शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

सुन्दर-सुखी परिवार ही स्वस्थ समाज और राष्ट्र का आधार है

पिछले दिनों बटाला में युवा दम्पति कार्यक्रम भाग लेने का अवसर मिला| कार्यक्रम मे बोलना है तो इस विषय पर कुछ चिन्तन करने की कोशिश की| इसी चिन्तन से उभरे कुछ विन्दु इस लेख की आधार सामग्री है| कुछ साल पहले लन्दन में हिन्दू स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित मक्कर सक्रांति कार्यक्रम में इंग्लेंड की तात्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती मारग्रेट थैचर ने एक बड़े महत्व की बात की जिसने भारत में आधुनिकता के नशे में डूबे भारतवासियों को काफी निराश किया | अपने देश भारत में आज बड़ी संख्या इस प्रजाति की हो गयी है जो पाश्चत्य जीवन शैली में ही जीवन की सब समस्याओं का हल खोजती है| मजेदार बात है कि ये लोग पाश्चत्य जीवन शैली को ही आधुनिकता समझते हैं| वे भूल जाते हैं कि आधुनिकता और पाश्चत्य दोनों अलग-अलग अवधारणायें हैं| खैर! बात मारग्रेट थैचर के भाषण की चल रही थी तो उन्होंने वहां कहा कि हमने भारत से बहुत सारी बातें सीखी हैं और आज अगर हमने अपने समाज को बचाना है है तो भारत की परिवार व्यवस्था लागू करनी होगी| भारत ने विश्व को जो बहुत कुछ दिया है उसमे परिवार व्यवस्था भी अत्यंत महत्वपूर्ण देन है|'' भारत के महान ऋषियों की तो बात छोड़ भी दें तो यूरोप और पाश्चत्य विद्वानों की अनुभव सिद्ध सीख को भी अनसुना करने के कारण आज भारत के सम्भ्रांत वर्ग में भी यूरोप व् पाश्चत्य जीवन की सारी बुराइयाँ प्रवेश करती जा रही हैं | इसके परिणामस्वरूप  इस वर्ग को मानसिक अशांति ने उन्हें वेचैन कर रखा है| आखिर हमसे कहाँ चूक हो गयी हैं| आज इस पर गम्भीर चिन्तन करने की आवश्यकता है|
विश्व चला भारत की ओर लेकिन हम ?- क्या  हम सब जानते हैं कि इस समय विश्व भारत की हर चीज की ओर बेहद आकर्षित हो रहा है| जीवन के सब भोग विलास से बुरी तरह हताश और निराश पश्चिम जगत किसी भी कीमत पर मन की शांति चाहता है| आज हजारों की संख्या में ये लोग नंगे पाँव, गले में लम्बी माला डाले व् शरीर पर भगवा चोला लपेटे दर दर की ठोकरे खाते हरिद्वार व् वृन्दावन आदि स्थानों में देखे जा सकते हैं| इसके अलावा वहां योग की कक्षाएं, संस्कृत भाषा, भारतीय वेशभूषा व् हिन्दू धर्म अत्यधिक आकर्षण का केंद्र बनते जा रहे हैं| आज इस्लाम व् ईसाईयत वहां के लोगों के प्रश्नों का उत्तर नही दे पा रहे हैं| युवा चर्च के प्रति बेहद उदासीन हैं जिस कारण चर्च बिक रहे हैं| पोप अपने पादरियों के यौन शोषण के अपराधों के लिए माफ़ी मांगते मांगते थक  से गये हैं| इसी प्रकार इस्लाम तो आतंकवाद का पर्यावाची बनता जा रहा है| इस्लाम के अंदर शांतिप्रिय लोगों की आवाज शुरू से ही नक्कारखाने की तूती की तरह आज भी निष्प्रभावी है| इस्लाम से शांति, प्रेम व् भाईचारे की अपेक्षा बेमानी होती जा रही हैं| विश्वप्रेम, सुख व् शांति की बातें करने वाली इन विचारधाराओं ने सबसे ज्यादा निर्दोष लोगों के रक्त से धरती को रंगा है| ईसाइयत दो विश्व युद्ध का उपहार मानवता को दे चुका है, वहीँ इस्लाम सारे विश्व में आतंकवाद का प्रतीक बन गया है| इसके अलावा धरती, औरत व् पर्यावरण आदि को लेकर  इनकी सोच ने मानवता के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह खड़े कर दिए हैं| यही कारण है कि आज सारे विश्व के लोग बड़ी तेजी से मानवता के सुखद भविष्य को लेकर भारत के दर्शन की शरण आ रहे हैं|
