सोमवार, 21 मार्च 2011

त्रिमूर्ति बलिदान दिवस पर विशेष- मेरी मिटटी से भी खुश्बुए वतन आएगी.....

किस रज से बनते हैं कर्मवीर- जिस उम्र में युवक युवतियां प्रेम के सागर में डुबकियां लगाते हैं और इसी में जीवन की सफलता और सार्थकता मानते हैं , उम्र  के उसी  पड़ाव में हमारे ये क्रांतिकारी भारत माता से प्रेम का रोग पाल बैठे थे। इस रोग में वे इतना दीवाने हुए कि घर परिवार, कॅरियर यहां तक कि अपना जीवन तक दाव पर लगा  गए। इन्होंने अपनी मातृभूमि के कण कण को ही अपनी आराध्य बना लिया था। कवि की ये पंक्तियाँ इन्होंने गांठ बांध ली थी-

                         इश्क करना पाप  नहीँ , करो खूब करो  मगर  एक बार

                       इस धरती के जर्रे जर्रे को अपनी माशूक बना तो देखो। 

एक बार इस प्यार के मार्ग पर पैर रखा फिर इधर उधर देखने की कहां फुर्सत और कहां इच्छा? प्रेम गली अति संकरी जामे एक समाए... इन युवाओं के दिल में मातृभक्ति के आलावा किसी के लिए कोई समय और स्थान नहीं था। इस रोग में पगला गए थे। शायद क्रन्तिकारी राम प्रशाद बिस्मिल  ने इन शब्दों में उनकी मनोदशा वर्णन किया है- 

                   इक हुक सी दिल में उठी है इक दर्द सा दिल में होता है 

                   हम तारे गिनते रहते हैं जब सारा आलम सोता है। 

हमारे इन नर वीरों की यशोगाथा  को नमन अपने देशवासियों ने ही नहीं तो स्वयं अंग्रेजों ने भी किया है। इनके साहस, शौर्य और पराक्रम के चलते ही अंग्रेज ने मात्र 200 सालों में ही अपना बोरी बिस्तर समेट लिया था। भारत के दीवानों की गौरवगाथा  अदभुत है, रोमांचकारी है। मुर्दे में भी जान फूंक सकती है। मैकाले और मार्क्स पुत्रों के षड्यंत्र के चलते हमारी नई पीढ़ी को अपनी क्रन्तिकारी विरासत से दूर रखा गया । अब इस अपराधिक गलती को ठीक झरने का समय आ गया है।

त्रिमूर्ति ने रचा इतिहास- भारत के क्रन्तिकारी आकाश में असंख्य तारे हैं, एक से बढ़ कर एक हैं। किर्सी  एक की तुलना दूसरे से करना सम्भव नहीं है। तो भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की इस त्रिमूर्ति ने युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इसमें चन्द्रशेखर आजाद का नाम भी उल्लेखनीय है। चन्द्रशेखर आजाद इनके प्रेरणास्रोत थे। इनके जीवन की मस्ती,, जोश, उत्साह और एक दूसरे से प्यारभरी छेड़छाड़ सबको देख क्र पाठक झूम उठता है। चन्द्रशेखर आजाद दिमाग, भगत सिंह चिंतक, सुखदेव संगठक तथा राजगुरु योजना को बिना सवाल जबाब किये किसी भी कीमत पर  सिरे चढ़ाने वाले के रूप में देखें जा सकते हैं। यहां इन महापुरषों के प्रेरक जीवन के प्रसंगों  को याद करने का प्रयास किया है।

जो मजा जनाब को डांट पिलाने में है वह और कहां

-भगत सिंह ,  सुखदेव, राजगुरु और चन्द्रषेखर आजाद की मस्ती ऐसी रहती थी कोई यह विश्वास भी नहीं कर सकता था कि मौत इन्हें या ये मौत को ढूंढ़ते फिरते हैं । एक बार भगत सिंह को शरारत सूझी। जहां रुके थे उस घर की सफाई करते समय उन्हें  शराब की  बोतल मिली । उसे राजगुरु को दिखा कर बोले कि यह ताकत की दवाई है। इसे लेकर व्यक्ति अथाह ताकत का मालिक बन जाता है । राजगुरु को लगा कि अंग्रेज से लड़ने के लिए इसका प्रयोग करना ठीक ही है। वे उसे गटागट पीने ही वाले थे कि कहीं से आजाद आ धमके और बोले, ‘क्या चल रहा है? राजगुरु सहजता से बोले, ‘ पण्डित जी,मैं ताकत की दवाई ले रहा था । आजाद ने ध्यान  से देखा तो गुस्से से बोले कि शराब पी कर ताकत बढ़ाआगे ? खबरदार ,अगर आगे से यह सोचा भी ? राजगुरु अपना सा मुंह बना कर रह गए। भगत सिंह पर्दे के पीछे सारा नजारा देख कर आनंद ले रहे थे । आजाद के जाने के बाद राजगुरु बोले ,‘क्या भगत सिंह, व्यर्थ ही डांट पिला दी । तू खुद ही बता देता तो यह नौबत ही क्यों आती ? भगत सिंह बोले ,‘जो मजा पण्डित जी की डांट खाने और पिलाने में है वह और कहां ?

