बुधवार, 18 मार्च 2015

सच्चाई से कोसों दूर है वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रिबेरियो की बेचैनी

पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख 86 वर्षीय श्री रॉबर्ट रिबरियो की खीज, घबराहट और निराशाभरे वक्तव्य की ओर देश का ध्यान जाना स्वाभाविक है। लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जी, प्रधानमन्त्री श्री मोदी और हिन्दुत्व को कठघरे में खड़ा करने का जो प्रयास किया है उससे उनकी अपनी छवि को धक्का जरूर लगा है। पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध लोहा लेकर देशवासियों की जो श्रद्धा और सम्मान रिबेरियो के प्रति है ऐसे बयानों से मिटटी होता जाएगा। लोगों के मन में प्रश्न आ रहा है कि क्या आतंकवाद के समय पुलिस का नेतृत्व कर  उन्होंने देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाया था या  कोई एहसान किया था? उन्हें याद होगा कि पंजाब में आतन्कवाद के विरुद्ध लोहा पुलिस अधिकारी रिबेरियो ने लिया था न कि ईसाई प्रचारक रिबेरियो ने। और देश की श्रद्धा भी पुलिस अधिकारी रिबेरियो के प्रति है ईसाई रिबेरियो के प्रति नहीं। भारत में सेना और पुलिस में जाति, धर्म नहीं बल्कि व्यक्ति की देशभक्ति और कर्मठता ही सोचने और व्यवहार करने का प्रमुख आधार होता है। आश्चर्य है कि पुलिस अधिकारी रिबेरियो के ऊपर इस उम्र में ईसाई रिबेरियो कैसे हावी हो गया?
काल्पनिक सवाल और आशंकाएं-
रॉबर्ट रिबेरियो द्वारा उठाए गए काल्पनिक सवालों और आशंकाओं से वे पुलिस अधिकारी से ज्यादा ईसाई मिशनरी अधिक लग रहे हैं। क्या इस पुलिस अधिकारी पर उम्र हावी हो रही है? बुढ़ापे में धार्मिक होना, अपने धर्म के प्रति ज्यादा  निष्ठावान होना अच्छी बात है लेकिन सच्चाई का दामन छोड़ देना तो ठीक नहीं। क्या ईसाई मिशनरी और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां उभरते भारत के विजय रथ को रोकने के लिए, दुनिया में सरकार और देश की छबि खराब करने के लिए इस पुलिस अधिकारी को प्रयोग करने में सफल हो गयी हैं? रिबेरियो का यह कहना कि मैं अब भारतीय नहीं रह गया हूँ कम से कम उन लोगों के लिए तो कदापि नहीं, जो हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर  हैं...प्रश्न उठ रहा है कि रिबेरियो साहिब को अपने बारे अचानक यह आशंका क्यों हो रही है? क्या किसी ने रिबेरियो को कुछ कहा है? अगर ये महाशय देश में ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध दिख रहे गुस्से को अपना व्यक्तिगत विरोध मान रहे हों तो इन्हें स्वामी विवेकानन्द ने ईसाई मिशनरियों के सम्बद्ध में जो कहा था, उसे याद करना ठीक होगा- हिन्द महासागर में जितना कीचड़ है अगर सारे भारतवासी मिलकर उस कीचड़ को ईसाईयों पर फैंकने लगें तो भी यह उस अन्याय जो ईसाईयों ने भारत के साथ किया है, का शतांश भी बदला नहीं होगा। जहां तक हिन्दू राष्ट्र की बात है तो रिबेरियो साहिब जरूर जानते होंगे कि भारत ही है जहां ईसाई और इस्लाम ही नहीं तो पारसी जैसे नगण्य समाज भी पूरा मान-सम्मान और सुविधाएँ प्राप्त कर रहे हैं, इतना ही नहीं तो बहुसंख्यक समाज से कहीं ज्यादा तो यह हिन्दू भाव के कारण ही है। नहीं तो पाक, बंग्लादेश और अरब देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है, सारी दुनिया जानती ही है। इसलिए किसी को हिन्दू राष्ट्र से एलर्जी का कोई कारण नहीं होना चाहिए। रिबेरियो साहिब, भारत के बड़े दिल का और क्या प्रमाण चाहते हैं कि ईसाई, मुसलमानों का अत्याचार भरा अतीत आदि सब कुछ भूल कर भारत फिर भी ईसाई और मुसलमानों को गले से लगा रहा है। फिर भी ईसाई और मुसलमान अगर भारत में खुश नहीं तो किसी ने ठीक ही कहा है-
हम बाबफा थे इसलिए गिर गए तुम्हारी निगाहों से
तुम्हे शायद किसी बेबफा की तलाश थी।।
बड़पन्न भारत का या ईसाई मुसलमानों का?
