शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

अभिभावक अपने बच्चों के लिए कैसे खोजें उचित विद्यालय?

फरबरी आते आते अपने बच्चों को अच्छे विद्यालय में दाखिल कराने को लेकर अभिभावकों की धड़कन बढ़नी शुरू हो जाती है। अपने स्वप्न के विद्यालय में बच्चे के प्रवेश के लिए सारे सम्भव नैतिक अनैतिक माध्यमों का प्रयोग करने को भी उद्यत रहते हैं। बच्चे को उनकी पसन्द के विद्यालय में प्रवेश मिल पाएगा की नहीं यही चिंता उन्हें खाए जाती है। ऐसा लगता है जैसे कि अपनी कल्पना के विद्यालय में बच्चे के प्रवेश मात्र से उन्होंने बच्चे का उज्ज्वल भविष्य सुरक्षित कर लिया। जबकि सब जानते हैं कि जीवन में सफलता बहुत आगे की बात होती है और वह कई अन्य बातों पर भी निर्भर करती है। आज प्रायः हर अभिभावक अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम विद्यालय खोजने में परेशान दिखाई देता है। इसके साथ ही आज विद्यालय भी अच्छे बच्चों और अभिभावकों की तलाश में परेशान दीखते हैं। दोनों को एक दूसरे से पर्याप्त शिकायतें रहती हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि अपना विश्लेषण न करने के कारण दोनों परस्पर एक दूसरे की कमियां निकालते रहते हैं। और इस कारण दोनों की ही तलाश कभी पूरी नहीं होती। और इस कारण दोनों से सन्तुष्टि कोसों दूर रहती है। इस निराशा, खीज और असन्तुष्टि का बड़ा कारण आप अच्छा या सर्वश्रेष्ठ विद्यालय या योग्य अभिभावक मानते किसको हैं, इस प्रश्न के उत्तर में छिपी है। अभिभावक विद्या मन्दिर में क्या तलाशें इस विषय पर चिंतन करेंगे।

अभिभावक क्या ढूंढें विद्या मन्दिर में-

  अभिभावक के रूप में अपने बच्चे के लिए सबसे बढ़िया विद्यालय खोजना हर व्यक्ति की चाहत होना स्वाभावविक है। लेकिन अच्छे विद्यालय का आधार क्या रहता है और क्या रहना चाहिए, यह यक्ष प्रश्न है। आज शिक्षा जगत में बाज़ारवाद खुलकर खेलता देखा जा सकता है। शिक्षा क्षेत्र में बड़े घराने उतर आ जाने से यह गलाकाट प्रतियोगिता अपने पूरे उफान पर है। अधिकांश अभिभावक विद्यालयों की चकाचौन्ध में खो जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि यह सारा मायाजाल उनकी जेब से गए या जाने वाले पैसे का चमत्कार है। इससे भी बड़ी बात बच्चे की शिक्षा के स्तर का एसी बस, कमरे आदि का को खास सम्बद्ध नहीं है। अभिभावक होने के नाते बच्चे की सुख सुविधा को लेकर चिंता करना ठीक है लेकिन इसके साथ ही हमें विचार करना होह कि बच्चे को अंदर से मजबूत बनाना है या छईमुई बना कर जीवन संग्राम के लिए तैयार करना है। हमे अपनी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था जहां राजा और र्नक सभी के बच्चे गुरुकुल में समान सुविधाओं में समान शिक्षा प्राप्त करते थे। हमें याद रखना होगा कि जीवन माँ की गोद की तरह मुलायम नहीं है। इसे सफलता पूर्वक पार करने के लिए बालक को शरीर मन बुद्धि और आत्मा से मजबूत होना आवश्यक है। दुःख का विषय है कि छात्र के विकास के इस महत्वपूर्ण पक्ष की ओर न विद्यालय का और न ही अभिभावकों का ध्यान या प्राथमिकता है। घर और स्कूल सब जगह पढ़ाई पढ़ाई और पढ़ाई! छाई रहती है। अभिभावकों को इस तथ्य को विस्मरण नहीं करना चाहिए कि स्वस्थ शरीर और मन में ही बच्चे का भविष्य सुखद और सुरक्षित है।

