बुधवार, 28 मई 2014

ऐतिहासिक भूल को ठीक करने की दिशा में बढती मोदी सरकार

धारा 370 को लेकर नई सरकार में राज्यमंत्री डॉ जितेंदर सिंह के ब्यान ने देश की राजनीति में जोरदार हलचल पैदा कर दी है। वैसे तो यह राजनीतिक चीख पुकार चाय के कप में तूफ़ान से अधिक कुछ नहीं है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री अमर अब्दुल्ला का ब्यान राजनैतिक ब्यान कम  धमकी अधिक है । क्या मुख्यमंत्री जानते हैं कि अब दिल्ली में वोटों  के लिए  देश की एकता का सौदा करने वाली सरकार नहीं हैं। कश्मीर के राजनेताओं को समझना होगा कि मुस्लिम वोटों के नाम पर दिल्ली को डराने या ब्लेक मेल करने के दिन अब लद गये हैं।
      वैसे नई सरकार ने 370 पर बहस की बात करके कौन सा पाप कर दिया? क्या राजनैतिक मूल्यों की दुहाई देने वाले इन महानुभावों को याद है कि इन सब मुद्दों पर देश ने भारी जन समर्थन इस सरकार को दिया है? और वैसे भी बहस से डरना क्या यह नहीं  दर्शाता है कि आपके पास कहने को कुछ नहीं है। मात्र राजनैतिक दादागिरी से कब तक आप पूरे देश को मुर्ख बनाते रहोगे? मुख्यमंत्री का ब्यान कि धार 370 नहीं तो जम्मू कश्मीर भारत के साथ नहीं रहेगा बहुत ही गैर जिमेदराना है। इसके लिए उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। वास्तव में धारा 370 की आड़ में अब्ब्दुल्ला  परिवार ने देश को इतने वर्षों तक मुर्ख बनाया है। इस मामले को भावनात्म्क बना कर सत्ता का सुख भोगा है। यही स्तिथि मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले अन्य दलों की है। प्रश्न है की 370 पर बहस से ये सभी भाग क्यूँ रह हैं? क्या इसलिए कि उन्हें भी पता है की उनके पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं है? स्वयम पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि धारा 370 का प्रावधान अस्थाई है। समय के साथ स्वयं घिस जाएगी। उन्होंने इसे मात्र 10 साल के कहा था। डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि उस समय सभी बड़े नेताओं ने इस धारा का कड़ा विरोध किया था। इस धारा के कारण देश का ही नहीं स्वयम जम्मू कश्मीर का भी बहुत नुकसान हुआ है। यूँ कहा जाये कि आतंकवाद के संरक्षण का कार्य भी यही धारा करती है तो कुछ गलत नहीं है। आज जब देश में इस पर बहस की बात हो रही है तो इसका स्वागत होना चाहिए। यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि धारा 370  को केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं मानना चाहिए।  इसका लाभ या नुक्सान जम्मू कश्मीर के सभी नागरिकों को होता है। जम्मू कश्मीर में अच्छी संख्या में हिन्दू भी हैं जो इस धारा के विरोध में खड़े होकर देश के साथ चलने को तैयार है। रोचक बात है कि बड़ी संख्या में जम्मू कश्मीर के मुसलमान भी इस धारा के समाप्त करने के पक्ष में हैं। केवल इस की आड़ में राजनीति करने वाले दल ही इसका विरोध कर अपनी राजनीती करते आये हैं। फिर अभी कौन सी इस धारा को समाप्त कर दिया है? क्या यह कोई गीता या कुरान है कि इस बात करना भी पाप है?  फिर ये राजनैतिक चीखपुकार क्यूँ? इतिहास ने जम्मू कश्मीर में दिल्ली से हुई गल्तिओं को ठीक करने का अवसर दिया है। देश को इस का पूरा लाभ उठाना चाहिए। सरकार के साथ खुल कर खड़े होना चाहिए। क्या हमें उन लाखों हिन्दुओं की सिसकियाँ सुनाई देती हैं जो विभाजन के बाद जम्मू में बस गये थे। उन्हें इसी धारा की आड़ में आज तक नागरिकता नहीं मिली है? और जब विभाजन के समय पकिस्तान चले गये कश्मीरी मुसलमानों को जम्मू कश्मीर में  बसाने की बातें चलती हों तो क्या उनके जले पर नमक छिडकने की बात नहीं होती है। आखिर हम कब हिन्दू मुसलमान से ऊपर उठ कर एक नागरिक के रूप में सोचना और व्यवहार करना शुरू करेंगे? अब देश के सौभाग्य से दिल्ली में में ऐसा सोचने और करने वाली सरकार आयी है  तो यह तो देश के लिए शुभ संकेत है। देश के मुसलमान भाईओं को भी आगे आकर अपने तथाकथित पैरोंकारों की गिरफ्त से बाहर आकर केवल वोटर नहीं तो सम्मानजनक नागरिक के नाते देश की प्रगति का भागीदार बनना चाहिए।

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