रिबेरियो लिखते हैं कि पुलिस प्रमुख, सेना अध्यक्ष और वायुसेना प्रमुख आदि ईसाई रह चुके हैं। तब किसी ने उनकी निष्ठा को लेकर सवाल नहीं उठाये और अब....! महोदय, सवाल तो अब भी कोई नहीं उठा रहा है। ऐसे प्रश्न खड़े कर, सेना और पुलिस अधिकारीयों को धर्म के तराजू में खड़े कर सवालों को जन्म तो आप खुद दे रहे हैं। अगर आपकी नहर से देखें तो ईसाई या मुसलमानों के कड़वे अतीत के बाबजूद इतने बड़े पदों के लिए देश आप पर भरोसा करता है तो इसमें बड़पन्न किसका है? दुनिया में कोई देश बता दो जहां अल्पसंख्यकों को सर्वोच्च पदों पर बिना किसी भेदभाव के बैठाया जाता हो। इतना सब होने पर भी भारत के अहसानमन्द होने के बजाए भारत की मंशा पर सवाल उठाना कौन सी मानसिकता का सूचक है?
ईसाई मिशनरियों की मासूमियत के क्या कहने?  रिबेरियो कहते हैं कि ईसाई समाज बहुत ही शांतिप्रिय और छोटा समाज है। पुलिस अधिकारी रह चुके रिबेरियो अगर यह कहते हैं तो जरूर दाल में बहुत कुछ काला लगता है। इनको अगर इनकी भाषा में ही समझाने की कोशिश करें तो- न्यायमूर्ति वेणुगोपाल आयोग अपनी रिपोर्ट में  लिखते हैं- 1982 में तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में हुए भीषण दंगों के लिए ईसाई पादरियों द्वारा किया जा रहा धर्मान्तरण ही मुख्य कारण है। आयोग ने सुझाव दिया कि मतांतरण को प्रतिबन्धित करने के लिए शीघ्र केंद्रीय कानून बनाया जाए। नागालैंड के राज्यपाल ओ पी शर्मा (4 फरबरी 1994)  Nationalist Socialist Council of Nagaland को world council के 17 चर्चों से धन मिलता है। रिबेरियो साहिब आपने नियोगी कमीशन की केंद्र सरकार को दी सिफारिशें जरूर पढ़ी होंगी। नहीं तो ईसाई मिशनरियों के चेहरे से सेवा और मासूमियत का नकाब उतारने के लिए जरूर पढ़ लें। ईसाई और इस्लाम की शक्तियों को लेकर संघ प्रमुख गोलवलकर, सुदर्शन या भागवत न सही, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानंद जैसे महापुरुषों ने देश को किन शब्दों में सावधान किया है जरूर याद करना चाहिए।
आतंकवाद के पीछे चर्च?
