शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

क्या कश्मीर में खिलेगा कमल ?

क्या इस बार कश्मीर घाटी में कमल खिलेगा? क्या इस पहाड़ी राज्य का राजनैतिक इतिहास करवट लेगा? क्या मोदी लहर इस राज्य में भी परम्परागत राजनैतिक समीकरणों को धराशायी कर भाजपा को सत्ता तक पहुंचा देगी? अगर मुख्यमन्त्री श्री अब्दुल्ला और मुफ़्ती महबूबा की राजनैतिक घबराहट, राज्य में मुस्लिम नेताओं का बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल होने की होड़ और अलगाववादी नेता सज्जाद लोन की मोदी स्तुति तथा भाजपा कार्यकर्ताओं के जोश को देखा जाये तो उत्तर हाँ में ही आता लग रहा है। मोदी के जादू को लेकर अपनी पिछली  सारी भविष्यवाणियां गलत हो जाने के कारण राजनैतिक पण्डित भी मोदी मैजिक को स्वीकारने लगे हैं। उनमे से अधिकांश कहने लग पड़े हैं कि भाजपा जम्मू कश्मीर में हरियाणा नहीं तो महाराष्ट्र तो दोहरा ही देगी। जैसे-जैसे जम्मू कश्मीर राज्य विधान सभा चुनाव की तिथियाँ नजदीक आ रही है वैसे वैसे राज्य की जनता की ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में भारत भक्त शक्तियों की धड़कनें भी तेज होती जा रही हैं। इसका बड़ा कारण है कि इस राज्य में विधान सभा चुनाव मात्र किसी दल की सरकार बनने या न बनने तक सीमित नहीं हैं। सीमावर्ती राज्य होने  के साथ साथ मुस्लिम साम्प्रदायिक राजनीति के चलते पाक और चीन को यहां खुल कर खेलने का अवसर मिलता रहा है। देशवासियों को बड़ा गिला रहा है कि गैरों से भी ज्यादा अपनों की बेबफाई के चलते भारत यहां हमेशा हाशिये पर ही रहता आया है। लगता है राज्य के लोगों ने देश के इस शिकवे को दूर करने का मन बना लिया है। इस बार राज्य में राजनैतिक फिजा बदली बदली सी लग रही हैं इसीलिये इस बार  भारत विरोधी शक्तियां विधान चुनाव को लेकर बेहद परेशान लग रही हैं। उन्हें इस बार अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती लग रही है।
तौबा करनी होगी साम्प्रदायिक राजनीति से-
स्वंतत्रता के समय से ही जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान और चीन के आलावा अन्य भारत विरोधी शक्तियों ने अपना अखाडा बनाया है। इस अखाड़े में राज्य की निर्दोष जनता दशकों से पिस रही है। यहाँ यह कहना भी आवश्यक है कि यहां की जनता के दुःख तकलीफों के पीछे अब तक राज्य में प्रभावी रही पाक परस्ती और मुस्लिम कट्टरता को बढ़ावा देने वाली राजनीति भी बराबर की दोषी है। यह एक जमीनी सच्चाई है कि विश्व की ये चीनी और पाकी शक्तियां इस राज्य में राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत होते नहीं देखना चाहती क्योंकि इन्हें मालूम है कि वे अपना खेल तभी तक खेल सकेंगी जब तक यहां पाक समर्थक या पाक के प्रति नरम रुख रखने वाले लोगों की सरकार रहेगी। यहां यह कहना जरूरी लगता है कि राज्य की जनता के भारत के प्रति रूखेपन के पीछे बड़ा कारण दिल्ली का विचित्र व्यवहार भी रहा है। यहां जो व्यक्ति या दल भारत को जितनी गलियां देता था दिल्ली उसे उतना ही पुचकारती और अनेक तोहफ़ों से नबाजती थी। इसके विपरीत भारत माता की जय बोलने का अर्थ अपने लिए गाली और गोली के रूप में संकट को आमन्त्रित करना था। अब दिल्ली बदली है। भारत विरोधियों को सजा तथा भरतभक्तों को पुरस्कार का सिलसिला शुरू होने जा रहा है। चीन और पाक के कान भी मरोड़े जा रहे हैं। सीमा पर सेना को खुली छूट देकर आतँकवाद की नकेल कसी जा रही है। राज्य में भारतभक्त  सरकार आते ही परिदृश्य पूरी तरह बदलने वाला है। राज्य के लोगों को आतंकवाद से मुक्ति तथा विकास की राजनीति का स्वाद चखने को मिलेगा। राज्य में भारतभक्त सरकार लाने में राज्य की जनता के दुःख तकलीफों से मुक्ति की चाबी छुपी है यह बात सर्वदूर फैलती जा रही है।
राष्ट्रवाद ही है समाधान