मैं तो प्रयोग को परखना मात्र चाहता था-  एक दिन राजगुरु कराटे का एक प्रयोग सीख कर आए । प्रयोग था कि अगर  शत्रु के नाक पर जोर का मुष्ठिप्रहार कर दिया जाए तो कितशत्रु कितना भी  ही  शक्तिशाली क्यों न हो, धराशायी किया जा सकता है । अचानक उनके मन में आया कि बिना परखे प्रयोग की अहमियत ही क्या ? कहीं अचानक मोके पर धोखा दे गया तो ? वह अपनी मस्ती में सड़क पर निकल आया । सामने से आने वाले हर व्यक्ति का नाप तोल करता और आगे बढ़ जाता । सामने से आ रहे एक हटटे -कटटे नौजवान पर निगाह टिक गई । इससे पहले कि वह नौजवान संभलता ,आगे बढ़ता अचानक एक जोरदार मुक्के का प्रहार उसकी नाक पर पड़ गया । अचानक और नाक पर जोरदार मुष्ठिप्रहार से आंखों में अन्धेरा छा गया ,लड़खड़ा कर गिर पड़ा। लेकिन यह क्या? भागने के बजाए राजगुरु उसकी सेवा-पानी में लग गया। थोड़ी देर बाद होश आने पर नौजवान ने देखा कि मुक्का मारने वाला व्यक्ति सामने है । उसकी आंखों में खून उतर आया। उठ कर उसने हाथ-लात से सुखदेव की जोरदार सेवा की। थोड़ा  शांत होने पर हैरान हो कर वह बोला, ‘तूने मुझे क्यों मेरा। मेरी तेरे से कोई दुश्मनी  तो है नहीं ? राजगुरु अपने कपड़े ठीक करता हुआ उठा और बोला , जाओ भी यार , ‘अब मेरा और तेरा हिसाब पूरा हो गया है। तू अपने मार्ग जा मैं अपने । बिना कुछ समझे वह नौजवान अपने रास्ते चला गया । इधर राजगुरु प्रसन्न कि प्रयोग सफल रहा । बाद में राजगुरु अपने साथियों को उस किस्से को हंस हंस कर सुनाता था ।

बच्चे का रोना सहन नहीं- क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक चल रही थी । दुर्गा भाभी गोदी में बच्चे ‘षच्ची’ को ले कर बैठक में भाग ले रही थी । अचानक बच्चे ने जोर से रोना  शुरू कर दिया। उसके हाथ में मिठ्ठाई खत्म हो जाने पर वह वैसी ही और पाने के लिए के लिए जिद करने लगा । दुर्गा भाभी उसे प्यार से मनाती रही । लेकिन शची  मानने के बजाए और जिद करने लगा । उसके रोने से बैठक का ध्यान भंग हो रहा था । गुस्से में आ कर भाभी ने उसके गाल पर जोर का एक थप्पड़ दे मारा । बच्चा और जोर से रोने लग गया । अचानक भगत सिंह उठे ,बच्चे को गोद में लिया और बाजार चल पड़े । थोड़ी देर बाद भगत सिंह बच्चे को गोदी उठाए उससे खेलते हुए वापिस आए । शची  मौके की नजाकत से बेखबर जोर से खिलखिला रहा था । कौन कह सकता कि अंग्रेज को देख कर हद दर्जे के निर्दयी हो जाने वाले ये क्रांतिकारी अपने अन्दर एक नाजुक दिल भी रखते हैं?