पंजाब और पर्वोत्तर भारत में आतँकवाद के पीछे भारत और दुनिया के चर्च सक्रिय रहे हैं और अभी भी हैं, यह पुलिस अधिकारी के रूप में रिबेरियो से ज्यादा कौन जनता है? क्या रिबेरियो साहिब नहीं जानते हैं कि ईसाईयत के प्रचार के नाम पर इस समय भारत में प्रमुख विदेश संस्थाएं सक्रिय हैं? अरबों रूपये विदेशों से इसी काम के लिए आते हैं? अगर नाम ही गिनाने हों तो - बर्ल्ड विजन, वर्ल्ड रीच, यूनिसेफ, केथोलक बिशप कान्फ्रेन्स ऑफ़ इंडिया, इंडिया बाईबल लिटरेचर, हेल्पेज इंडिया क्राई,तथा समाधान आदि आदि। जहां तक इनके भोलेपन का सवाल है तो फ़िल्मी गीत की पंक्तियाँ याद आती हैं -
भोलापन तेरा खा गया मुझको.... केवल इतिहास का एक उदाहरण ही काफी है-1541में जेवियर नाम के ईसाई विजेता ने लाखों हिंदुओं को बलात् ईसाई बनाया। हिन्दू मन्दिरों को तोड़ कर चर्च बनाए गए। हिन्दू विधि से विवाह, यगोपवीत संस्कार अवैध घोषित कर दिए। सिर पर चोटी, घर के बाहर तुलसी का पौधा पर भारी दण्ड था। इसी समय ईसाई अधिकारियों को हिन्दू महिलाओं से बलात्कार करने का अधिकार प्राप्त था। जिन हिन्दू महिलाओं ने विरोध किया, उन्हें पकड़ कर जेलों में डाल कर अपनी काम वासना पूरी कर हेरेटिक्स अर्थात ईसाई मत के प्रति अविश्वासी घोषित कर जिन्दा जला दिया। (दा गोआ- इन्विजिशन - प्रयोलकर) क्या ये केवल अतीत की बातें हैं? काश! ये सच होता? आज भी देश में ईसाई मिशनरी भोले भाले गरीब हिन्दुओं का किस चालाकी से धर्मान्तरण कर रहे हैं, सारा पूर्वोत्तर ही नहीं तो देश के अनेक राज्यों सहित अब तो पंजाब भी चीख चीख कर अपनी बेदना कहता सुना जा सकता है। भोले-भाले मासूम स्कूली बच्चों के दिल में ईसा की महानता बैठाने के लिए भगवान राम, कृष्ण के नाम से बस को धक्का लगवाना और न चलने पर ईसा का नाम लेकर बस चला देना, भगवान राम, कृष्ण की लोहे की मूर्ति को पानी में डूबने देना और ईसा की लकड़ी की मूर्ति को तेरा कर बच्चों के सामने सिद्ध कर देना कि ईसा ही उन्हें भवसागर में तैरा कर पर लगा सकते हैं। ऐसे और कितने ही चालाकी भरे कृत्य मिशनरी करते हैं कि स्वर्ग में बैठे ईसा भी शरमा रहे होंगे। रिबेरियो साहिब ठीक कहते हैं कि ईसाई लोगों ने शिक्षा, चिकित्सा में बहुत योगदान दिया है यह बात भारत भी स्वीकार करता है, इसके लिए इन्हें धन्यवाद भी देता है, लेकिन इन सेवा संस्थानों और कार्यों की आड़ में कितना धर्मान्तरण हुआ है जब इसका विचार करते हैं तो इन ईसा के दूतों की सज्जनता, भोलेपन और सेवाभाव का सारा नकाब उतर जाता है। क्या रिबेरियो साहिब एक सवाल का जबाब देश को देंगे? देश के उन्हीं हिस्सों में अलगावाद, आतँकवाद, देश के बिरुद्ध गाली-गोली की बात क्यों सुनाई देती हैं जहां ईसाई या मुसलमान अधिक संख्या में होते हैं? जम्मूकश्मीर से लेकर नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, बंगाल आसम और अरुणाचल आदि राज्य इसका सीधा प्रमाण हैं।
संघ को कितना जानते हैं रिबेरियो?