भारत के सीमावर्ती राज्य होने के कारण जम्मू कश्मीर विधान सभा के चुनाव परिणामों पर राज्य की जनता के साथ साथ सम्पूर्ण देश और दुनियां की निगाहें टिकी हैं। क्या राज्य की जनता जम्मू कश्मीर की साम्प्रदायिक राजनीति से बाहर निकल कर विकास और भरष्टाचार से मुक्ति को तरजीह देगी? क्या धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाले इस राज्य में परिवारवाद की जगह राष्ट्रवाद गूंजाने का समय आ गया है? जम्मू कश्मीर विधान के चुनाव राज्य की जनता के सामने अपना भविष्य स्वयं अपने हाथों लिखने का एक देव दुर्लभ अवसर है। हर पांच साल में आने वाले अवसर के लिए दुर्लभ! शब्द मैंने सोच समझ कर प्रयोग किया है। अभी तक इस राज्य की जनता के सामने अब्दुल्ला परिवार, मुफ़्ती परिवार या फिर कांग्रेस  ही विकल्प के रूप में थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन सभी दलों ने राज्य की जनता के दुःख तकलीफ का समाधान ढूंढने के बजाए अपने सत्ता सुख को ही प्राथमिकता दी है। जम्मू कश्मीर की जनता ने  इन दोनों दलों की साम्प्रदायिक राजनीती से तंग आ कर राष्ट्रीय दल कांग्रेस को चुना लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा। इतना ही नहीं तो कांग्रेस ने राज्य में मुस्लिम कट्टरता को हवा देने में तो बाजी ही मार् ली। जनता ने हर बार स्वयं को ठगा ही अनुभव किया। यह तो ठीक ऐसा ही रहा-
सोचा था क़ि हाकिम से करेंगे शिकायत।
कमबख्त वो भी तुझे चाहने वाला निकला।।
बहुत जख्मों पर मरहम लगाना बाकि है-
जम्मू कश्मीर राज्य भारत के लिए महज एक राज्य नहीं है। इस राज्य के साथ भारत के सांस्कृतिक व् ऐतिहासिक सम्बद्ध रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद से लेकर इस राज्य में शांति और भारत के साथ जोड़े रखने में भारत ने हजारों सैनिकों के बलिदान और आम आदमी के टैक्स की अरबों की धनराशि के रूप में भारी कीमत चुकाई है। स्वंतत्रता के समय जब सारा देश जश्न मना रहा था इस राज्य को पाक के हमले का शिकार होना पड़ा था। पांच सौ से अधिक रियासतों को भारत से जोड़ने का अभियान पठानकोट से आगे निकलते ही कमजोर पड़ गया। पण्डित जवाहर लाल नेहरू की जिद के आगे भारतभक्त राजा हरि सिंह को अपमानित तथा पाकपरस्त शेख अब्दुल्ला को पुरस्कृत किया गया। भारत के अपमान का यह सिलसिला जो शुरू हुआ वह अभी तक वैसे ही चलता आ रहा  है। लेकिन इससे राज्य की जनता को क्या मिला? परिवारवाद, भरष्टाचार, आतँकवाद और घोर गरीबी ही हिस्से आई। भारतविरोध के चलते देश की जो हानि हुई सो हुई लेकिन धरती के स्वर्ग जम्मूकश्मीर की भी कम दुर्दशा नहीं हुई। आज लाखों कश्मीरी वनवास की जिंदगी जीने को बेबश हैं। 1947 में पाक से आए लाखों हिन्दू शरणार्थी राज्य में वोट के अधिकार के लिए जूझ रहे हैं। इस राज्य की बेटियां राज्य से बाहर शादी होते ही अपनी पैतृक सम्पत्ति से अधिकार खो बैठती हैं। धारा 370 के चलते राज्य केंद्र की अनेक कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हो रहा है। कश्मीर घाटी जम्मू और लेह लद्दाख के रेवन्यू पर पल रही है। राज्य में मुस्लिम कट्टरवाद को प्रभावी रखने के लिए सभी मान्य मापदण्डों को नकार कर घाटी में सीटें अधिक रखी गयी हैं।
राज्य के मुस्लिम बन्धुओं को भी समझ में आने लगा है कि मुस्लिम देश और दुनियां में वहीं सुखी है जहाँ वे अमुस्लिमों से शासित हैं। मुस्लिम राजनेता उनकी धार्मिक संवेदनशीलता का दुरूपयोग कर उन्हें अल्लाह का राज्य बनाने के लिए उनके हाथ में बन्दूकें थमा देते हैं और खुद जन्नत के ऐशोआराम में खोये रहते हैं। अभी तक का अनुभव तो इस बात को चीख चीख कर कह रहा है कि जम्मू कश्मीर को दोबारा वहां के परम्परागत दलों के हाथों सौंपना बन्दर के हाथ उस्तरा पकड़ा देना ही होगा। भगवान शिव की धरती को इन्होंने आतंकवादियों की ऐशोआराम की स्थली में बदल दिया है। आतँकवाद के चलते हजारों निर्दोष नागरिकों की सिसकियां इन दोषी  राजनेताओं को सजा देने की मांग कर रही हैं।  क्या कश्मीर को आज के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए अपने यहां कमल को खिलाना होगा? ईमानदार विश्लेषण तो हाँ में ही उत्तर देता है। क्या राज्य की जनता इस अवसर का अपने दूरगामी हित के लिए उपयोग करेगी या अपने राजनेताओं के शोषण का शिकार होती रहेगी?

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