गुरुवार, 29 मई 2014

धारा 370 पर संवाद से भाग क्यूँ रहे हैं सेक्युलर महारथी?

जम्मू कश्मीर में धारा 370 को लेकर छिड़ी बहस का स्वागत करने के बजाए सेक्युलर खेमे में खलबली मच गयी है। होना तो ये चाहिए था कि 370 के ये सब  पैरोकार बहादुरी से इस धारा के समर्थन में तर्क देते और पूरे देश को इसको बनाये रखने की जरूरत बताते। मजेदार बात है कि संघ को फासिस्ट बताने वाले खुद सम्वाद प्रक्रिया में शामिल होने के बजाए बहस से भागने के लिए ओछे ब्यान दे रहे हैं। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री चर्चा शामिल होने के बजाए भारत से अलग होने की धमकी दे कर अपनी अलगाववादी राजनैतिक सोच ही देश के सामने लाये हैं। यह तो 'खाना भी और गुरार्ना भी' भी वाली बात हुई। अब इस देश का युवा ये राजनैतिक पाखण्ड कहाँ सहन करने वाला है। वैसे भी अब्दुल्ला परिवार अपनी जरूरत के मुताबिक़ ही देशभक्त बनता है।  जम्मू कश्मीर किसी परिवार राजनैतिक द्ल या व्यक्ति विशेष की पै्तृक सम्पत्ति नहीं कि इस राज्य को लेकर कुछ भी करने का ये लोग दम भरते रहें। आज वास्तव में पूरे देश में इस धारा के उपर खुली  चर्चा  होनी चाहिए। धारा 370 बेशक जम्मू कश्मीर में लागू है लेकिन जम्मू कश्मीर पूरे देश का विषय है। वहां खर्च होने वाली अकूत धन सम्पति सभी देश वासिओं के खून पसीने का अंश है। इतना ही नहीं वहां कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए , सीमा की सुरक्षा के लिए बलिदान होने वाले सैनिक पूरे देश की अमुल्य निधि है। इतना सब होने के कारण जम्मू कश्मीर के भविष्य को एक परिवार, दल या व्यक्ति पर  विशेष रूप से जिनका स्वयम का इतिहास शंका के घेरे में है कैसे छोड़ा जा सकता है?  अब यह तर्क भी ज्यादा नहीं चल सकता कि विशेष परिस्तिथि के कारण यह प्रावधान किया गया। अगर यह सच भी है तो देश जानना चाहता है कि अब तो परिस्तिथिया  सामान्य हैं। फिर देश अब क्यूँ इस धारा का भार सहन करे? इसी धारा की आड़ में इस राज्य में भारत समर्थक शक्तियां कमजोर ही रहीं । इतना ही नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकार के निशाने पर ही रहीं। लाखों कश्मीरी पंडितों को घरबार छोड़ कर दर दर की ठोकरें खाने को बेबस होना पड़ा। इन की दर्द से बेखबर दिल्ली देश की एकता और अखंडता के नाम पर पाकिस्तान समर्थक तत्वों की कभी न ख्त्म होने वाली भूख को शांत करने जुट गयी। परिणाम जो होना था वही हुआ अर्थात 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यूँ ज्यूँ दवा की'। सबसे बड़ा गुनाह जो वोटों की राजनीति करने वाले दलों ने किया वह है इस विषय को मुस्लिम भावनाओं से जोड़ दिया । इस प्रकार सत्ता के ठेकेदारों ने अपनी कुर्सी की भूख में मुस्लिम भाईओं को  पूुरे देश की नजरों में संदिग्ध बना दिया। यह एक राज्य को दिया गया विशेष दर्जा है इसका लाभ या हानि वहां की सारी प्रजा को मिलता है फिर यहाँ मुस्लिम कहाँ से आ गये? सचाई तो यह है कि इस धारा की आड़ में जम्मू व् लेह लद्दाख से बहुत बड़ा अन्याय किया गया। यह केवल कश्मीर वेल्ली की पोषक बन कर रह गयी है। इसके अलावा इसकी आड़ में यह राज्य और अनेक लाभों से बंचित रह गया।
अब जब चर्चा निकल ही पड़ी है तो खुल कर होनी चाहिए, तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए और चर्चा मात्र चर्चा न रह कर किसी निर्णायक मोड़ तक पहुंचनी चाहिए। शायद नियति ने यह पुण्य का कार्य करने के लिए वर्तमान सरकार को चुना होगा। वर्तमान सरकार को इसके लिए दृढ़ता दिखानी होगी। पाकिस्तान और कश्मीर घाटी में खेल रहीं विदेशी शक्तियां इस धारा को किसी भी सूरत में बचाना चा्हेंगी। क्यूंकि इस अलगाववाद को प्रोत्साहन  देने वाली धारा के जाते ही उन सबको कश्मीर घाटी से अपना बोरी विस्तरा समेटना होगा यही सोच कर ये घबरा रही हैं। देशभक्त मुस्लिम भाईओं को भी देश हित में इस धारा के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाहिए। इससे उन के प्रति बहुसंख्यक समाज में अच्छा सन्देश जायेगा।

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