मंगलवार, 1 मई 2018
सूरदास समाज के प्रति संवेदनशीलता मनुष्यता की पहली सीढ़ी
सूरदास जयंती पर 'सक्षम' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मंच पर बैठे बैठे मन मे विचार आ रहा था कि वास्तव में 'अंधा' कौन है? जिनके पास आंखें नहीं हैं या जिनकी आंखें होते हुए भी जो दिव्यांग समाज के लिए कुछ नहीं करते? जो लोग शरीर के सारे अंग होने के बाबजूद केवल अपने लिए जीते हैं। उनसे बड़ा कृतघ्न कौन हो सकता है। हम ईश्वर द्वारा प्रदान अपने अमूल्य अंगों का महत्व कहां समझते हैं? हम अपने स्वस्थ, सबल औऱ सम्पूर्ण शरीर के बाबजूद अपनी गरीबी या असफलता के लिए ईश्वर या भाग्य को कोसते रहते हैं। आंखों का महत्व सूरदास, हाथ व टांगों का महत्व लंगड़े , आवाज व कान का महत्व मूक व बधिर से ज्यादा कौन समझ सकता है? फिर भी कहा जा सकता है कि भाग्यहीन वास्तव में वो हैं जो ईश्वर की इतनी कृपा के बाबजूद स्वयं के लिए जीते हैं। स्वामी विवेकानंद से किसी युवक ने पूछा, जिस व्यक्ति की आंखें नहीं हैं उससे बड़ा भाग्यहीन व्यक्ति कौन हो सकता है? 'जिस व्यक्ति ने अपनी दृष्टि खो दी है' - स्वामी जी का उत्तर अत्यंत सटीक है। (The person who has lost his vision)
मंच पर बैठे प्रज्ञा चक्षु बाल कलाकारों की प्रतिभा देख कर मन भावुक हो गया। कितनी ही प्रज्ञा चक्षु प्रतिभाएं किसी सहारे के अभाव में दम तोड़ जाती होंगी, यह सोच कर मन दुखी जो गया। आज भारत आंखें दान करने में बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। श्रीलंका जैसा छोटा सा देश भी आंखें दान करने के मामले में हमसे कहीं आगे है। आवश्यकता समाज मे जागृति निर्माण कर आंखें दान करने के अभियान को जनांदोलन बनाने की है। प्रज्ञा चक्षु समाज की अंगुली पकड़ने की , उसे सहारा देने की है। शायद ईश्वर इन बन्धु/ भगनियों के जीवन मे प्रकाश लाने का श्रेय हमें देना चाहता हो। आवश्यकता हमें समाज के इस महत्वपूर्ण भाग के प्रति संवेदनशील बनने की है। हमें अपने बच्चों को वर्ष में एक बार अंध विद्यालयों या छात्रावास में ले जाना चाहिए। इस विषय के प्रति संवेदनशीलता निर्माण करने के लिए किसी दिन आंखों पर पट्टी बांध कर कुछ समय रहने को कहना चाहिए। प्रत्येक बालक को किसी एक प्रज्ञा चक्षु बालक से दोस्ती करने को प्रेरित करना चाहिए। प्रज्ञा चक्षु बालक/ बालिका का हर जगह सहयोग करना एवम जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए हिम्मत देनी चाहिए। श्रद्धा भक्ति, आत्मविश्वास, साहस, सत्संगति एवम प्रशिक्षण इन बालकों के जीवन को प्रकाशित कर सकते हैं।
सूरदास जयंती के इस कार्यक्रम में चंडीगढ़ के सरकारी अंध विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री जरियाल, ट्रिब्यून के समाचार सम्पादक श्री हरीश वशिष्ठ मंच पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में प्रज्ञा चक्षु छात्रा स्व. रुबीना की लिखी कविताओं की सीडी रिलीज की गई। सक्षम ने रुबीना को सीडी के रूप में श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम में प्रज्ञा चक्षु छात्रों द्वारा गाए भजनों ने सबका मन मोह लिया।
• सन्त, भक्त एवम कवि शिरोमणि सूरदास जी को शतशत प्रणाम, सूरदास का बहुआयामी जीवन हमें प्रेरणा देता है कि भगवान हम से हमारी आंखें या कोई और अंग छीन सकता है लेकिन हमारी श्रद्धा, भक्ति नहीं छीन सकता। इन गुणों के कारण ईश्वर को हम पर कृपा करनी ही पड़ती है। दृष्टि बाधिता के बाबजूद सूरदास भक्ति कवि, वात्सल्य प्रेम के कवि , श्रृंगार के कवि का गौरवमय स्थान प्राप्त किया। सूरसागर ग्रन्थ लिखा। जिसमे सवा लाख से अधिक पद हैं। इसके अतिरिक्त अनेक प्रसिद्ध रचनाएं उनकी अमर कृतियाँ हैं। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि श्रद्धा भक्ति एवम संकल्प से कुछ भी सम्भव है। उनके जीवन का प्रसंग हमने सुना ही होगा- एक बार भजन करते करते, मार्ग में चलते चलते सूरदास कुंएं में गिर गए। सूरदास ने भगवान के प्रति प्यार भरा आक्रोश जताते हुए संकल्प ले लिया - 'यहीं भजन करूँगा। जब तक स्वयं श्री कृष्ण बाहर नहीं निकालेंगे बाहर आने के लिए प्रयास नहीं करूंगा। किसी को सहायता के लिए नहीं पुकारूंगा।' श्री कृष्ण भला उस पुकार को कैसे अनसुना कर सकते थे। स्वयं आकर सूरदास को बाहर निकाला। सूरदास ने पूछा, कौन हो? श्री कृष्ण शरारत के मूढ़ में तो रहते ही थे। कुछ नहीं बोले। सूरदास ने अंदाज लगा लिया। श्री कृष्ण भी भांप गए कि पकड़ा गया हूँ। जबरदस्ती बाजू छुड़ा कर निकल गए। सूरदास बिछुड़न की दर्द से कराह उठे- पद की रचना हो गई- बांह छुड़ाए जात हो निर्बल जान के मोहि।
हृदय से जब जाओगे सबल जानहुँ तोहे!!
गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति प्यार, यशोदा के कृष्ण के प्रति प्यार को अमर करने वाले सूरदास के जीवन को गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता-
ऊधो मन न भये दस बीस!
एक हुतो सो गयो श्याम संग
को अब राधे ईश।
ऊधो मन न भये दस बीस। इसके अतिरिक्त
मैया मोहे मैं नहीं माखन खायो! मैया कबहुँ बढ़ेगी छोटी, मैय्या दाउ बहुत ही खिजायो! आदि आदि इतिहास प्रसिद्ध कविताएं सूरदास को अत्यंत भावुक, श्रद्धा और भक्ति का धनी सिद्ध करते हैं।
आज प्रज्ञा चक्षु बालकों को दुनिया के प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टाफिंग हाकिन्स, अरुणिमा सिन्हा तथा सुधा चन्द्रन जैसे संकल्प के धनी दिव्य चक्षु महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा ले कर हिम्मत, विश्वास तथा बड़े लक्ष्य के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए।
कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता?
एक पत्थर तबीयत से उछालो तो यारो!
संकल्प की पूरी टीम बहिन अनु मल्होत्रा, एडवोकेट श्री अमित सागर शर्मा, तथा नाइपर मोहाली से डा शरत के नेतृत्व में सेवारत हैं, सब बधाई के पात्र हैं। ईश्वर उन्हें सफलता प्रदान करे, यही मंगल कामना है।
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