रविवार, 15 मार्च 2015

समाज मन्थन का कुम्भ है संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक इस वर्ष मार्च13 से 15 तक नागपुर में सम्पन्न हुई। संघ की नीति निर्धारक इस सर्वोच्च सभा की बैठक देश विदेश में सबके लिए उत्सुकता का विषय रहती है। संघ का चुनाव वर्ष होने के कारण इस बार यह उत्सुकता और रोमांच थोडा ज्यादा ही दिख रहा था। मीडिया ने तो अपनी सीमा पार करते हुए कल्पना के घोड़े दौड़ाते हुए संघ की नई कार्यकारिणी का गठन भी कर दिया था। लेकिन संघ की कार्यकारिणी को देख कर उन्हें थोड़ी निराशा जरूर हुई होगी। एक हजार से अधिक प्रतिनिधि देश की वर्तमान परिस्थितियों, चुनोतियों, कार्यविस्तार तथा संगठन के अनेक पहलुओं पर विचार विमर्श करने के लिए तीन दिन डटे रहे। इस प्रतिनिधि सभा में संघ के नेतृत्व के अतिरिक्त संघ प्रेरणा से चल रहे संगठनों की अखिल भारतीय टोली इस बैठक में रहती है।
संविधान का अक्षरशः पालन होता है संघ में-
           राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने आप में अदभुत संगठन है। वर्तमान में राजनैतिक दलों में सांगठनिक चुनावों में मचती भागदौड़ व उठापटक और अपना वर्चस्व कायम रखने की तिकड़मबाजी सर्वदूर देखी जा सकती है। इतना ही नहीं तो आज जब इस जोड़तोड़ की बीमारी के वायरस की लपेट में आने से बहुत कम सामाजिक व् धार्मिक संगठन बच पाएं हैं ऐसे में संघ संगठन में चुनाव सौहार्दपूर्ण वातावरण में शांतिपूर्वक हो जाना अधिकांश लोगों की समझ से परे है। वास्तव में संघ को समझने के लिए संघ का चश्मा जरूरी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक पारिवारिक संगठन है और इसे इसी नजरिये से देखेंगे तो आसानी से सब कुछ समझ आ जायेगा। प्रसन्नता की बात है कि संघ आज भी  विशुद्ध परिवार भावना से कार्य करता है। इसी कारण यहां चुनाव के समय टांग खिंचाई का सब जगह दिखने वाला चुनावी परिदृश्य गायब रहता है। शायद कम लोगों को पता होगा कि संघ में पहले तो लिखित संविधान भी नहीं था। संघ का मानना है कि परिवार में कोई लिखित संविधान न होने के बाद भी हमारे देश में लाखों वर्षों से परम्परा से परिवार चलते आए हैं। इसी आधार पर सामाजिक संगठन क्यों नहीं चल सकते? यहां अधिकारी मतलब अधिक काम करने वाला और अधिक कष्ट उठाने वाला होता है। संघ में पद से नहीं अपने व्यवहार से सम्मान प्राप्त करना होता है। ऐसे में पद की होड़ सिर पैर रख कर गायब नहीं होगी तो क्या होगा? संघ की इस अदभुत कार्यपद्धति का ही परिणाम है कि प्रतिनिधि सभा में आपके आगे पीछे कौन बैठा है? साथ में भोजन कौन कर होता है किसी को पता नहीं चलता। जिनको मिलने के लिए बाहर लोगों में होड़ रहती है यहां वे भी अनाम और साधारण कार्यकर्ता की तरह देखे जा सकते हैं।
संघ संविधान की यात्रा
     संघ स्थापना की प्रक्रिया, नामकरण, व्यक्ति के बजाए गुरु के रूप में भगवा झंडा स्वीकार करना और कोई औपचारिक सदस्यता आदि न रखना अपने आप में लोगों को हैरान करता है। संविधान को लेकर भी कुछ कुछ ऐसा ही है। प्रारम्भ में संघ का कोई संविधान नहीं था।
सन् 1948 में गांधी हत्या के आरोप में संघ से प्रतिबन्ध हटाने के लिए सरकार की लिखित संविधान की जिद के चलते संघ ने लिखित संविधान स्वीकार किया। एकबार संविधान स्वीकार कर लेने पर संघ पूरी श्रद्धा से मनसा, वाचा और कर्मणा अपने संविधान का पालन करता आया है।
क्या है संघ् का संविधान
