शनिवार, 7 मार्च 2015

सांस्कृतिक नेतृत्व तैयार करने का अभिनव प्रयोग है वेदविज्ञानगुरुकुलम्

स्वास्थ्य लाभ के लिए मैं, विद्या भारती के हिमाचल प्रान्त संगठन मंत्री श्री राजेन्द्र जी तथा उना से श्री आशुतोष जी पीछे दो सप्ताह के लिए 'प्रशांत कुटीर' बंगलोर  में रहे। प्रशांत कुटीर में शुक्रवार को छुट्टी जैसा माहौल रहता है। शुक्रवार को कहीं आस-पास घूमने की योजना बना ही रहे थे कि अपने श्री श्रीनिवास मूर्ति जी का चेन्नलहल्ली आने का आग्रह ध्यान आया। बस फिर क्या था! चेह्लहल्ली जाने का कार्यक्रम बन गया। सौभाग्य से गुरुकुल की आत्मा और वर्तमान में प्रशांत कुटीरम में स्थित स्वामी विवेकानन्द विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ रामचंद भट्ट जी की कार में ही गुरुकुल तक की यात्रा करने का सुअवसर मिल गया। और इस कारण उनके साथ गुरुकुल  और गुरुकुल के सम्बद्ध में उनकी कल्पना को लेकर  कुछ चर्चा- वार्ता भी हो गयी। वेद विज्ञान गुरुकुलम् प्रकल्प और वहां का प्राकृतिक दृश्य देख कर मन आह्लादित हो गया। प्राचीन गुरुकुल का दृश्य ही आँखों के सामने साकार दिख जाता है यहां! देश की समस्याओं का रोना रोना, उनके लिए नेताओं या प्रशासनिक अधिकारियों को दोषी ठहरा कर अपना आक्रोश निकाल लेना एक बात है। यह आज सहजक्रम है भी लेकिन भारत के सुखद भविष्य के लिए अपने आप को बीज में  बोने वाले, अपना रक्त-पसीना बहाने वाले विरले ही होते हैं। ऐसे ही देवदुर्लभ लोग यहां पर साधनारत हैं।
प्रकृति की गोद में बसा है आश्रम-
बंगलोर से लगभग 50 किलोमीटर दूर चेनलहल्ली गांव में मेट्रो सिटी की भागदौड़ व् आपाधापी से दूर एकांत में नए भारत और सम्पूर्ण विश्व के लिए सांस्कृतिक नेतृत्व गढ़ने का एक अभिनव प्रयोग चल रहा है। सम्पूर्ण भारत से लगभग 35 युवक यहां स्वयं को अध्यात्म और संस्कृति के रंग रहे हैं। 12 शिक्षक इन्हें अनेक विषयों में पारंगत कर रहे हैं। जनसेवा ट्रस्ट बंगलोर द्वारा प्रचार प्रसिद्धि से दूर धैर्यपूर्वक यह साहसिक प्रयोग लगभग दो दशकों से अर्थात सन् 1997 से चल रहा है। साहसिक प्रयोग इस अर्थ में कि यहां औपचारिक पढ़ाई, परीक्षा व् प्रमाण पत्र आदि कुछ भी नहीं । इसके साथ ही भविष्य में रोजी-रोटी की भी कोई गारन्टी नहीं रहती है। अर्थात यहां अध्ययन केवल और केवल आत्मविकास के लिए चलता है जीविका मात्र के लिए कत्तई नहीं। यह अलग बात है कि अगर आत्मविकास हो गया तो रोजी रोटी तो क्या सारी कयानात पीछे दौड़ पड़ती है। हाँ इतना धैर्य और आत्म्विश्वास अवश्य चाहिए। गुरुकुलम् में व्याकरण और वेदांत का सात वर्षीय कोर्स चलता है। हमारे प्राचीन शास्त्र वेद, गीता, रामायण पुराणों व् उपनिषद का पठन और कण्ठस्थीकरण चलता है। ऊँचे ऊँचे नारियल के पेड़, छोटे-2 से कुटियानुमे कमरे तथा सन्यासी वेश में छात्र कुल मिलाकर प्राचीन गुरुकुल का दृश्य आँखों के सामने साकार हो जाता है। इस परिसर में वेदविज्ञान गुरुकुलम् के अतिरिक्त औपचारिक शिक्षा दे रहे  दो अन्य शिक्षण संस्थाएं एक हाई स्कूल तथा जमा दो का आवासीय विद्यालय भी चल रहे हैं। आजकल इस शिक्षणत्रयी का प्रबन्ध का दायित्व श्रीनिवासमूर्ति जो कि पंजाब और हिमाचल में वर्षों तक प्रचारक रहे हैं, देख रहे हैं। यह ट्रस्ट आधुनिक मैत्रयी व् गार्गी तैयार करने के लिए लड़कियों के लिए ऐसा ही गुरुकुल 'मैत्रयी' नाम से मंगलोर के पास चला रहा है।
