बुधवार, 4 जून 2014

पुण्य भूमि भारत-भारत प्यारा सबसे न्यारा-2

पिछली किश्त में हमने भारत की आध्यात्मिक विरासत से रूबरू होने का प्रयास किया । इस भाग में हम भरत के पवित्र तीर्थ, नदी व् पर्वतों की चर्चा करेंगें। हमारे ऋषियो की जीवन की ओर तथा प्रकृति की ओर देखने की दृष्टि अत्यंत सुंदर और अदभुत थी। हमने प्रत्येक नदी, पर्वत को पूज्य भाव से देखा। उनके साथ अपना रिश्ता जोड़ने का प्रयास किया। आज दुनिया भारत की इस सोच की दीवानी होती जा रही है की अगर हमने प्रकृति,नदियो व् पर्वतों को बचना है तो भारत की सोच को जीवन में अपनाना होगा। अपनी श्रेष्ठ विरासत को भूलने का ही परिणाम है की आज हमें अपनी नदियो को बचाने के लिए करोड़ों रूपये खर्चने पड़ रहे हैं।  नई सरकार ने तो गंगा की स्वच्छता के लिए अलग मंत्रालय तक का सृजन किया है। अपनी जडों से कटने के कारण हमने छ: दशकों में नदियों , पर्वतों को  समाप्त प्राय: कर दिया जिन्हें हमने लाखों सालों  तक संभाल कर रखा। अपनी इस विरासत की उपेक्षा का बड़ा कारण प्रकृति की इस अद्भुत भेंट के प्रति हमारी अज्ञानता ही है। आईये!अपनी इस दैव दुर्लभ विरासत की झलक पाने का प्रयास करते हैं। एक सुंदर श्लोक में प्रमुख पर्वतों का स्मरण होता है-
महेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालय:।
ध्येयो रैवतको विन्द्यो गिरिश्चारावलिस्त्था।।
महेन्द्र पर्वत- उड़ीसा ्रान्त के गंजाम जिले में पूर्वी घाट का उतंग शिखिर। इस पर्वत पर चार ऐतिहासिक मन्दिर विद्यमान हैं। चोल राजा राजेन्द्र ने 11 वीं सदी में यहाँ जय स्तम्भ स्थापित किया था। स्थानीय मान्यता है की भगवान परशुराम, इस पर्वत पर विचरण करते हैं। इस पर्वत से महेन्द्र- तनय दो प्रवाह निकलते हैं।
मलय पर्वत- भारतीय बाङ्ग्मय में मलयगिरि का वर्णन अनेक कवियों ने किया है। चन्दन वृक्षों के लिए प्रसिद्ध यह पर्वत कर्नाटक प्रान्त में दक्षिण मैसूर में स्तिथ है। यह नीलगिरी नाम से जाना जाता है।
सह्यो पर्वत-गोदावरी ओर्ब्क्रिश्न नदियो का उद्गम स्थल यह पर्वत महाराष्ट्र और कर्नाटक में स्तिथ है। त्र्यम्बकेश्वर, महाबलेश्वर, पञ्चवटी आदि प्रमुख तीर्थ इसके शिखरों पर या इससे निकली नदियो के किनारे स्तिथ हैं। यह पर्वत शिवाजी महाराज के शोर्य-पराक्रम का क्षेत्र रहा है। अनेक इतिहास प्रसिद्ध दुर्ग इसके शिखरों पर स्तिथ है जैसे शिवनेरी, प्रतापगढ़, पन्हाला, विशालगढ़, पुरंदर, सिंहगढ़ और रायगढ़ ।
हिमालय- भारत के उत्तर में स्तिथ सदैव हिम मंडित विश्व का सबसे ऊँचा  पर्वत हमारे स्वाभिमान का भी प्रतीक है। कालिदास ने इसे देवतात्मा की उपमा दी है। (अस्त्युत्तरस्या दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:) उत्तर की ओर से विदेशी हमलावरों को रोकने के लिए चट्टान की भांति खड़ा है हिमालय। गंगा यमुना सिन्धु ब्रह्मपुत्र जैसी नदियो का जनक। भगवन शिव का प्रिय निवास हिमालय पर्वत ही है। हिमालय में गंगोत्री यमनोत्री मानसरोवर बद्रीनाथ केदारनाथ जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान हैं। देवी पार्वती का जन्मस्थान,  भगवान वेद ब्यास की कर्मभूमि। महाभारत के बाद पांडवों ने वन गमन किया था। युगों-युगों से ऋषियो मुनिओन योगिओ तपस्विओ और दार्शनिकों का वास स्थान रहा है हिमालय।
अरावली- राजस्थान का प्रमुख पर्वत जिसके आश्रय से उत्तर पश्चिम की ओर से होने वाले हमलों कस प्रतिरोध किया गया। महाराना प्रताप के शोर्य कृतव का साक्षी है अरावली। प्रसिद्ध हल्दी घाटी इसीकी चोटियो के बीच है। अरावली के सर्बोच शिखर का नाम आबू है।
इसी प्रकार गुजरात का रैवतक और भारत के मध्य में स्तिथ बिन्द्याचल भारत के प्रमुख पर्वत हैं।
अब नदिओ  का विचार करें तो एक सुंदर श्लोक भारत में अनादि काल से सस्वर बोल जाता है-
गँगा सरस्वती सिन्धुर्बह्मपुत्रश्च गण्डकी।
कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोद महानदी।।