वैसे तो संविधान संविधान पढ़ कर संघ में आना और कार्य करने वालों की संख्या अपवाद ही होगी। साधारण स्वयंसेवकों को छोड़ भी दें तो जिन्होंने संघ् के लिए जीवन दिया है ऐसे प्रचारक बन्धुओं में से भी कितनों ने ध्यान से पूरा संघ संविधान पढ़ा होगा यह सर्वेक्षण का विषय हो सकता है। मात्र 8/10 पेज का संघ संविधान शायद सबसे छोटा और साधारण होगा। संविधान के अनुसार प्रत्येक प्रतिज्ञा लिया हुआ 5 साल से सक्रिय स्वयंसेवक शाखा प्रतिनिधि के लिए मतदान कर सकता है, प्रत्याशी भी हो सकता है। प्रत्येक 40 सक्रिय प्रतिज्ञत स्वयंसेवकों पर एक शाखा प्रतिनिधि चुना जाता है। ऐसे 50 शाखा प्रतिनिधि एक अखिल भारतीय प्रतिनिधि चुनते हैं। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सभी चुने हुए प्रतिनिधि, प्रान्त व क्षेत्र प्रचारक, कार्यवाह और संघचालक सरकार्यवाह के चुनाव में मतदाता होते हैं। संघ के अभी तक के इतिहास में सरकार्यवाह का चुनाव सर्वसम्मत लेकिन पूरी चुनावी प्रक्रिया पूर्ण कर होता आया है। संघ् की कार्यपद्धति का ही कमाल है कि सबको लगता है कि नया सरकार्यवाह जैसे उनकी अपनी ही पसन्द है। चुनाव जिस सौहार्द और हंसी मजाक में पूरा होता है आज के इस राजनैतिक द्वेष के वातावरण में उसके साक्षी बनना देव दुर्लभ अवसर ही कहा जा सकता है। यह चुनाव किसी भी प्रकार से देवलोक में हुए घटनाक्रम से कम नहीं कहा जा सकता। हालाँकि देवलोक में भी ईर्ष्या द्वेष की कई कहानियाँ सुनाई देती हैं लेकिन संघ पर ईश्वर कृपा है कि यह संगठन अपनी स्थापना के नो दशक पूरे करने के बाद भी मनुष्य जीवन की सहज कमियों से बचा हुआ है। इसका अर्थ कुछ विषयों पर मतभेद नहीं होते , यह कहना तो ठीक नहीं लेकिन मतभेद स्वस्थ वातावरण में स्नेह के आधार पर सुलझा लिए जाते हैं। संघ की सफलता के पीछे यह बहुत बड़ा कारण कहा जा सकता है। अभी-अभी हुए चुनाव में उतरी क्षेत्र के संघचालक डॉ. बजरँग लाल गुप्त चुनाव अधिकारी थे। उन्होंने पूरी चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न करायी।  एक ही नाम आने के कारण सरकार्यवाह के रूप में भैया जी जोशी जी तीसरी बार पुन: चुने गए। चुनाव के बाद नवनिर्वाचित सरकार्यवाह तीन साल के लिए केंद्रीय कार्यकारिणी चुनते हैं। संगठन में संघचालक और सरकार्यवाह का चुनाव और शेष सभी पदाधिकारियों का चयन होता है।
देश समाज की परिस्थितियों का होता है गहन विश्लेषण
प्रतिनिधि सभा में सम्पूर्ण देश की परिस्थितियों का बारीक़ विश्लेषण होता है। समाज, सरकार  और स्वयंसेवकों को दिशा देने के लिए कुछ प्रस्ताव पास किए जाते हैं। संगठन कार्य की गति- प्रगति, दिशा और दशा आदि सब विषयों पर चिंतन- मनन होता है। संघ् कार्य में देशभर में हुए नए प्रयोगों का वर्णन सबके सामने रखा जाता है। इस वर्ष संघ कार्य में सन्तोषजनक वृद्धि दर्ज की गयी। पहली बार 50 हजार  से ज्यादा शाखाएं हुई हैं। अगले वर्ष एक लाख गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य तय किया गया। संघ प्रेरणा से चल रहे विविध संगठनों के कार्य का संक्षिप्त वृत्त भी रखा जाता है। हर एक संगठन अपने आप में पूर्ण सृष्टि लगता है। समय आभाव में बड़े बड़े संगठनों को भी तीन चार मिनट में ही अपनी बात कहने के लिए मिल पाते हैं। सब कुछ सुनकर लगता है कि संघ संगठन का यह जगन्नाथ रूपी रथ भारत को विश्वगुरु के पद आरूढ़ किये बिना कैसे रुक सकता है? संगठन कार्य और समाज की नवीन रचना के लिए कैसे कैसे लोग, कितना त्याग और बलिदान कर रहे हैं, सुन कर रोमांच होता है। इस वर्ष दो विषयों पर प्रस्ताव पास किये गए। पहले प्रस्ताव में कम से कम प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो इसके सरकार तथा अभिभावकों का आवाहन किया गया तथा दूसरे प्रस्ताव में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योगदिवस स्वीकार कराने के लिए सरकार, सरकारी अधिकारीयों के परिश्रम के लिए तथा यू एन सबका धन्यवाद किया गया। इसके साथ ही स्वयंसेवकों तथा समाज को योगदिवस को जन-जन का आंदोलन बनाने का आवाहन किया गया। प्रतिनिधि सभा के आखिर में सरसंघचालक जी के पाथेय ने सभी प्रतिनिधि नए जोश और उत्साह के साथ अपने अपने कार्यक्षेत्र में वापिस लौटे।

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