं तो हजार साल बाद के सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर लेते हैं । आश्चर्य की बात है कि हमारी यह घोषणा समय की कसैटी पर भी ठीक बैठती है। अपनी कालगणना का प्रकृति समर्थित होने का एक उदाहरण देखें । मान लो कोई व्यक्ति 01अप्रैल को 01 अप्रैल मानने से इन्कार कर दे तो हमारे पास यह तारीख सिद्ध करने के लिए सिवाय डायरी या कलैण्डर के कोई ठोस विकल्प नहीं रहता है। इसके विपरीत हमारी पूर्णिमा या अमावस्या पर प्रश्न करने पर हम उसे केवल रात तक का इंतजार करने को कहेंगे। रात आने पर चन्द्रमा स्वयं हमारी बात की पुष्टि कर देगा। सौर गणना में पृथ्वी लगभग एक लाख किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से 365.25 दिन में सूर्य की परिक्रमा करती है। यह एक सौर वर्ष का माप है । इसके 12वें भाग को मास और 30वें भाग को एक दिन कहते हैं। एक सौर दिन लगभग 24 घण्टे 21 मिनिट का होता है। इसी प्रकार चन्द्र गणना में चन्द्रमा पृथ्वी के गिर्द अपना चक्र 29 दिन 12 घण्टें में पूरा करता है। अतः चन्द्र मास की अवधि 29.25 दिन की हुई। वर्ष में लगभग   बारह दिन का अन्तर पड़ जाता है। हमारे यहां समय की सबसे छोटी ईकाई से ले कर बड़ी से बड़ी ईकाई का विचार हुआ है। आइए! कालगणना को लेकर जरा भारतीय मनीषियों की प्रतिभा की एक झलक देखें -
एक त्रुटी सैकण्ड का 33,750 वां भाग, 100 त्रुटि ..1 तत्पर, 30तत्पर ..1निमेष , 18निमेष..1 काष्ठा , 30 काष्ठा..1 कला ,30कला.. 01 घटटी, 2 घटटी 01 मुहुर्त ,30 मुहुर्त्र ..01 अहोरात्र । इसी प्रकार समय की बड़ी ईकाई का भी पूरा विचार हुआ है । हमने समय को युगों में बांटा है । कलियुग ..4,32,000 वर्ष , द्वाप.र... वर्ष 8,64,000, त्रेता ....12,96,000 वर्ष , सतयुग.... 17,28,000 वर्ष योग 43,20,000 वर्ष। चार युगों को मिला कर एक महायुग बनता है। 10,000 महायुग से एक कल्प बनता है। एक कल्प में 4,32,00,00,000 वर्ष होते हैं। इसी प्रकार एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं । अब तक छः मन्वंतर बीत चुके हैं। वैवस्तत अर्थात सातवां मन्वंतर चल रहा है । इस समय सृष्टि का 1,95,58,85,113वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है । भारत में प्रचलित कुछ सम्वत इस प्रकार हैं -
इस साल  श्री कृष्ण सम्वत ...   5251 वर्ष , युगाव्द ... 5117, महात्मा वुद्ध ...2639 वर्ष महावीर...2541 वर्ष , विक्रमी सम्वत 2072,  शक सम्वत.... 1937 और हिजरी 1436 वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है ।
युग निर्माता डाक्टर हैडगेवार - नववर्ष के इस पवित्र अवसर पर प्रकृति द्वारा प्रद्त अनेक सुयोगों में एक सुयोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हैडगेवार का जन्म दिवस भी है । ऐसे समय में जब हिन्दु को मृत जाति, मुझे गधा कह लो लेकिन हिन्दु मत कहो’ आदि कह कर अपमानित किया जा रहा था ऐसे समय इन्होंने गजब के आत्म विश्वास के साथ हिन्दु संगठन के कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। उन्होंने सन् 1914 में डाक्टरी की पढ़ाई कर अपने सुखमय भविष्य से मुंह मोड़ कर सन्यासी का जीवन स्वीकार किया। उनके द्वारा प्रारम्भ इस महायज्ञ में उनके बाद हजारों जीवन अर्पित होते गए। आज यह संगठन देशभक्ति का जन आन्दोलन बन गया है। संघ की प्रेरणा से इस समय लाखों स्वयंसेवक देशसेवा में मौन तपस्यारत हैं। संधस्वप्न को साकार करने के लिए स्वयंसेवक 50 से ज्यादा अखिल भारतीय और अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से समाज को साथ ले कर कार्यरत हैं । अनेक स्वयंसेवक इसके अलावा स्थानीय संस्थाओं या व्यक्तिगत स्तर पर कार्यरत हैं। सशक्त और समर्थ समाज के निर्माण के लिए समाज के आर्थिक रुप से पीछे रह गए वर्ग की उन्नति के लिए डेढ लाख से अधिक सेवा के कार्य चलाए जा रहें हैं । आज हिन्दु होना शर्म की नहीं बल्कि गौरव की बात बन गई है । भारत ही नहीं सारी दुनिया का हिन्दु अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा होता जा रहा है। इस प्रकार डाक्टर हैडगेवार जी का जन्म भारत के इतिहास के लिए ऐतिहासिक मोड़ कहा जा सकता है। आईए! आज के पवित्र दिन के शुभ अवसर पर परमपूज्य डाक्टर हैडगेवार जी के राष्ट्रसमर्पित प्रेरक जीवन से प्रेरणा ले कर अपने जीवन में भी देशसेवा को योग्य स्थान देने का संकल्प लें ।
कैसे मनाएं अपना नववर्ष -अपने इष्ट मित्रों व सम्बधियों को बधाई संदेश भेजें। घर, दुकान और कार्यालयों में नए साल के शुभकामनाओं के बैनर लगाएं । घर, दुकान आदि में हवन यज्ञ आदि से नए साल का स्वागत करें । मन्दिर और सामाजिक संस्थाओं की ओर से प्रभात फेरियां निकाली जानी चाहिए । नववर्ष की पूर्व संध्या पर सूर्यास्त के समय शंखनाद कर जा रहे साल को विदाई दें और प्रातःकाल की सुप्रभात की वेला में सूर्य की प्रथम किरण को अर्ध्य दें । गत वर्ष का सिंहावलोकन कर नए साल के लिए सद्कार्यों का संकल्प लेना चाहिए ।

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