परिवार व्यवस्था को समाप्त करने की साजिश- आज भारत विरोधी शक्तियां भारत को समाप्त करने के लिए भारत की इस अनमोल परिवार व्यवस्था को समाप्त करने की साजिश रच रहे हैं| भारत की आत्मा इसकी संस्कृति में बसती है जिस दिन यह संस्कृति समाप्त हो गयी उसी समय न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण मानवता के अस्तित्व पर संकट के बादल छ जायेंगे| स्वामी विवेकानन्द जैसे अनेक महापुरुष हमे इस सम्बद्ध में सावधान कर गये हैं| भारत की हमारी संस्कृति व् संस्कार लाखों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी निरंतर चलते आ रहे हैं| हमे मिटाने असंख्य हमलावर आये, हर तरह के अत्याचार किये परन्तु वे स्वयम मिट गये लेकिन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सके| एक गीत की पंक्ति में ये भाव सुंदर ढंग से व्यक्त हुए हैं-
                                                                युगों युगों से बनी हुई परिपाटी है, खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है|
                                                                हमे मिटाने जो चला धूल धरा की  चाटी है, खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है|
यहाँ माटी का अर्थ देश की सीमा के साथ-साथ अपनी संस्कृति भी है| गुरु तेग बहादुर , बन्दा बहादुर, भाई मतिदास व् सतिदास का बलिदान हो या गुरुपुत्रों का बलिदान हो, वीर हकीकत का बलिदान या फिर रानी पदमनी के साथ हजारों रानिओं का चितारोहण हो यह एक अंतहीन गौरव गाथा है| यहाँ यह उलेखनीय है की ये बलिदान धर्म की रक्षा के लिए हुए| धर्म के उपर थोडा भी समझौता कर लेने पर जीवन के सारे सुख व् आराम के आकर्षक प्रस्ताव इनके सामने थे| प्रश्न उठता है कि पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार कैसे दृढ होते गये? धर्म के उपर जीवन तक बलिदान कर देने की दृढ़ता कहाँ से पैदा हो गयी? हमने बच्चों को इसकी  टयूसन तो रखी नहीं फिर ये चमत्कार कैसे हो गया? विचार करने पर इसका उत्तर है कि ये सब हमारी परिवार व्यवस्था के कारण संभव हो पाया है| आज परिवार व्यवस्था थोड़ी ढ़ीली या दिशाहीन होते ही करोड़ों देशवासी थोडा सा संकट या धन आदि के आकर्षण में धर्म परिवर्तन कर मुसलमान या ईसाई बन चुके हैं| आखिर उन्हीं पुर्बजों की सन्तान इतनी कमजोर क्यूँ पड़ गयी? उत्तर साफ़ है कि परिवार में जो संस्कार दूध में मिलते थे वह परम्परा थोड़ी कमजोर पड़ गयी| व्यक्ति निर्माण परिवार में सहज ही होता जाता है| माता-पिता, नाना-नानी, दादा-दादी और अन्य रिश्तेदारों से बच्चा बहुत कुछ अनौपचारिक ढंग से ही सीख लेता था| आज हमें अपने परिवार को बचाना होगा|
विवाह की पूर्व तयारी- आज विवाह से पूर्व लडके और लड़की की तैयारी तथा शादी एक जिम्मेवारी है इसकी सीख देने की कोई व्यवस्थित पद्धति नहीं है | पहले संयुक्त परिवार में शिक्षण का यह कार्य लड़की को सहेलिओं, भाभिओं, मासिओं व् मामिओं से तथा लड़कों को दोस्तों व् मामा, भाई आदि से कुछ मात्रा में ही सही लेकिन पूरा हो जाता था| अब छोटे परिवारों में बच्चों को सुविधा नही मिल पा रही है| आज या तो रिश्ते व् दोस्त उपलब्ध नहीं या फिर सहज प्यार न होने के कारण परस्पर दिल खोल कर बात नहीं हो पाती | व्यक्ति को शादी क्यूँ करनी चाहिए? शादी का उद्येश्य क्या है? जीवन का लक्ष्य क्या है और उस लक्ष्य प्राप्ति में शादी कैसे सहायक हो सकती है? शादी के बाद ससुराल पक्ष के प्रति , मायके के प्रति तथा अन्य नये रिश्तों के प्रति हमारा क्या दायित्व है? इन रिश्तों का महत्व क्या है? जीवन सब रिश्तो का कुल योग होता है आदि आदि बहुत सी बातें बच्चों को बताने की आवश्यकता रहती है| इसके अलावा शादी के बाद