सामाजिक समरसता के वाहक भगत सिंह- भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को फांसी तय हो गई थी । एक दिन दोपहर बाद अचानक सफाई कर्मी ने भगत सिंह को बताया कि आज शायद आपको फांसी दी जाने वाली है। मानों इसी दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हों भगत सिंह बेफिक्र अपने अध्ययन में लगे रहे | शंका  सही निकली, सारे नियम-कायदों को दरकिनार करते हुए रात को फांसी देने का हुक्म आ गया । भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो पहले तो उन्होंने उसके प्रति कोई ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया लेकिन ज्यादा जोर देने पर वे बोले कि अगर आप मेरी आखिरी इच्छा पूरी करना ही चाहते हो तो मैं जाते समय अपनी बेबे के हाथों की रोटी खाना चाहता हूं। यह सुन कर सब हैरान और परेशान हो गए । जल्लाद बोला ,‘भगत सिंह यह कैसे सम्भव है? ’ इतनी दूर से बेबे कैसे आ पाएगी? भगत सिंह बोले ,‘ आप गलत समझे हैं । मैं अपनी माता नहीं बल्कि अपनी बेबे की तरह मेरा मल मूत्र उठाने वाले के हाथों से बनी रोटी खाना चाहता हूं । बचपन में बेबे ने मेरा मल मूत्र उठाया था जेल में इसने यह कार्य किया है । यह मेरी दूसरी बेबे ही तो हैं । सफाई करने वाले की आंखों में आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे । उसने कांपते हाथों से रोटी बनाई और और भगत सिंह को खिलाई । भगत सिंह ने पूरे चाव से रोटी खाई और पूर्ण संतुष्टि का अनुभव करते हुए उठे । इस प्रकार उन्होंने जातिवाद के नाम पर अपने ही समाज के एक बड़े हिस्से से हो रहे भेदभाव के प्रतिकार का गहरा संदेश दे दिया ।

भारत के क्रांतिवीर का जलवा देखो, अंग्रेज बहादुर! - इन तीनों वीर सपूतों को फांसी घर तक ले जाने का संदेश आ गया । तीनों ने ‘भारत माता की जय’ के नारों से वातावरण को गुंजाएमान कर दिया । रात के समय इन नारों का मतलब सब समझ गए । अन्य कैदियों ने भी इने स्वर में स्वर मिला कर अपने ढंग से इन्हें अपनी ओर से विदाई दे दी । लेकिन भगत सिंह फांसी घर तक हथकड़ियां डाले जाने को तैयार नहीं थे । वे बोले कि हम इसी दिन का तो इंतजार कर रहे थे । अब हाथ बांध कर क्यों जाएं ? अब बड़ी  मुश्किल आ गई । दरोगा ने जेल के नियमों एवम् अपनी नौकरी की दुहाई दी। आखिर उस दराोगा के प्रति दयावश इन्होंने अपने हाथों में स्वयं बेड़ियां डाल लीं । इस प्रकार हंसते, ठिठोली करते ये फांसी घर तक पहुंचे । फांसी के तख्ते पर चढ़ने की बारी आई तो फिर ये हथकड़ियों को उतारने एवम् उतारने को ले कर अड़ गए | मजेस्ट्रेट  के लिए यह बिल्कुल नया दृश्य था । वह डर रहा था कि कहीं इन्होंने अपनी जगह उसे ही उठा कर तख्त पर चढ़ा दिया तो ? भगत सिंह उसकी भावना को पहचान गए । वे बोले, ' मजिस्ट्रेट, डरो नहीं ,कुछ नहीं होगा । आप हमारी बेड़ियां उतार दें । ‘आप सौभाग्यशाली हैं, यह देखने के लिए कि भारतीय क्रांतिकारी कैसे अपने आदर्शों आ लिए स्वयं अपने हाथों फांसी की रस्सी अपने गले में डाल कर फांसी पर झूल जाते हैं। ’यह कह कर वे तीनों एक बार फिर गले मिले और गला फाड़ उंची आवाज में भारत माता की जय के नारे लगाए और फांसी के तख्ते पर झूल गए ।

तुमने दिया देश को जीवन - हम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस पर संकल्प लें कि उन वीर सपूतों के प्रेरक जीवन को अपनी आंखों के सामने रखेंगे । अपने आने वाले भारत को इनके जीवन से परिचित कराना, व्यसनमुक्त  नई पीढ़ी का निर्माण करना, कन्या भ्रूण हत्या रोकना, पर्यावरण सुरक्षा आदि के लिए संकल्पबद्ध होना और महाशक्ति  भारत बनाने के लिए अपनी  शक्तियों  को लगाा,  देना उन हजारों ज्ञात-अज्ञात नर वीरों के प्रति श्रद्धांजलि होगी । अपने देश के शहीदों को याद करना उनकी नहीं बल्कि हमारी अपनी  आवश्यकता है । कवि ने ठीक ही कहा है -‘         

                                  तुमने दिया देश को जीवन , देश तुम्हें क्या देगा ? 

                                   अपनी लौ को जीवित रखने, नाम तुम्हारा लेगा ।।


शुक्रवार, 18 मार्च 2011

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