आधुनिक चाणक्य कुलपति डॉ. रामचन्द भट्ट -
किसी भी प्रकल्प या संस्था की सफलता उसके पीछे किसी व्यक्ति की साधना और दूरदृष्टि रहती है। ऐसे ही आधुनिक चाणक्य दिखते हैं डॉ. रामचंद्र भट्ट। अनेक भाषाओँ के ज्ञाता, राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सम्मानप्राप्त डॉ. भट्ट जनसेवा ट्रस्ट द्वारा चलाये जा रहे शिक्षण संस्थाओं के प्रमुख हैं। कुछ समय पहले ही प्रशांत कुटीरम् में चल रहे स्वामी विवेकानन्द शिक्षण एवम् अनुसन्धान विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनाये गए हैं। लेकिन विश्वविद्यालय में इनका कार्यालय किसी ऑफिस जैसा नहीं बल्कि कार्यालय से अधिक क्लास रूम ही अधिक लगता है। बात करने पर बोले कि आज कुलपति का काम अकादमिक (शैक्षिणक) से अधिक फाइल क्लेयर करना ही अधिक हो गया है। वास्तव में यह कार्य रजिस्ट्रार का होता है। उपकुलपति होने के बाद भी ये पढाने में ही अधिक समय लगाते हैं। साधारण सी कार में ये प्रतिदिन गुरुकुल से ही यहां आते हैं। और गुरुकुल में भी ये एक साधारण से कमरे में रहते हैं। सज्जनता और सादगी की इस मूर्ति को मिलकर मन में विचार आया कि हमारे शिक्षा जगत को पद से नहीं बल्कि अपने चरित्र और व्यवहार से प्रेरणा देने वाले महानुभाव कब बिभूषित करेंगे? आपकी प्रेरणा का स्रोत क्या है? यह पूछने पर बोले कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूँ। देश व् समाज की निश्वार्थ व् पूरे मन से सेवा की प्रेरणा संघ से ही मिली है।
कठोर शिक्षण से निखरते हैं युवा-
गुजरात के सोमनाथ से कर्मेश व् हरियाणा से कमल ने उत्साहपूर्वक सारे परिसर में घुमाया। उन्होंने बताया कि आश्रम में कठोर दिनचर्या का पालन करना होता है। सुवह चार बजे जगने से लेकर रात दस बजे तक अनेक विषयों का औपचारिक एवम् अनोपचारिक शिक्षण चलता है। आधुनिक जगत से जोड़ने के लिए कम्प्यूटर,  इंग्लिश के साथ साथ आधुनिक विज्ञान के विषयों का शिक्षण तथा टीवी पर समाचार दिखाने की व्यवस्था रहती है। शाम को शारीरिक, मानसिक विकास तथा राष्ट्रभक्ति के भाव जागरण के लिए संघ की शाखा भी लगती है। यहां कक्षाऐं कमरे से लेकर किसी पेड़ के नीचे सब जगह चलती रहती हैं। पहले तीन साल छात्रों को सब शास्त्रों का अध्ययन करना होता है। इसके बाद वेदांत और व्याकरण ऐसे दो विभाग रहते हैं जिनमे छात्र को कोई एक विभाग अपने लिए चुनना होता है। वर्ष के अंत में देश के प्रमुख विद्वान व् शंकरचार्य  इनकी मौखिक और लिखित परीक्षा लेते हैं। इस प्रकार इन्हें अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है।