शादीशुदा जीवन की स्वास्थ्य सम्बधी जानकारियां या काम विज्ञान की बारीकियाँ बताने देने भी जरूरत होती है| आज शादी के लिए लडके लडकी का व्यस्क होना, नौकरी आदि लग जाना या व्यवसाय में सेटल हो जाना ही पर्याप्त योग्यता मान लिया जाता है| आज हमे अपने युवा दम्पतियो को बताना होगा कि शादी बहुत बड़ी जिमेवारी का नाम है| शादी केवल काम सुख का माध्यम नहीं है काम सुख शादी का एक छोटा सा भाग है| अपने जीवन से समाज और राष्ट्र का पोषण करना और राष्ट्र को योग्य संतान अर्पित करना वास्तव में गृहस्थ जीवन का लक्ष्य होना चाहिए| हमारे शास्त्रों में गृहस्थ जीवन को सब आश्रमों का आधार व् सबसे श्रेष्ठ बताया गया है| इसके अनरूप गृहस्थ जीवन खड़ा करने की प्रेरणा व् शिक्षण देने की आवयश्कता है|
परिवार नियोजन अर्थात क्या? - परिवार नियोजन का प्रचलित अर्थ तो भगवान के कार्य में हस्तक्षेप से ज्यादा कुछ नहीं  रह गया है| अर्थात बच्चा कब चाहिए, कितने चाहिए ? ये तो सरकार ने रोक दिया नहीं तो लड़का या लडकी जो चाहिए उसको लेने की योजना करना ही परिवार नियोजन हो गया है| वास्तव में परिवार नियोजन का व्यापक अर्थ है इसे उसी प्रकार लेना चाहिए| आपके कितने बच्चे होने चाहिए क्या ये केवल आपका विषय है? ये केवल आपका नहीं तो पूरे देश व् समाज का भी विषय है| आज महिलाएं अपनी फिगर की चिंता में《 नाम बेशक जनसंख्या वृद्धि का दिया जाता है〉एक या दो से अधिक बच्चों से आगे नहीं सोच रही हैं| लेकिन आज प्रश्न पैदा होना शुरू हो गया है कि एक ही बच्चा होने के कारण आगे सेना में बच्चे कहाँ से आएंगे? संत कहाँ से आएंगे? जीवन को दाव पर लगाने वाले कार्यों में बच्चों को कौन भेजेगा? अपनी फिगर बचाते बचाते देश की फिगर बिगड़ गयी तो? इसी कारण बहुत सी माताएं अपना दूध तक बच्चे को नहीं पिलाती| आज के पढ़े लिखे युवा दम्पतियों को विचार करना होगा कि देश में तेजी से हो रहे जनसंख्या असंतुलन का सामना कैसे होगा? `हम दो-हमारे दो' से हम, `हम दो-हमारा एक' पर आ रहे हैं और इस्लाम में `हम पांच हमारे -पचीस' का पहाडा अभी भी गौरव से पढ़ा जाता है| बच्चे पैदा करना भी वे कौम की सेवा मानते हैं| इसी प्रकार इसाइयत भी धर्म परिवर्तन कर अपनी जनसंख्या तेजी से बढ़ा रही है| अगर जनसंख्या इसी अनुपात् से बढती रही तो प्रसिद्ध विद्वान डॉ. जितेन्द्र बजाज के अनुसार आने वाले पचास साल बाद हम हम अपने ही देश में बेगाने हो जायेंगे अर्थात हम अल्पसंख्यक हो जायेंगे| भारत इस्लामिक देश बन जायेगा| आज ये बात बेशक कोरी कल्पना लगती है लेकिन अगर हमने इस पर गंभीरता से विचार नहीं  किया तो इसे हकीकत में बदलते देर नहीं लगेगी| 15 अगस्त से पहले देश बिभाजन भी बहुतों को कल्पना ही तो लगती थी| हम अपने बच्चों को कैसा देश छोड़ कर जायेंगे इस पर भी तो विचार करना ही होगा| फिर एक और मजेदार स्थिति है कि जिन गरीबों के कम बच्चे होने चाहिए उनके  ज्यादा हैं और जो बच्चों को सम्भाल सकते हैं उन घरों में एक और दो बच्चे हमारी समझदारी का मजाक उड़ाते दिखते हैं? इसलिए घर में कितने बच्चे हों ये नितांत निजी मामला नहीं है|  इसके आगे परिवार नियोजन का अर्थ अपने परिवार की पूरी योजना करना अर्थात कब तक बच्चे अपने पैरों आर खड़े हो जायेंगे? हमने कब तक पैसा कमाने के लिए दिन रात एक करना है? समाज के लिए मेरा या मेरे परिवार का क्या योगदान रहेगा? अधिकांश व्यक्ति नितांत स्वकेंद्रित जीवन जीते हैं| राष्ट्र व् समाज के प्रति उनके योगदान का पन्ना खाली ही रह जाता हैं आखिर में वे यह गुनगुनाने के लिए बेबस होते हैं- मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया....
