रविवार, 8 जून 2014

ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी 11 जून पर विशेष - राष्ट्रभक्तों के आदर्श छत्रपति शिवाजी

राष्ट्रभक्तों के आदर्श, हिन्दू ह्रदय सम्राट व् राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी का जीवन अत्यंत प्रेरक व् युवाओं को उर्जा से भर देने वाला है। भीषण विपरीत परिस्त्थियो में शिवाजी का अपने अदभुत साहस, शोर्य व् पराक्रम तथा नीति के बल पर, परिश्रम की पराकाष्ठा कर हिन्दू सम्राज्य की स्थापना कर लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है।  शिवाजी का जीवन सामान्य व्यक्ति से लेकर शासकों तक सभी के लिए प्रेरक व् प्रसांगिक है। आज की सामजिक, राजनैतिक परिवेश में जब हिन्दू शब्द मात्र से सेकुलर खेमा घबरा उठता है, देश आतंकवाद से बुरी तरह पीड़ित है तथा हमारे अधिकांश शासकों की सुख सुविधाओं से युक्त जीवन शैली से लोग परेशान हैं ऐसे में छत्रपति शिवाजी का जीवन आशा की नई किरण जगाता है।
        प्रसिद्ध विद्वान स्व. दत्तोपंत ठेन्गडी जी ने छत्रपति शिवाजी के गुणों की चर्चा करते हुए लिखा है कि शिवाजी की तुलना संसार के अनेक गुण सम्पन्न महापुरुषों साथ की जा सकती है। सेना संचालन की दृष्टि से सिकन्दर, सीजर, हानिबाल और नेपोलियन, दारुण निराशा की घड़िओं में जनता का मनोधैर्य टिकाये रखने की क्षमता की दृष्टि से लिंकन और चर्चिल, प्रखर राष्ट्रवाद को जाग्रत और संगठित करने में मेजिनी, वाशिंगटन तथा विसमार्क, राष्ट्रनिर्माण कार्य में आत्म विसर्जन की दृष्टि से कमालपासा और लेनिन,आसक्तिरहित शासन करने में मार्क्स आरेलियस तथा चार्ल्स पंचम। आसक्तिरहित शासन करने में मार्क्स आरेलियस एवं चार्ल्स पंचम से शिवाजी की तुलना की जा सकती है।
  किन्तु सम्पूर्ण गुण समुच्चय की दृष्टि से शिवाजी की तुलना किससे करें? कल्याण के सूबेदार की सुन्दर पुत्रबहू को मातृवत सम्मानित करने वाले छत्रपति शिवाजी की तुलना अन्य किस सत्ताधीस से करें? माओ और चे ग्वेवेरा से लगभग 300 वर्ष पूर्व शिवाजी ने गुरिल्ला युद्ध तंत्र का निर्माण किया।  नेपोलियन और हिटलर के मास्को अभियान के अनुभवों के सैकड़ों वर्ष पहले , युद्ध के दौरान सम्भाव्य आपत्काल में आश्रय स्थान के नाते सुदूर दक्षिण में उपयुक्त प्रदेश सम्पादित करने की दूरदर्शिता उन्होंने दिखाई। शास्त्र के नाते जिओ पोलिटिक्स का विकास होने के 250 वर्ष पूर्व सागरी सत्ता का सूत्रपात उन्होंने प्रयासपूर्वक किया। इतिहास के जिस कालखंड में सेक्ल्युर राज्य की कल्पना पश्चिम में जन्मी भी नहीं थी, उस समय शिवाजी ने हिन्दू परंपरा के अनुकूल साम्प्रदायनिर्पेक्ष धर्मराज्य की स्थापना की।
और उस पर अपने कृत्तव से सम्पादित राज्य के प्रति पूर्ण अनाशक्ति! अध्यात्म प्रवण होने के कारण अर्जित राज्य छोड़ कर संत तुका राम के समक्ष हरी संकीर्तन में ही शेष जीवन व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। एक अन्य अवसर पर तो उन्होंने अपना सम्पुरण राज्य ही समर्थ गुरु रामदास के चरणों में समर्पित कर दिया।
6 जून 1674
के दिन सम्पन्न हुआ राज्यरोहण किसी व्यक्ति का नहीं माना गया बल्कि हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना तो घोषणा थी हिन्दू राष्ट्र के सफल प्रत्याक्रमण की, हिन्दू संस्कृति के पुनरुथान की और विश्व धर्म की पुन: पर्तिस्थापना की। स्वयम शिवाजी ने समय पर घोषणा की कि हिन्दवी स्वराज्य स्थापन होना चाहिए, यह श्री भगवती की इच्छा है' राज्य धर्म का है शिव का नहीं।' इस अतुलनीय राष्ट्रपुरुष का स्मरण हमारे राष्ट्र के लिए संजीवनी के समान है।
बचपन में बादशाह के दरवार में सर झुक कर सलाम न बजाना, अपनी अदभुत कूटनीति के बल पर पिता जी को कैद से छुड़ा लेना, आवश्यक होने पर अत्यंत साहसिक निर्णय लेकर आगरा वार्ता के लिए पहुँच जाना तथा अपने से कई गुना शक्तिशाली अफ्जलखान को  उसी की भाषा में जबाब देना ऐसी अनेक घटनाएँ शिवाजी की महानता को दर्शाती हैं। ऐसे समय में जब भारत ने मुस्लिम शासकों के आगे घुटने लगभग टेक ही दिए थे, हिन्दू राजा हो भी सकता है यह आत्मविश्वाश भी हो समाप्तप्राय: हो गया था, इसलिए 'दिलिश्वरो व जग्दिश्वरो' की कहावत निकल पड़ी थी, ऐसे में शिवाजी ने हिन्दू साम्राज्य खड़ा कर लगभग असम्भव को संभव कर दिया। शिवाजी ने जीवन में लगभग 300 लड़ाइयां लड़ी लेकिन एक भी लड़ाई में शिवाजी को कोई चोट तथा हार का सामना नहीं करना पड़ा। आज जब अपने अधिकाश युवा निराशा से घिरे हैं ऐसे में उनके लिए शिवाजी के जीवन की असंख्य  रोमहर्षक, उदबोधक तथा प्रेरणास्पद घटनाएँ हमारे युवा भारत को नये उत्साह, उमंग व् भव्य-दिव्य लक्ष्य से भर सकती हैं

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