शनिवार, 30 जनवरी 2016

क्रूर इस्लामिक आतंकवाद के आगे विश्व असहाय क्यों! निर्दोष महिला और बच्चों को बचाने आगे आना होगा

सोचा था कि हाकिम से करेंगे शिकायत। कमबख्त वो भी तुझे चाहने वाला निकला।। आखिर इस्लामिक आतंकवाद की शिकायत कहां और किस से की जाए? आए दिन अख़बारों और सोशल मीडिया में इस्लामिक आतंकवाद की खबरें और फ़ोटो देख कर मन दहल जाता है, अत्यंत बेचैन हो जाता है। हैरानी और निराशा यह देख कर और बढ़ जाती है कि भारत और विश्व में मानवाधिकार के झंडाबरदार हों या महिला अधिकार के चैम्पियन सब मुंह में ताला लगा कर बैठे हैं। जब भारत में असहिष्णुता आदि का बिना बजह का शोर मचाने वाले या पुरष्कार लौटाने वाली गैंग भी जब रहष्यमयी चुप्पी धारण कर लेती है तो उनकी नोटँकी, दोगलापन और एक बड़े षड्यंत्र की गन्ध आना स्वाभाविक ही है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, यह प्रवचन सुनते सुनते कान पकने लग गए हैं। ये ठीक है की सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होंगे या इस्लाम केवल आतंकवाद नहीं सिखाता होगा लेकिन यह तो पक्का है कि इस्लाम और इस्लामिक नेतृत्व जिहाद के नाम पर गैर मुस्लिमों के साथ विशेषकर महिलाओं और बच्चों के साथ क्रूरता और नीचता की हद को छू लेता है। और इस सब में उन्हें किसी प्रकार का पछतावा या दुःख आदि न होकर सन्तुष्टि जैसी ही होती है। फर्क इतना है कि इस्लामिक नेतृत्व को लोकलाज के चलते कहीं दबी जुबान से विरोध करना पड़ता लेकिन बहुत जगह तो मानवता की सारी सीमा और संवेदनाएं पार कर इन पाषणयुगीन कृत्यों को खुला समर्थन देने से भी गुरेज नहीं करता।
धर्म के नाम पर सनकीपन- क्या महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध नीचता की हद तक उतर कर अमानवीय ढंग से अत्याचार, सेक्स स्लेव परम्परा आदि किसी धर्म का हिस्सा हो सकता है? थोड़ी देर के लिए मानव की पाशविक वृतियों के चलते दूसरी औरतों से जबरदस्ती सेक्स को स्वीकार भी लें तो भी सामूहिक दुष्कर्म और इतना ही नहीं तो उसके बाद उनकी निर्मम हत्या को क्या कहेंगे? इसके साथ ही बच्चों की निर्मम हत्याओं को सनकीपन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? ऐसा लगता है कि इस्लाम की आड़ में मनुष्य रूप में राक्षस वृतियां खुल कर अपना तांडव कर रही हैं। पागल कुत्ते की तरह इन दुष्प्रवृत्तियों को सख्ती से उनकी भाषा में बोलकर अर्थात निर्दयी हो कर (डॉक्टर की तरह जो मरीज के भले के लिए अपना मन पक्का कर ब्लेड से चीरफाड़ करने में गुरेज नहीं करता)  समाप्त करने के सिवाए कोई मार्ग नहीं है। कई बार तो इस्लामिक आतंकवादियों से भी ज्यादा अपराधी मुझे कथित सभ्य समाज दिखता है जो मौन धारण किए बैठा है। हम कवि की उस वाणी को क्यों भूल रहे हैं
मत समझो कि पाप का भागी केवल व्याध।
जो चुप हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।। हरिसिंह नलवा और बन्दा बहादुर ही इस्लामिक आतंकवाद का सही उत्तर होगा।
भारत को इस्लामिक आतंकवाद के सफाए का नेतृत्व करना होगा- क्योंकि भारत ने सदियों तक इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध लगभग एक हजार साल का लम्बा संघर्ष किया है। आज जहां इस्लामिक आतंकवाद को याद कर हम सिहर उठते हैं वहीं हमारे प्रतिकार को स्मरण कर इस्लाम के कथित झंडाबरदारों की रूह भी काम्प उठती है। गुरु गोबिंदसिंह, छत्रसाल, छत्रपति शिवजी, महाराणा प्रताप बन्दा बहादुर और हरिसिंह नलवा के रूप में इस्लामिक आतंकवाद से लोहा लेने का हमारा अच्छा अनुभव है। मुसलमान कवि का दर्द भारत के असीमित साहस और शक्ति को स्मरण दिलाता है-
वो दीने इलाही का बेबाक बेड़ा न काबुल में अटका, न........
वो डूबा दहाने गंगा के आकर।।
इस्लाम की जिस आंधी ने पूरे विश्व को पैरों तले रौंद दिया, देश के देश डकारने वाला इस्लाम भारत में घुटने टेकने को बेबश हो गया था। युद्ध के नशे में चूर एक इस्लामिक बहादुर! की आप बीती भी कम रोचक नहीं है जो भारतीय वीरों से पाला पड़ते ही युद्ध का जिक्र चलने मात्र से हाय अल्लाह, हाय अल्लाह चिलाने लग पड़ता था। युद्ध में उसका भूत एक ही तलवार के बार से उतर गया था। युद्ध की बात चलने पर बार बार अपने पैरों को चूमता था कि इन्हीं पैरों की बाबत युद्ध से जान बचा कर भाग सका था। हमारी जबरदस्त आंतरिक प्रतिरोधक और सर्व समावेशक शक्ति के चलते युद्ध के साथ-साथ सांस्कृतिक मोर्चे पर भी इस्लाम भारतीय रंग में रँगने लग गया था। हमने रहीम, रसखान जैसे अनेक भारत भक्त लोगों की लम्बी श्रृंखला पैदा कर दी थी। भारत को शायद अभी और दुःख सहन करने होंगे इसलिए ठीक उसी समय अंग्रेज आ टपका नहीं तो इस्लामिक कट्टरता को हमने नकेल डाल ली थी। इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ इस लम्बे और सफल संघर्ष के कारण लगता है इस्लामिक कट्टरता के सांप फन को कुचलना यह इंग्लैंड अमेरिका के बस की बात नहीं है। इन पर तो यह उक्ति ठीक बैठती है-
  न उठी थी खंजर न उठेगी इनसे
ये बाजू मेरे अजमाए हुए हैं।
इस्लामिक आतंकवाद से संकट में पड़ रहे मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए भारत को ही आगे आना होगा। आवश्यकता राष्ट्र के रूप में फ्रांस और जापान की तरह सही सोच और स्पष्ट लक्ष्य की है। विश्व के प्रति हमें अपने दायित्व को लेकर हम मौन और तटस्थ नहीं बैठ सकते। इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध सम्पूर्ण विश्व को लामबंद करना होगा। सन्तोष का विषय है कि वर्तमान भारत सरकार ने इस दिशा में धीरे धीरे लेकिन गम्भीर प्रयास प्रारम्भ कर दिया है। जापान, इजरायल की यात्रा, बराक ओबामा और अब फ्रांस के राष्ट्रपति श्री ओलांद से दोस्ती को विकास के साथ साथ इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध धार देने की दिशा में गम्भीर प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

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