महान अतीत से कटते जा रहे हैं हम- प्राचीन भारत के साहित्य या किसी कथा कहानी में तीन शब्द मिलते ही नहीं हैं -तलाक, आत्महत्या और वृद्धा आश्रम| आज दुर्भाग्यवश ये शब्द आम सुनने को मिल रहे हैं| अहंकार की भरमार व् सहनशीलता के आभाव के कारण तलाक बढ़ते जा रहे हैं| आज युवा को कैरियर में जबरदस्त दबाब झेलना पढ़ रहा है| उधर घर में  शांति न होने पर वह डिप्रेसन में जा रहा है| इस कारण आत्महत्या के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं| तनाव के वातावरण में जो बच्चे पनपते हैं वो स्वभाव से चिडचिडे, दब्बू या फिर बहुत हिंसक होते हैं| घर में मिले असहज माहौल का परिणाम उनके व्यक्तित्व पर झलकता है| माता पिता से मिले कम प्यार की पूर्ति वह छोटी उम्र में नशों या फिर बलात्कार आदि कर पूरी करता है| इन बच्चों को माता-पिता से प्यार न के बराबर होता है रिश्तेदारों से लगाव तो दूर की बात है| समय आने पर ये बड़े आराम से अपने माता-पिता को वृद्धाआश्रम छोड़ आते हैं| इन्हें किसी की आँख की शरम भी नहीं होती  है| अगर समय रहते इस समस्या का हल नहीं खोजा तो आने वाले समय में  वृद्धाआश्रम की मांग और बढ़ने वाली है| यह भारत जैसें महान देश के लिए शुभ सुचना नहीं है|
क्यूँ टूट रहे हैं परिवार- आज अधिकांश नव दम्पति एक साथ चलने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं| जिस देश में सात जन्म तक साथ निभाने की कसमे होती थी वहीं आज कोई जोड़ा बिना लड़ाई झगड़े के जीवन की शुरुआत कर ले तो बड़ी बात मानी जाने लग पड़ी ही| तलाक सामान्य होते जा रहे हैं| समाज शास्त्रियों को इस पर विचार करना होगा| वैसे तो ये कहानी घर घर की जैसा मामला होने का कारण एक  सूत्र खोजना कठिन होगा तो भी कुछ समान बाते ध्यान में आती हैं| आज घर में कम बच्चे होने के कारण घर में उनकी ही चलती है| उनका हर शब्द, हर मांग अंतिम होती है| पंजाब में मजाक में कहते भी हैं की आजकल बच्चे बच्चे कम प्यो ज्यादा होते हैं| इस पृष्ठ भूमि में पले बच्चों में सहनशक्ति का आभाव दिखता है जो कि सफल दाम्पत्य जीवन का आधार माना जाता है| स्वाभिमान के नाम पर अहंकार सारी सीमा पार करता दिखाई देता है| जहाँ दोनों कमाने वाले हैं वहां स्थिति और भी बिस्फोटक रहती है| थोड़ी सी चिंगारी मिली नहीं की धमाका! फिर छोटा परिवार होने के कारण रूठने पर मनाये कौन? व्यक्ति अपने मन का गुब्बार निकाले तो कहाँ? परिवार की एकता में बाधक लडके लडकी की परिवार के रहन सहन को लेकर मत भिन्नता भी होती है| शादी के बाद पति-पत्नी परस्पर एक दुसरे को लेकर फ़िल्मी कल्पनालोक में डूबे होते हैं, सभी की अपनी-2 कल्पना की उडान होती है, रंगीन हसीन स्वप्न होते हैं जैसे ही जीवन की कटु सच्चाई से सामना होता है वे एक दम आसमान से धरती पर आ गिरते हैं| लडके लड़की के शादी से पूर्व के सम्बद्ध, लिव इन रिलेशन जैसी नई पाश्चत्य जीवन शैली ने तो हमारे वैवाहिक जीवन की कमर ही तोड़ कर रख दी| इस सारी नई परिस्थिति के लिए हमें बच्चों को तैयार करना होगा|
