रविवार, 28 फ़रवरी 2016

बड़े लक्ष्य के लिए आगे आते छोटे छोटे हाथ

जिस उम्र में बच्चे टॉफी, ब्रांडेड कपड़े एवम् पॉकेट मनी के लिए घर में तूफान मचाते दिखते हैं उसी उम्र में अपने समवयस्क गरीब बच्चों के लिए शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अपनी जेब से पैसे देने के अद्भुत कार्यक्रम का नाम है - समर्पण। यह किन्ही एक दो बच्चों का जोश में  आकर गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए अपने पॉकेट मनी से कुछ राशि दान दे देने की कोई आकस्मिक घटना विशेष नहीं है बल्कि प्रतिवर्ष बसन्त पंचमी के दिन पंजाब में लगभग 40,000 बच्चे इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं। बच्चों को प्रेरणा मिलती है विद्या भारती के अधिकारीयों, आचार्यों एवम् विद्या मन्दिर प्रबन्ध समिति के सदस्यों से जो स्वयं भी इस कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक हिस्सा लेते हैं। नई पीढ़ी को लेकर निराशाभरी बातें करने वालों की जानकारी हेतु बता दें कि यह चित्रण किसी देवलोक में घटित होने वाली  घटना का नहीं है बल्कि सम्पूर्ण देश में विद्या भारती द्वारा संचालित लगभग 15000 विद्यालयों में प्रतिवर्ष का स्थायी आयोजन है। अपने पंजाब में भी सर्वहितकारी शिक्षा समिति द्वारा संचालित 100 से अधिक विद्यालयों में प्रतिवर्ष होने वाला समर्पण कार्यक्रम एक स्वभाव बन चुका है। विकास के लिए केवल सरकार की ओर ताकते न रह कर अपना थोड़ा ही क्यों न हो उस हेतू अपना सहयोग देने का संस्कार बाल मन पर अंकित करने का सफल प्रयास है समर्पण।आज जम्मू- कश्मीर, उत्तराखण्ड व देश के पूर्वोत्तर में इसी समर्पण राशि से अनेक विद्या मन्दिर खड़े हो चुके हैं। अनेक विद्या मन्दिर निर्माणाधीन हैं। आखिर बच्चों से कितनी धनराशि एकत्र हो जाती होगी? आपका क्या अनुमान है? आपको जानकर सुखद आश्चर्य एवम् आनन्द होगा कि प्रतिवर्ष पंजाब के हमारे ये नन्हें- मुन्ने लगभग 30 लाख रूपये का सहयोग अपने हम उम्र गरीब बच्चों के लिए एकत्र करते हैं। बून्द- बून्द घड़ा भरने या गिलहरी जैसे योगदान से इतना बड़ा कार्य हो जाता है, यह बहुत लोगों की कल्पना से बाहर है।
समाज के प्रति अपनत्व एवम् दर्द-
          देश हमें देता है सब कुछ।
          हम भी तो कुछ देना सीखें।।
इस भाव को बाल मन में अंकित करने का सफल प्रयास एवम् प्रयोग है समर्पण कार्यक्रम। कई बार अनेक सुझाव आते हैं कि बच्चों से दस-बीस रूपये लेने के बजाए बड़े उद्योगपतियों से मांगने पर ज्यादा बड़ी राशि प्राप्त हो सकती हैं। इस बात में बजन होने के बाद भी हमारे अधिकारी समाज से सहयोग इकठा करने के लिए प्रेरित करने के बाद भी बच्चों से सहयोग मांगने पर पूरा आग्रह बनाए रखते हैं। क्योंकि इस सहयोग राशि में राशि भी ज्यादा बाल मन में देश एवम् समाज के प्रति दर्द एवम् अपनापन उत्पन्न कर गरीब वर्ग के लिए कुछ करने का व्यवहारिक प्रशिक्षण देना है। विद्या भारती का सुविचारित मत है कि आज अगर हमारे पूंजीपतियों, नेताओं एवम् प्रसाशनिक अधिकारियों के मन में यह दर्द पैदा हो जाए तो देश का आर्थिक दृश्य बदलते देर नहीं लगेगी। हमारे विद्या मन्दिरों में औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए अनेक प्रयोग और उपक्रम लिए जाते हैं। वर्तमान समय में समाज शास्त्री नई पीढ़ी में इन्हीं गुणों की आवश्यकता अनुभव कर रहे हैं। हमारे विद्या मन्दिरों से शिक्षा प्राप्त हमारे पूर्व छात्र समाज जीवन में अपने इन्हीं गुणों एवम् व्यवहार से अलग पहचान एवम् सम्मान प्राप्त करते हैं।