हमारी आध्यात्मिक जगत की चुनोतियों का सटीक उत्तर-  आज अधिकांश साधु- सन्त करोड़ों देशवासियों की श्रद्धा-आस्था का केंद्र होने के बाद भी नई पीढ़ी के अनेक प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते हैं। कारण अधिकांश युवा भावावेश में सन्यास तो ले लेते हैं लेकिन सन्यासी जीवन के महान उदेश्य के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए कठोर साधना, योग्य वातावरण और प्रेरक शिक्षक नहीं मिल पाते हैं। हमारे बहुत से सन्तों और मठ मन्दिर प्रमुखों का अपनी संस्कृति, धर्मग्रथों का ज्ञान और उस स्तर का व्यवहार आज की युवा पीढ़ी को आकर्षित और प्रेरित नहीं कर पा रहा है। ईसाई अपने प्रचारकों को 12 वर्ष से ज्यादा ईसाईयत व् अन्य धर्म ग्रन्थों की तुलनात्मक जानकारी देते हैं। इसके विपरीत हमारे यहां रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार तथा इस्कॉन जैसी कुछ संस्थाओं को छोड़ दें तो हमारे साधु-सन्तों के प्रशिक्षण का कोई व्यवस्थित तन्त्र नहीं दिखता है। इसी कारण साम्यवादी तथा इस्लाम व्  ईसाईयत प्रेरित तत्व आधुनिकता के नाम पर हमारे साधु-संतों का आए दिन अपमान भी करते देखे जा सकते हैं। वेदविज्ञान गुरुकुलम हमारे अध्यात्म जगत की आज की इसी बड़ी जरूरत को पूरा का एक लघु ही क्यों न हो लेकिन एक ठोस प्रयास है।
तैयार हो रहा है आधुनिक एवं शास्त्रपरंगत नेतृत्व-
डॉ. रामचन्द भट्ट के अनुसार यह संस्थान अभी तक 60 से अधिक सांस्कृतिक राजदूत तैयार कर समाज में भेज चुका है। ये स्नातक किसी न किसी मठ या संस्था का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर रहे हैं। यह संस्थान दसवीं पास विद्यार्थी को अपने यहां प्रवेश देता है। इनका रहना, खाना और पढ़ाई सब निशुल्क रहता है। आज जब युवा पीढ़ी में सब तरफ कॅरियर और पॅकेज का भूत सवार दिखाई देता है ऐसे में इन युवाओं का अपने आप को इस साधना को समर्पित कर देना अत्यंत साहस का कार्य है। यद्यपि आधुनिक सन्यासी इन युवाओं की संख्या काफी कम है तो भी अँधेरे में छोटा ही क्यों न हो एक प्रकाश पुंज का कार्य तो हो ही रहा है। आवशयकता है कि ऐसे संस्थान हर राज्य में कम से कम एक तो हों। माता-पिताओं को अपने बच्चों को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। आखिर विश्व का नेतृत्व करने के लिए अपनी संस्कृति का केवल अभिमान ही नहीं तो ज्ञान और आचरण से ओतप्रोत युवाओं की जरूरत तो रहेगी ही न।! जब तक सब राज्यों में ऐसे संस्थान नहीं खुलते तब तक वहीं युवकों को जाकर शिक्षण लेकर जीवन सार्थक करना चाहिए। गुरुकुल में पंजाब, हिमाचल और जम्मूकश्मीर की अनुपस्थिति जरूर खटकी। आशा है हमारे युवा भी अध्यात्म और संस्कृति की इस बहती गंगा में डुबकी लगाने गुरुकुल में अवश्य दस्तक देंगे।

   

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