गँगा- भारत की सबसे पवित्र जिसे पापनाशिनी भगीरथी जाह्नवी आदि नामों से पुकारा जाता है। गंगोत्री से निकल कर हरिद्वार में समतल में प्रवेश करती है। उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल को अपने पवित्र जल से सिंचित करती हुई गंगा सागर में जा मिलती है। ऋग्वेद के बड़ी सूत्र के अनुसार गंगा भारत की नदिओ में सर्व प्रथम है। गंगा के तट पर हरिद्वार काशी प्रयाग जैसे अनेक सुप्रसिद्ध तीर्थ हैं। इसके तट पर आनादी काल से ऋषि मुनिओ ने साधना की है। भारत के इतिहास की साक्षी है गंगा। इसका जल अत्यंत पवित्र है। पुरानों के अनुसार विष्णु के चरणों से निकली है गंगा। राज भागीरथ अपने पूर्वजों का उद्धार करने इसे धरती पर लाये।
सरस्वती- वेदों में उल्लेखित पवित्र नदी,जो हिमालय से निकल कर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान, गुजरात के क्षेत्रों से निकलकर सिन्धुसागर से मिलती थी। कालान्तर में यह नदी विलुप्त हो गयी। इसके तट ऋषियो की तपोभूमि रहे हैं। पुरानों सरस्वती को ब्रह्म की पत्नी,तथा वाणी की देवी भी कहा गया। सम्भव है कि इसके तटवर्ती प्रान्तों की विद्या वैभव सम्पन्नता के कर्ण इसे सरस्वती का नाम मिला हो।
सिन्धु- पवित्र नदी, जिसका वैदिक साहित्य में उल्लेख। हिमालय में मानसरोवर के निकट से निकल कर सिन्धु नदी कश्मीर पंजाब और सिंध प्रान्त से होती हुई सिन्धु सागर में जा मिलती है। ऐसी मान्यता है कि हिन्दू नाम सिन्धु से ही मिला है। सिंध ओर्न्सात सहायक नदिओन के कर्ण इस क्षेत्र कस नाम सप्त सैन्धव कहलाता था। वैदिक सभ्यता और संस्कृति यहीं फली फुली थी। आज यह नदी और प्रदेश दोनों ही पाकिस्तान में है।
ब्रह्म पुत्र- इसका उद्गम स्थल हिमालय में मानसरोवर के समीप स्थित  एक विशाल हिमानी है। यह महानद पूर्व की ओर बढ़ता हुआ असम और बंगाल में होते गंगा सागर में मिलता है। भारत में यह  सबसे लम्बी नदी है। तिब्बत में सांपों नदी के नाम से बहने के बाद अरुणाचल की उत्तरी सीमा से भारत में प्रवेश करती है। गुहावटी में इसके किनारे कामाख्या देवि का शक्ति पीठ है।
कावेरी- मुख्यत: कर्नाटक और तमिलनाडू में बहने वाली पवित्र नदी,जो कुर्ग में सह्याद्री के दक्षिण छोर से निकल कर गंगा सागर में मिल जाती है। इसके प्रवाह के बीच में आदिरंगम, शिव समुद्रम तथा अंतरंगम नाम के तीन पवित्र द्वीप समूह हैं जिन पर विष्णु मन्दिर हैं। जो स्थान उत्तर भारत में गंगा यमुना को प्राप्त है वही दक्षिण भारत में कावेरि और ताम्रपर्णी को प्राप्त है। कावेरि से निकली नहरों नें तमिलनाडु को कृषि समृद्धि प्रदान की है।
यमुना- उत्तर भारत की पवित्र नदी, जो हिमालय में यमनोत्री के शिखर से निकलकर प्रयाग क्षेत्र में गंगा से मिल जाती है। गंगा यमुना का यह संगम आस्तिकों के लिए तीर्थराज है। इस नदी के तट पर इन्द्रप्रस्थ, मथुरा, और वृन्दावन जैसे ऐतिहासिक नगर बसे हैं। नीलवर्ण नदी के साथ श्री कृष्ण का गहरा सम्बद्ध है। पुराणों में यमुना को सुर्यकन्या माना गया है। वेदों और ब्राह्मण ग्रथों में इसका उल्लेख कई बार हुआ है।
गोदावरी- ब्रह्मपुराण के अनुसार गौतम ऋषि शिव की जटा से गंगा को बर्ह्मगिरी में अपने आश्रम के के समीप ले आये। इसलिए वहां प्रकट हुई गोदावरी को गौतमी और दक्षिण की गंगा भी कहते हैं। इसका उद्गम दक्षिण के त्र्यम्बकेश्वर से है। गोदावरी महाराष्ट्र से आंध्र की ओर बढती हुई गंगासागर में विलीन हो जाती है । भगवान राम चन्द्र ने गोदावरी के समीप पंचवटी में निवास किया था। समर्थ रामदास ने इसी स्थान पर 13 वर्ष तपस्या की थी। गोदावरी के किनारे नांदेड में गुरु गोबिंद सिंह की समाधि विद्यमान है। ब्रह्म पूराण में गोदावरी के किनारे लगभग 100 तीर्थों का उल्लेख है। पंचवटी का कालाराम मन्दिर दक्षिण के पश्चिम भारत के सर्वोत्तम मंदिरों में गिना जाता है।
इसी प्रकार नेपाल के मुक्तिनाथ के समीप दामोदर कुंद से निकली गण्डकी, रेवा नदी जो नर्मदा के नाम से प्रसिद्ध हैऔर आंध्र की प्रसिद्ध पुण्यसलिला नदी कृष्णा अत्यंत पवित्र और जनमानस में गहरे बैठी नदियाँ विशेष रूप से उल्लेखनियां हैं।

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