अभिनव प्रयोग है 'समर्पण' - स्वामी विवेकानन्द कहते थे कि जीवन में अपना हाथ ऊपर अर्थात देने की मुद्रा में रहना चाहिए। जैसा हम सोचते हैं, इच्छा करते हैं ईश्वर हमें वैसी स्थिति में पहुंचा देते हैं। जब हम 'बसुधैव कटुम्बकम' का उद्घोष कर सम्पूर्ण विश्व के लिए जीते थे तब हम विश्व गुरु थे। हमारे यहां सोने और चांदी का धुंआ निकलता था। इसके विपरीत जबसे हमने मैं ...मैं
का राग अलापना शुरू किया और सब जगह से लेने के लिए हाथ पसारने शुरू कर दिए तो हम भिखारी जैसी अवस्था में पहुंच गए। हमें हजारों वर्षों की गुलामी और घोर गरीबी की यातना झेलनी पड़ी। आज यद्यपि हम स्वतंत्र हो गए हैं लेकिन मानसिकता में स्वाभिमान और दूसरों के लिए जीने का स्वभाव नहीं बना इस के परिणामस्वरूप आज भी 40/ 50 करोड़ देशवासी भयंकर गरीबी का सामना करने को बेबश हैं। करोड़ों बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। हमारे यहां विकास का प्रारूप भी कुछ ऐसा बिचित्र सा है कि प्रतिवर्ष करोड़पतियों की संख्या एवम् झुग्गी झोपड़ियों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हो रही है। हमारे देश में एशिया के सबसे ज्यादा दौलतमंद धन्नासेठ हैं। एक बार हमारे मन में सम्पूर्ण समाज के प्रति अपनापन और प्रत्येक देशवासी के प्रति ममत्व उत्पन्न हो जाए तो झुग्गी झोंपड़ी मुक्त भारत बनते देर नहीं लगेगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा प्राप्त विद्या भारती नई पीढ़ी के बाल मन में ऐसे ही श्रेष्ठ संस्कार पैदा करने के लिए प्रयासरत है। इसी प्रयास में प्रमुख कार्यक्रम है समर्पण।
कैसे करते हैं समर्पण- विद्या मन्दिरों में समर्पण को लेकर अनेक प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं। समर्पण से कुछ दिन पूर्व आचार्य कक्षाओं में समर्पण का महत्व एवम्  पद्धति को लेकर चर्चा करते हैं। कार्यक्रम वाले दिन बच्चे माँ सरस्वती के चित्र के आगे प्रणाम कर अपनी सहयोग राशि भेंट करते हैं। कार्यक्रम संस्कार एवम् भावप्रद रहे इसके लिए विद्यालय में उत्सव जैसा माहौल बनाया जाता है। लेने की तो होड़ समाज में सर्वदूर देखी जाती है लेकिन समाज के लिए देने को उत्सव में बदलने का प्रयास किया जाता है।  देशभक्ति के गीत, समाज के आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग को कैसी परिस्थितयों से जूझना पड़ता उसका सचित्र व सजीव चित्रण के लिए फ़िल्म व् लघु चित्रपट भी दिखाए जाते हैं। बच्चा समर्पण वाले दिन माता पिता से मांग कर धन राशि न लाकर वर्ष भर संग्रह करे, ऐसा आग्रह किया जाता है। बच्चे अपने गली मुहल्ले व गाँव में भी संग्रह करते हैं। समाज के लिए मांगने का भी अपना एक संस्कार एवम् आनन्द रहता है इस कार्यक्रम से यह संस्कार बाल मन में अंकित हो जाता है। समर्पण कार्यक्रम में आचार्य एवं प्रबन्ध समिति के सदस्य भी उत्साहपूर्वक सहभाग करते हैं। प्रतिवर्ष समर्पण कार्यक्रम करने के कारण अब तो बच्चे व् उनके अभिभावक बसन्त पंचमी की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। प्रत्येक विद्यार्थी समर्पण करते समय यही गुनगुनाता रहता है-
ढूंढे से भी न दर्शन हों दीन दुखी के यहां कभी।
अन्न वस्त्र गुह्यआत्म ज्ञान के भरे रहें भण्डार सभी।।

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