बच्चों को कैसे सभालें- आज के समय में बच्चों को सम्भालना, पालना अत्यंत धैर्य व् सुझबुझ का कार्य है| परिवारों में बच्चों को सुधारने के नाम पर या तो पूरी तरह डरा धमका कर रखा जाता है या फिर पूरी तरह स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है| माँ हाथ में कटोरी चमच लिए उसके पीछे दौडती रहती है| इन दोनों के बीच का रास्ता लेने की जरूरत है| आज हर माता अपने बच्चे को ए.सी.स्कूल, इंग्लिश माध्यम के स्कूल में डालना चाहती है| स्कुल का वातावरण, पढ़ाई व् संस्कार उसके लिए आखिरी प्राथमिकता होती है| इस मामले में वो किसी नहीं सुनती| माताओं का  ये प्यार बहुत बार बच्चों के भविष्य से खेल जाता है| माताओं को अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है| आज बच्चे बहुत समझदार हैं इसलिए उनके समुचित विकास  के लिए माता पिता की बच्चों से दोस्ती होना और तर्कपूर्ण ढंग से समझा कर उसे मनाना चाहिए| बच्चे की सारी बातें मान कर हम न चाहते हुए भी उसका अहित ही कर जाते हैं| बच्चों को परिवार की पूरी कल्पना देनी, सब रिश्तों का महत्व समझाना और सब रिश्तों के प्रति मन में आदर विकसित करना आवश्यक है| इसके आलावा गरीब, मजदूर, संत भिखारी व् बजुर्गों इतना ही नहीं  तो पशु-पक्षी, पेड़-पौधों के प्रति भी लगाव व् आदर का भाव पैदा करना स्वस्थ समाज जीवन के लिए आवश्यक है| आज महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों को भी हमे यहीं से ठीक करना होगा| हर बच्चे के मन में महिला के प्रति आदर का भाव अभी से पैदा करना होगा..... मातरि वत परदारेषु......... का अर्थ व् भाव उसके दिल में गहराई से बैठाने होंगे| कभी-2 उसे गरीबों की बस्तियों में भी ले जा  कर उसकी सम्वेदनाये जागरित करनी चाहिए| आप देखेंगे घर में उसका व्यवहार नियंत्रित हो जायेगा| घर एक समय सारा परिवार मिल के भोजन करे इसकी योजना करनी चाहिए| सवेरे उठ कर धरती को प्रणाम करना, बड़ों के पैर छूने आदि आग्रहपूर्वक लागू करना चाहए| घर में सामुहिक पूजा भी अच्छा वातावरण बनाने में सहायक होती है| परिवार में समय पर देश व् समाज की चर्चा जरुर करनी चाहिए| महापुरुषों की जीवनियां अवश्य रखें| ये बच्चे के जीवन को दिशा देने में अत्यंत सहायक होती हैं|
पढ़ी लिखी माँ बने राष्ट्र व्  समाज की प्रेरणा- हमारे लिए ख़ुशी की बात है कि अब हमे पढ़ी लिखी माताएं मिलेंगी| पढ़ी-लिखी समझदार माता एक बच्चे के साथ-साथ समाज के लिए भी वरदान सिद्ध हो सकती है! सबसे पहली बात जिनको आर्थिक कारणों के चलते नौकरी आवश्यक नहीं हो वे नौकरी से परहेज करें तो अच्छा है| या दो में से आपसी सहमति से  एक नौकरी करे| आवश्यक होने पर दूसरा सदस्य अपना व्यवसाय करे ताकि वो हमेशा बच्चों या परिवार व् समाज आदि के लिए उपलब्ध रहे| नौकरी न करने वाली माहिलायें समाज सेवा में अपनी पढाई व् योग्यता का उपयोग करें. आज समाज में बहुत सारे कार्य हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं | करोड़ो लोग आज भी स्वतन्त्रता का स्वाद अभी तक नहीं चख पायें हैं| हम दो चार बच्चों की ही माँ बन कर संतुष्ट क्यूँ  हो जाएँ? हम अपना दायरा व्यापक करें| जब हमारे प्रयत्नों से किन्हीं दो चार चेहरों पर हमें मुस्कान दिखेगी तो अनंत आन्तरिक प्रसन्नता का अनुभव होगा| यही जीवन की सार्थकता और सफलता है| अच्छा, सुखी, प्रसन्न परिवार न केवल बच्चे के लिए बल्कि सम्पूर्ण देश व समाज के लिए वरदान हो सकता है|

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