शिक्षा के साथ संस्कारक्षम वातावरण हो प्राथमिकता-

आज अधिकांश अभिभावक और विद्यालय बच्चों को गणित, विज्ञान या अंग्रेजी को रटाने को ही शिक्षा समझने लगे हैं। जबकि प्रायः सभी शिक्षा शास्त्री मानते हैं कि बच्चे को शिक्षा के प्रति लगॉव, खेल, व्यायाम तथा नैतिक मूल्य पैदा हो जाने के बाद उचित समय पर इन विषयों में विद्यार्थी स्वयं प्रगति कर लेता है। छात्र का व्यक्त्तिव विकास विद्यालयों और अभिभावकों की प्राथमिकता होनी चाहिए।  इसके बिना अगर बालक औपचारिक अध्ययन से बड़ा अफसर बन भी गया तो समाज और परिवार के लिए सरदर्द ही बनेगा। आज अधिकांश भरष्टाचारी, आतंकवादी और बड़े अधिकारी अपने शैक्षिक कैरियर में तो सबसे आगे ही थे। घर या विद्यालयों में सम्पूर्ण व्यक्त्तिव का विकास न होने के कारण आज अधिकांश डॉक्टर, इंजीनियर या प्रशासनिक अधिकारी व्यक्तिगत जीवन में अब्बल दर्जे के स्वार्थी, नशेड़ी और नैतिक मूल्यों से दूर होते हैं। जिन माता पिता ने कभी उनके अच्छे अंक प्राप्त कर सफलता के शिखर छूने पर मिठाई बांटी होती है वही जब

वृद्ध आश्रम की ओर रुख करते हैं तो उनके मन पर क्या बीतती होगी? आखिर इसमें दोष किसका है? यहां तो 'बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से आएं... कहावत ठीक बैठती है। केवल कलियुग, आधुनिक वातावरण को दोष देकर समस्या का हल नहीं मिल सकता। हमें याद रखना होगा कि अपने शिशु के लिए विद्यालय का चययन और वृद्व आश्रम में अपने कमरे की बुकिंग  का सीधा सम्बद्ध है। इसलिए औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त भारतीय संस्कार, बच्चों में देश समाज के प्रति संवेदना तथा कुछ करने का जज्बा पैदा करने में प्रयासरत विद्यालय को ही अपने बच्चे के लिए चुनना चाहिए। इसके लिए हमें अपने बच्चों के लिए सर्वहितकारी (विद्या भारती), डीएवी, तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित विद्यालय या भारतीय संस्कृति को आधार बना कर शिक्षा देने को कटिबद्ध निजी विद्यालयों को प्राथमिकता देनी होगी। कॉन्वेंट या कॉन्वेंट पैटर्न पर पाश्चात्य संस्कारों में उन्हें मात देने में लगे निजी विद्यालयों से बचना चाहिए। याद रखें कि अपने बच्चे के लिए अच्छे विद्यालय का चययन बच्चे के साथ साथ हमारे अपने सुखद भविष्य का आधार बनने वाला है। ऊंचीं फ़ीस, बाहरी चकाचौन्ध में बहने वाले हमारे अभिभावकों को अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन का अपने बेटे के प्रिंसिपल को लिखा पत्र अवश्य पढ़ लेना चाहिए।

1 टिप्पणी:

  1. स्कूल के चयन के विषया में मेरा तो यही मत है या तो पेट भरेगा या दिमाग़,शिक्षित होना के लिए संयम और त्याग करना पड़ता है,आज जो सुविधाएँ कन्वेंट या निजी स्कूल ऊप्लव्ध करवा रहे हैं बह आप को शिक्षित तो कर देंगे पर जीवन का यथार्थ,जीवन का संघर्ष व बुधिमता नही दे सकता| ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, वातानुकूलित स्कूल के बच्चे कमरे से बाहर आ कर रोशनी में देख नही पाते और आँखों से पानी आना ही नही रुकता,ये कैसी शिक्षा है क्या सारी जिंदगी बंद कमरे में गुजर जाएगी ऐसा ही बहुत कुछ है लिखने को

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