अपनी धुन में रिबेरियो प्रधानमन्त्री श्री मोदी के साथ ही संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत को भी लपेट गए। क्या रिबेरियो संघ को जानते हैं? संघ की देशभक्ति की दाद तो संघ के कट्टर विरोधी भी देते रहे हैं। संघ की देशभक्ति सेना या पुलिस से किसी भी अर्थ में कम नहीं है फर्क केवल इतना है की सेना और पुलिस में सेवा के बदले वेतन मिलता है जबकि संघ में घर फूँक तमाशा देखना होता है। लगता है संघ पर प्रश्न उठा कर उन्होंने अपनी अज्ञानता और खीज का ही परिचय दिया है। उन्होंने मदर टेरसा को लेकर मोहन भागवत के जिस वक्तव्य की बात की है क्या वे जानते हैं कि यह बात मोहान भागवत ने नहीं, बल्कि कार्यक्रम के अध्यक्ष ने कही थी। मोहन भागवत ने तो कहा कि मदर टेरसा क्या थी और उनके उद्देशय क्या थे हम नहीं जानते हम तो केवल अपना बता सकते हैं कि हम गरीबों की शुद्ध सेवा भाव से करते हैं। पुलिस अधिकारी रह चुके रिबेरियो ने भी तथ्यों की जाँच पड़ताल किए बगैर ही संघ के बिरुद्ध मोर्चा खोल दिया तो क्या कहा जा सकता है? हालाँकि मदर टेरसा को लेकर अब कोई भ्रम नहीं रहा है। स्वयं उन्होंने कई जगह अपने सारे सेवा कार्यों के पीछ का उद्देशय शुद्ध धर्म परिवर्तन बताया है। अगर सेवा ही उद्देशय था तो क्या ईसाई देशों में गरीबी, भेदभाव समाप्त हो चुका था जो वह भारत में आ डटी? हम मदर टेरसा की इज्जत करते हैं, जो उन्होंने सेवा कार्य किए उसके लिए हृदय से धन्यवाद भी करते हैं लेकिन इस सबके बाबजूद सच्चाई से पीछे भागना कहां तक ठीक है? रिबेरियो साहिब जरूर जानते होंगे कि अपने सेवा कार्यों और मासूमियत के बल पर ईसाईयत देशों के देश निगल गयी। मात्र 2000 सालों में 100 से ज्यादा देश ईसाई हो चुके हैं। क्या यह केवल ईसाईयत की महानता के कारण हुआ या धोखा, धक्का इसके पीछे का  मूल कारण है? अफ़्रीकी देश केन्या के राष्ट्रपति की बेदना सुनें- जब ईसाई मिशनरी इस देश में आए तो अफ्रीकियों के पास जमीन थी और मिशनरियों के पास बाईबल। उन्होंने हमें आँख बन्द करके प्रार्थना करना सिखाया जब हमने ऑंखें खोली तो देखा कि उनके पास जमीन है और हमारे पास बाईबल! संघ को ईसाईयत या इस्लाम से कोई समस्या नहीं है। देशवासी ईसा और मुहम्मद का सम्मान सब करते हैं। भारत में सबकी पूजा पद्धति, मत मतांतर का सम्मान करने की परम्परा है। गोआ में सबसे पहले आए ईसाई पादरियों और इस्लाम के अनुयायियों को चर्च और मस्जिदें हमने स्वयं बना कर दी हैं। लेकिन देश का युवा जानना चाह रहा है हमे हमारी इस उदारता का क्या सिला मिला? पंजाबी गीत की पंक्तियाँ यहां सटीक बैठती हैं-
अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का!
यार ने ही लूट लिया घर यार का!!
संघ देश को सावधान और यह सुनिश्चित करने की कोशिश करता रहता है कि ईसाईयत और इस्लाम मजहब के नाते स्वीकार्य स्वीकार्य हैं लेकिन इनकी आड़ में देश विरोधी तत्वों या शक्तियों को पनपने न दें। संघ का कोई अपराध है तो बस इतना ही है। अगर अन्य देशवासियों के साथ-2 ईसाई व् इस्लाम के बन्धुओं से देशभक्ति की अपेक्षा करना अपराध है तो हमारा तो यही कहना है-
वो कौन हैं जिन्हें तौबा को मिल गयी फुर्सत।
हमें तो गुनाह करने को भी जिंदगी कम है।।
अब अपने आप को देशबाह्य शक्तियों से दूर रखना, देश की मिटटी से जुड़े रहना ये जिम्मेदारी ईसाई और इस्लाम नेतृत्व की भी है। किसी को पसन्द आए या नहीं लेकिन भविष्य के भारत में सम्मान और विश्वास प्राप्त करने के लिए यह पूर्व शर्त जरूर है।



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